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खत्म हो रही चौरानी पान की विरासत:मुगल बादशाहों के दरबार से लेकर खाड़ी देशों तक रहा मशहूर; अब लागत भी नहीं निकल रही दिव्यराज सिंह राठौर ।

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खत्म हो रही चौरानी पान की विरासत:मुगल बादशाहों के दरबार से लेकर खाड़ी देशों तक रहा मशहूर; अब लागत भी नहीं निकल रही दिव्यराज सिंह राठौर ।

(दैनिक भास्कर से सादर साभार)

रतलाम(दिव्यराज सिंह राठौर । ) अपने देश के साथ ही पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान और बांग्लादेश में मशहूर चौरानी का नाम पान के शौकीनों ने जरूर सुना होगा। मध्यप्रदेश के रतलाम जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर चौराना गांव में इस पान की पैदावार होती है। अब इसकी खेती में हो रहे लगातार घाटे ने इस विरासत को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा दिया है। वजह है- पान की खेती में लागत और मुनाफे का अंतर कम होता जा रहा है।

दो साल पहले तक हर किसान को पान की प्रति कतार के हिसाब से 5 हजार रुपए मिल जाते थे, जो कि अब कम होकर मात्र 2 से 3 हजार रुपए रह गया है। चौरानी पान की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि ऐसे में मेहनत और लागत लगाने के बाद भी नुकसान उठाना पड़ रहा है।

इस पान का इस्तेमाल इसके गुणों की वजह से आयुर्वेदिक औषधि के रूप में भी किया जाता है।

किसान महेंद्र और राजेश चौरसिया की जुबानी, चौरानी पान की कहानी…

हमारे देश में प्रसिद्ध बनारसी पान, मद्रासी, कपूरी, सुहागपुरी, रामटेकी और महोवा पान से अलग मालवा के चौरानी पान की अपनी एक अलग ही पहचान है। जैसे ये सभी पान की किस्में अपने-अपने क्षेत्र के नाम से मशहूर है, इसी तरह रतलाम के चौरानी पान का नाम भी चौराना गांव के नाम से पड़ा है। चौराना गांव में इस खास पान की खेती करने वाले 8- 10 किसान ही बचे हैं, जो सालों से चली आ रही पारंपरिक खेती और विरासत को संभाले हुए हैं।

मुगल काल से ही इस गांव में तंबोली चौरसिया समाज के लोग पान की खेती कर रहे हैं। यह खेती करीब 300 वर्ष से जारी है। शुरुआती दौर में मेरे पूर्वजों ने रिश्तेदारों के यहां से पान की बेल लाकर गांव के छोटे से हिस्से में खेती शुरू की थी। धीरे-धीरे गांव में करीब 20 बीघा क्षेत्र में इसकी खेती होने लगी। आसपास के शहरों में यह चौरानी पान के नाम से मशहूर होने लगा।। मुगल काल के अंतिम दौर में यहां के पान की चर्चा दिल्ली दरबार तक पहुंची। साथ ही अन्य बड़े शहर जैसे कराची, लाहौर, लखनऊ, वाराणसी और कोलकाता में भी यहां के पान का स्वाद पहुंचा।

इस पान का इस्तेमाल इसके औषधीय गुणों की वजह से आयुर्वेदिक औषधि के रूप में भी किया जाता है। भोजन के बाद पान के सेवन से पाचन की प्रक्रिया बेहतर होती है। चौरानी पान के सेवन से गले का इन्फेक्शन और खराश दूर होती है। पान का उपयोग औषधि के रूप में करने से उदर, यकृत और श्वास रोग में राहत मिलती है। आयुर्वेद के जानकारों के मुताबिक चौरानी पान में औषधीय गुण बाकी क्षेत्रों के पान की अपेक्षा अधिक होता है।

चौराना गांव में तंबोली चौरसिया समाज के लोग इस पारंपरिक पान की खेती को करीब 300 साल से करते आ रहे हैं।

5 महीने की कड़ी मेहनत से चौरानी पान की फसल तैयार होती है। चौरानी पान जितना प्रसिद्ध है, उतनी ही मेहनत इसकी खेती में करनी पड़ती है। मिट्टी की गहरी जुताई करके करीब 1 फीट ऊंचा बेड (मेढ़) बनानी होती है। इसके बाद बेड पर पान की बेल की कलम डेढ़ बाय डेढ़ की दूरी पर लगाई जाती है।

गर्मी का मौसम होने की वजह से सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था करनी पड़ती है। कीट और मौसम की मार से बचाने के लिए इसे छायादार नेट हाउस में लगाया जाता है। नेट हाउस की सुविधा नहीं होने पर किसान मिलजुल कर बांस-बल्ली और नेट का उपयोग कर नेट हाउस तैयार करते हैं। पान के स्वाद और गुणवत्ता पर कोई असर ना हो इसके लिए किसी भी प्रकार के कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

क्यों खो रही चौरानी पान की विरासत

चौराना गांव में पहले करीब 20 बीघा जमीन पर चौरसिया समाज के 80 से अधिक किसान पान की खेती किया करते थे। अब मात्र 8 से 10 किसान ही पान की खेती कर रहे हैं। विडंबना यह रही कि अधिकांश किसानों के पास खुद की जमीन नहीं थी। जिनके पास जमीन थी वह भी बेचकर शहर चले गए। पहले ये सभी किसान जमीन लीज पर लेकर पान की खेती करते थे।

बीते कुछ सालों में जमीन की लीज के रेट बढ़ने के कारण पान की खेती लीज की जमीन पर करना महंगा हो गया है। गांव में अब सिंचित एक बीघा जमीन लीज पर लेने के लिए 20 हजार रुपए वार्षिक तक खर्च करना पड़ रहा हैं।

लोन भी नहीं ले पाते पान की खेती करने वाले

किसान महेंद्र चौरसिया बताते हैं कि मैंने अपने तीनों बेटों को इंदौर निजी कंपनी में काम करने के लिए भेज दिया है। जब तक हो सकेगा, वे खेती करेंगे और फिर गांव छोड़कर अपने बेटों के पास चले जाएंगे। उनका कहना है कि लीज की जमीन होने की वजह से कृषि और उद्यानिकी विभाग की नजरों में ये लोग किसान हैं ही नहीं। इन्हें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से लेकर उद्यानिकी विभाग की विभिन्न सब्सिडी योजनाओं का कोई लाभ प्राप्त नहीं मिलता है। इन्हें पान की खेती के लिए कोई सहकारी सोसायटी या बैंक लोन भी नहीं देती है। ना ही इन्हें किसान क्रेडिट कार्ड प्रदान किया गया है।

लगातार हो रहे नुकसान की वजह से अब किसान पान की खेती छोड़ रहे हैं। गांव में गिनती के ही कुछ लोग हैं, जो इस विरासत को संभाल रहे हैं। उनका भी मन अब इस खेती से उचट गया है।

खाड़ी देशों के साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी यहां के पान की मांग होने से अच्छे दाम मिलते थे।

ऐसे समझें पान की खेती में घाटे का गणित

पहले किसानों के समूह होने की वजह से अधिक मात्रा में पान की कतार तैयार करते थे। इससे अच्छा उत्पादन मिल जाता था। सभी किसानों का उत्पादन एक साथ कम लागत में दिल्ली और मुंबई की मंडी तक पहुंचाया जाया करता था। इससे प्रत्येक किसान को अच्छा मुनाफा हासिल हो जाया करता था। खाड़ी देशों के साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी यहां के पान की मांग होने से अच्छे दाम मिलते थे।

किसान महेंद्र चौरसिया ने बताया कि उनके पास पान की 200 फीट लंबी 23 कतारें हैं। अच्छा उत्पादन होने पर एक कतार से 2 से 3 हजार मुनाफा मिलता है। लेकिन मौसम की मार की वजह से घाटा उठाना पड़ता है।

महेंद्र ने बताया कि किसान लीज पर 1-2 बीघा जमीन लेते हैं। इसी जमीन पर पनवाड़ी तैयार की जाती है। एक बीघा जमीन पर पनवाड़ी तैयार करने में 3 लाख रुपए का खर्च आता है। इसमें डेढ़ से दो लाख रुपए प्रतिवर्ष के पान का उत्पादन होता है। प्राकृतिक आपदा और बीमारियों से सुरक्षित रहने पर तीसरे और चौथे वर्ष भी पान का उत्पादन लिया जा सकता है। पनवाड़ी में तैयार की गई पान की कतार दो से तीन किसान मिलकर तैयार करते हैं। औसतन एक किसान के हिस्से में 20 से 30 कतारें आ जाती हैं।

पहले पान के पत्तों का उत्पादन अधिक मात्रा में होने की वजह से ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट भी कम लगती थी, लेकिन अब पान मंडी तक पहुंचाने के लिए खर्च भी बढ़ गया है।

पान की कतारों को अपने इन्वेस्टमेंट के हिसाब से किसान आपस में बांट लेते हैं। तीन से चार साल पहले तक 200 फीट लंबी पान की एक कतार से सीजन में 5 हजार तक का लाभ मिल जाता था। लेकिन अब पान का एक्सपोर्ट बंद हो जाने की वजह से यह मुनाफा 2000 से 3000 रुपए तक ही रह गया है। अब किसानों की मजदूरी भी नहीं निकल पा रही है। पहले पान के पत्तों का उत्पादन अधिक मात्रा में होने की वजह से ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट भी कम लगती थी, लेकिन अब पान मंडी तक पहुंचाने के लिए ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी बढ़ गया है।

पान की खेती को बचाने के लिए प्रपोजल भेजा

गांव के समाजसेवी तूफान सिंह ने बताया कि गांव के जनप्रतिनिधियों के साथ कृषि मंत्री कमल पटेल से मिलकर पान की खेती को संरक्षित खेती घोषित करने और लीज पर खेती करने वाले किसानों को योजनाओं का लाभ देने की मांग की है। कृषि मंत्री ने भी इस मांग को पूरा करने के लिए सकारात्मक कदम उठाने की बात कही है।

वहीं, उप संचालक कृषि विभाग विजय चौरसिया ने बताया कि पान की खेती करने वाले किसानों के लिए विशेष प्रोजेक्ट का प्रपोजल वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा गया है। इसके तहत किसानों को पान की खेती करने के लिए शासकीय योजनाओं का लाभ मिल सकेगा।

किसानों के मुताबिक उनके पास पान की 200 फीट लंबी 23 कतारें हैं। अच्छा उत्पादन होने पर एक कतार से 2 से 3 हजार मुनाफा मिलता है।
(दैनिक भास्कर से सादर साभार)

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