झाबुआ

आओ पता लगाए :- वन विभाग में वह कौन कंप्यूटर बाबू है जिसने अपने मित्र की फर्म की दरें निविदा में स्वीकृत ना होने पर टेंडर ही कैंसिल करवा दिये….?

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झाबुआ – झाबुआ जिले के विभिन्न विभागों में बाबुओं का बोलबाला चल रहा है चाहे वह स्वास्थ्य विभाग में मनीष और प्रवीण का हो या फिर जनजाति कार्य विभाग में चित्तौड़िया का हो या फिर वन विभाग में कंप्यूटर बाबू का । इन बाबुओं ने पूरी विभाग की कार्यप्रणाली अपने अनुसार सेट कर रखी है और मनमाने तौर पर कार्य कर फर्म विशेष को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए पुरजोर प्रयास कर रहे हैं और आर्थिक लाभ भी ले रहे हैं । वन विभाग के कंप्यूटर बाबू ने शासकीय निविदा प्रक्रिया को चैलेंज करते हुए फर्म विशेष को लाभ दिलाने के लिए टेंडर ही कैंसिल करवा दिए ।

जी हम बात कर रहे हैं झाबुआ के वन मंडलाअधिकारी कार्यालय की , जहां पर कार्यरत कंप्यूटर बाबू की एक नई कार्यप्रणाली देखने को मिली । वन विभाग द्वारा अप्रैल माह में विभिन्न निर्माण कार्य के लिए ईट,रेत, गिट्टी , सीमेंट, सरिया, टाइल्स आदि करीब 18 सामग्री की निविदाए आमंत्रित की गई । विभाग द्वारा 28 अप्रैल को दरें भी स्वीकृत कर दी । और करीब 3 माह बाद टेंडर को कैंसिल किया जाना जन चर्चा का विषय हैं । लेकिन वन विभाग के इस कंप्यूटर बाबू द्वारा अपने मित्र की फर्मों पर किसी भी तरह की दरें स्वीकृत ना होने पर काफी हताशा हुई और तब से ही यह बाबू यह प्रयास में लग गया कि किस प्रकार इस निविदा प्रक्रिया को कैंसिल करवाया जाए । तब इस कंप्यूटर बाबू ने एक नया फार्मूला बनाते हुए एक चक्रव्यूह रचना की , जिसके अंतर्गत सर्वप्रथम उस बाबू द्वारा अपने मित्र की फर्म के माध्यम से वन विभाग में इस निविदा प्रक्रिया को लेकर आपत्ति जताई । आपत्ति का सीधा सा उद्देश्य था कि इस कंप्यूटर बाबू द्बारा मित्र फर्म को पुन: निविदा प्रक्रिया में एंट्री दिलवाना , जिससे कुछ सामग्री की दरें इनकी भी स्वीकृत हो ।और आपती अनुसार इस निविदा प्रक्रिया को ऑनलाइन टेंडर पद्धति के माध्यम से निष्पादित की जाए । विभाग के वनमंडल अधिकारी ने भी अपने ही शासकीय नियम प्रक्रिया को नकारते हुए जो, कि विधिवत रूप से निविदा को पेपर में पब्लिश किया गया तथा इस निविदा प्रक्रिया में झाबुआ , धार और रतलाम जिले की फर्मों ने भी निविदा प्रक्रिया मे हिस्सा लिया और न्यूनतम दर होने के कारण संभवत: झाबुआ के अलावा जावरा, धार, रतलाम व सेंधवा की फर्म की दरें भी स्वीकृत की गई थी । लेकिन कंप्यूटर बाबू को यह सब नागवार गूजरा और अपनी चक्र व्यूह अनुसार शासकीय ऑफलाइन पद्धति को नकारते हुए इस बाबू ने ऑनलाइन टेंडर पद्धति के माध्यम से निविदाएं आमंत्रित की । जबकि नियमानुसार यदि कोई निविदा अस्वीकृत होती है तो सर्वप्रथम पूर्व स्वीकत फर्मो को सूचना देने के साथ-साथ शासकीय प्रक्रिया में लगाई गई एफडीआर की राशि को भी लौट आना होता है । लेकिन इस कंप्यूटर बाबू ने तो सारे नियम कायदों को साथ में रखकर तथा एफडीआर भी अपनी पेटी में छुपा कर रखी, जिससे स्वीकृत दरे वाली फर्म को पुन: सूचना ना मिल जाए और वह इस प्रक्रिया में भाग ना ले ले । कंप्यूटर बाबू द्वारा रचित अपना इस चक्रव्यूह में वह कामयाब भी हुआ और ऑनलाइन टेंडर पद्धति के माध्यम से नई निविदाएं प्रक्रिया ऑनलाइन पद्धति से की आमंत्रित गई । विभागीय सूत्रों की माने तो इस कंप्यूटर बाबू का अपने मित्र की फर्म से विशेष लगाव है तथा संभवत: बाबू को इसके लिए स्पेशल कमीशन भी प्राप्त होता है प्रश्न यह है कि आखिर डीएफओ द्वारा शासकीय नियम अनुसार स्वीकृत दरों को नकारते हुए पुनः ऑनलाइन पद्धति को आमंत्रित करना…। पूरी कार्यप्रणाली जांच का विषय है कहीं इस विभाग द्वारा फर्म विशेष को लाभ देने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा है । कहीं यह भाजपा के सुशासन को कुशासन में बदलने का प्रयास तो नहीं । आओ पता लगाए :- वन विभाग में वह कौन कंप्यूटर बाबू है जिसने अपने मित्र की फर्म दरे निविदा मे स्वीकृत ना होने पर टेंडर ही कैंसिल करवा दिए हैं…..? कया शासन प्रशासन इस तरह की कार्यप्रणाली को लेकर और कंप्यूटर बाबू की इस चक्रव्यूह की रचना को लेकर कोई जांच निर्देशित करेगा या फिर यह कंप्यूटर बाबू आर्थिक लाभ के लिए यूं ही टेंडर कैंसिल करवाता रहेगा……?

शासकीय नियम अनुसार निविदा प्रक्रिया को आमंत्रण करना , व्यक्ति विशेष की आपत्ति के आधार पर शासकीय पद्बती को कैंसिल करना , पश्चात पुनः आनलाईन नवीन पद्धति के माध्यम से आमंत्रण करना, विभागीय कार्यप्रणाली को लेकर जांच का विषय है जिला प्रशासन को इस और ध्यान देकर संपूर्ण कार्य प्रणाली की जांच करवाना चाहिए ।

मनोज अरोरा, भाजपा एनजीओ प्रकोष्ठ जिला संयोजक, झाबुआ

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