रतलाम। सुश्री जयाकिशोरी के मुखारविंद से श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन समीपस्थ ग्राम कनेरी में भक्तिगीत…नगरी हो अयोध्या सी…रघुकुल सा घराना हो…चरण हो राघव के जहां मेरा ठिकाना हो…लक्ष्मण सा भाई हो, कौशल्या माई हो…पर श्रोता और आयोजक परिवार के साथ सुश्री जया किशोरी भी नृत्य करती नजर आई।स्वामी तुम जैसा मेरा रघुराई हो…हो त्याग भरत जैसा…सीता सी नारी हो…लव-कुश के जैसी संतान हमारी हो…। श्रद्धा हो श्रवण जैसी…शबरी से भक्ति हो…हनुनत के जैसी निष्ठा और शक्ति हो…नगरी हो अयोध्या सी…समर्पण भाव को जाहिर करता हुआ गीत जयाकिशोरी के मुखारविंद से श्रवण कर श्रोता भी मंत्रमुग्ध होकर भक्तिरस में गोते लगाते हुए झूम उठे।
भगवान की लीलाओं पर प्रकाश डाला कथा के मध्य जयाकिशोरी ने भगवान की लीलाओं पर प्रकाश डालते हुए श्रोताओं को समझाया कि भगवान की आप कोई भी लीला उठाएंगे, उन्होंने हमेशा सही राह दिखाई है। श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीला उठाइये अवतार और तरीके अलग थे, लेकिन मंजील एक धर्म ही रहा। श्रीराम सिखाते है कि मर्यादा में रहते कैसे है, और श्रीकृष्ण सिखाते है कि मर्यादा में रखते कैसे है। बात मर्यादा की ही है। एक रहना सिखा रहा है एक रखना सिखा रहा है। अंत में भगवान का हर अवतार धर्म ही तो सिखाता है। इसलिए भगवान की लीलाएं सुनिये आपको कुछ और सिखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जयाकिशोरी भी मंद-मंद मुस्कान संग भक्तों संग नृत्य करती नजर आई
भगवान ने 24 अवतार बताए
श्रीमद् भागवत कथा के दौरान जयाकिशोरी ने अवतार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान ने कुल 24 अवतार लिए, दो अवतार हंसा और हयग्रीव थे। इसके बाद 22 अवतार बताते हुए छठे अवतार के रूप में दत्तात्रय कथा का वर्णन करते हुए अत्री ऋषि और माता अनुसुईया की कथा पर प्रकाश डाला। इस दौरान माता सती-शिव-पार्वती विवाह आदि प्रसंग भी हुए, जिनका सजीव चित्रण किया गया। इस मौके पर मां उमिया समिति के मुख्य आयोजक मधुकिशोर पाटीदार, ग्रामीण विधायक दिलीप मकवाना, ओंकारलाल पाटीदार, निर्मल पाटीदार, जगदीश पाटीदार सैलाना, राजकुमार धबाई, राकेश पाटीदार, सुरेश पाटीदार सिमलावदा आदि बड़ी संख्या में धर्मालु उपस्थित थे। कथा भक्त प्रहलाद की कथा में नृसिंह अवतार होगा।
कथा श्रवण कर चिंतन-मनन करो
कथा का सुनने के महत्व को समझाते हुए जयाकिशोरी ने श्रोताओं को बताया कि कथा सुनने से कल्याण नहीं होता, कल्याण करने के तीन साधन-रास्ते बताए है। इसके लिए पहला श्रवण करो, दूसरा लक्षण चिंतन करना, जो सुना है उसका घर जाकर चिंतन करना, क्या और क्यों बताया। तीसरा है मनन करना, अब सब जान लिया, सब कर लिया, सबका सार निकल गया, संदेश पता चल गया कि अब क्या उसको जीवन में उतारो।
सनातन धर्म आंख पर पट्टी बांधना नहीं सिखाता मैं हमेशा कहती हूं सनातन धर्म आंख पर पट्टी बांधना नहीं सिखाता, अगर ईश्वर को ऐसे ही अगर आंख बंद करके भरोसा कराना होता तो बुद्धि विवेक नहीं दी होती। बुद्धि दी है इसलिए की उसका चिंतन करो, क्या सही-गलत है। प्रश्न करो जिज्ञासा रखो, आपके हर शास्त्र प्रश्नों से शुरू होते हैं। यहां कितने है जिन्होंने गीता जी पढ़ी है हाथ उठाना, चंद श्रद्धालुओं ने हाथ उठाए तो जया किशोरी ने कहा कि अच्छी बात है यह आपको पता है ना हम अकेले है जो अपने ग्रंथ नहीं पढ़़ते, बाकि सब पढ़़ते है। एक निवेदन है सात दिन में अगर आपको कथा एक प्रतिशत भी अच्छी लग जाए तो पहला करियेगा गीताजी पढिय़ेगा।
भक्त अधिक चौथे दिन कम पहले दिन आते
जयाकिशोरी ने कहा कि सात दिन में सबसे ज्यादा संख्या कब आती है, चौथे दिन जब श्रीकृष्ण जन्मोत्सव होता है, सबसे कम कब आते है शुरू दिन जब ज्ञान की बाते होती है। कथा की कथा में ज्ञान सुनना पसंद नहीं करते। तो नारदजी ने कहा कि कलयुग में ज्ञान सुनने वाले ज्यादा नहीं होंगे, भक्तिरस सुनने वाले अधिक होंगे। इसलिए श्रीमद् भागवत में भगवान की लीलाएं लिखी गई, कि भगवान ने क्या-क्या किया, ये सुनने भक्त आते है।(पत्रिका से साभार)