RATLAM

सांसद  श्री गुमानसिंह डामोर ने जनजातीय क्षेत्रों में धर्मान्तरण के मुद्दे को शिद्दत के साथ उठाया । जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुण्डा ने सांसद की सक्रियता पर प्रसन्नता व्यक्त की ।

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सांसद  श्री गुमानसिंह डामोर ने जनजातीय क्षेत्रों में धर्मान्तरण के मुद्दे को शिद्दत के साथ उठाया ।
जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुण्डा ने सांसद की सक्रियता पर प्रसन्नता व्यक्त की ।
रतलाम। रतलाम झाबुआ आलीराजपुर के सांसद श्री गुमानसिंह डामोर लोकसभा में अंचल के विकास के साथ ही जनजातीय अंचल में शिक्षा, स्वास्थ्य, विकास एवं रीति रिवाजों आदि कोलेकरमुखरता के साथ हर बार प्रश्नों के माध्यम से  अंचल की आवाज को बुलंद करते रहे है । हाल ही में वर्तमान में चल रहे लोकसभा के सत्र मं सांसद श्री डामोर ने लोकसभा में सभापति श्री ओम बिरला के माध्यम से भारत सरकार जनजातीय कार्य मंत्रालय से प्रश्न किया कि जनजातीय संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों का संरक्षण हेतु निम्न बिंदु पर भारत सरकार के क्या विचार है। उन्होने लोकसभा अध्यक्ष के माध्यम से केन्द्रीय जनजातीय कार्यमंत्री श्री अर्जुन मंुडा से प्रशन पुछा कि क्या जनजातीय संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों के संरक्षण के लिए कोई नीति बनाई गई है, यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है। क्या जनजातीय क्षेत्रों में धर्मान्तरण के माध्यम से जनजातीय संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों को स्थायी रूप से नष्ट किया जा रहा है। क्या जनजातीय क्षेत्रों में धर्मान्तरण पर प्रतिबंध लगाकर जनजातीय संस्कृति, परंपराओं और रीतिरिवाजों के संरक्षण के लिए कदम उठाने का कोई प्रस्ताव है। यदि हां, तो तत्संबंधी ब्यौरा क्या है और यदि नहीं, तो क्या इस पर विचार किए जाने की संभावना है। भारतीय संस्कृति के संरक्षण में कौन-कौन से निजी संस्थान शामिल हैं। और (च) उनकी भागीदारी से संस्कृतियों के संरक्षण में किस हद तक मदद मिली है ?

इस  पर केन्द्रीय जनजातीय मंत्री श्री अर्जुन मुंडा नेे प्रश्न का जवाब देते हुए सदन में कहा कि-जनजातीय कार्य मंत्रालय ने जनजातीय संस्कृति, परंपरा और रीति-रिवाजों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं। मंत्रालय जनजातीय अनुसंधान संस्थान को सहायता और जनजातीय अनुसंधान, सूचना, शिक्षा, संचार और कार्यक्रम की योजनाओं को क्रियान्वित कर रहा है, जिसके तहत जनजातीय समुदायों की जनजातीय संस्कृति, अभिलेखागारों, कलाकृतियों, रीति-रिवाजों और परंपराओं को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए विभिन्न गतिविधियां की जाती हैं। राज्यों-संघ राज्यक्षेत्रों में 27 जनजातीय अनुसंधान संस्थान हैं और दिल्ली में राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान है। इन पहलु में से कुछ उल्लेखनीय पहलें इस प्रकार हैं । मंत्री ने आगे प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि जनजातीय लोगों के वीरता और देशभक्ति पूर्ण कार्यों के लिए सम्मान (अभिस्वीकृति) प्रकट करने और क्षेत्र की समृद्ध जनजातीय सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने के लिए, मंत्रालय ने 10 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी के संग्रहालयों को मंजूरी दी है।मंत्रालय ने खोज योग्य डिजिटल रिपॉजिटरी (निधान) विकसित की है जहां सभी शोध पत्र, किताबें, रिपोर्ट और दस्तावेज, लोक गीत, फोटो – वीडियो अपलोड किए जाते हैं। रिपॉजिटरी में वर्तमान में 10,000 से अधिक तस्वीरें, वीडियो और प्रकाशन हैं जो ज्यादातर जनजातीय अनुसंधान संस्थानों द्वारा किए जाते हैं। रिपॉजिटरी को ट्राइबल डिजिटल डॉक्यूमेंट रिपॉजिटरी और ट्राइबल रिपोजिटरी पर देखा जा सकता है।
मंत्री श्री मुंडा ने उत्तर देते हुए कहा कि नागालैंड के हॉर्नबिल उत्सव, तेलंगाना के मेदारामजात्रा जैसे राज्य स्तरीय उत्सवों को टीआरआई योजना के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है। जनजातीय कार्य मंत्रालय (एमओटीए) द्वारा लोक नृत्यों, गीतों, व्यंजनों, चित्रकला, कला और शिल्प, औषधीय प्रथाओं आदि में पारंपरिक कौशल के प्रदर्शन के अनूठे रूपों के माध्यम से देश भर में जनजातीय लोगों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की झलक प्रदर्शित करने के लिए राज्य जनजातीय उत्सव, मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को वित्त पोषित किया जाता है।ट्राइफेड जनजातीय उत्पादकों के आधार का विस्तार करने के लिए राज्यों , जिलों,गांवों में सोर्सिंग स्तर पर नए कारीगरों और नए उत्पादों की पहचान करने के लिए जनजातीय कारीगर मेलों (टीएएम) का आयोजन करता है। राज्यों के नृवंशविज्ञान संग्रहालय विभिन्न जनजातियों के जीवन और संस्कृति से संबंधित दुर्लभ कलाकृतियों को संरक्षित और प्रदर्शित करते हैं। जनजातीय अनुसंधान, सूचना, शिक्षा, संचार और कार्यक्रम (टीआरआई-ईसीई) के तहत, प्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थानों,संगठनों , विश्वविद्यालयों ने जनजातीय मुद्दों पर शोध अध्ययन के अंतर को पाटने और समृद्ध जनजातीय संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों को बढ़ावा देने के साथ-साथ जनजातीय मामलों से जुड़े जनजातीय व्यक्तियोंध्संस्थाओं के क्षमता निर्माण, सूचना के प्रसार और जागरूकता सृजन के लिए ऑडियो विजुअल वृत्तचित्र सहित विभिन्न शोध अध्ययन , पुस्तकों का प्रकाशन , दस्तावेजीकरण किया है। (अपप) संस्कृति मंत्रालय जनजातीय संस्कृति सहित संस्कृति के संवर्धन के लिए नोडल मंत्रालय है।
इसके अलावा, जनजातीय संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों की सुरक्षा, परिरक्षण, संरक्षण और संवर्धन के लिए पर्याप्त संवैधानिक और वैधानिक सुरक्षा उपाय हैं। संविधान की पांचवीं अनुसूची में अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्यों में जनजातीय सलाहकार परिषदों की स्थापना का प्रावधान है। इसके अलावा, यह ऐसे राज्यों में राज्यपाल की विशेष शक्तियों का प्रावधान करता है। पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 में इसी तरह परंपराओं और रीति-रिवाजों और उनकी सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा और परिरक्षण के लिए ग्राम सभाओं,ग्राम पंचायतों को व्यापक अधिकार प्रदान करता है। असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में लागू छठी अनुसूची, सामाजिक रीति-रिवाजों के मामलों में जिला और क्षेत्रीय परिषदों को सशक्त बनाती है। यहां पहले उल्लेखित टीआरआई और टीआरआई-ईसीई को सहायता की योजनाएं और उनके तहत शुरू की गई गतिविधियां भी जनजातीय संस्कृति, परंपराओं और रीति-रिवाजों के संरक्षण और संवर्धन की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। श्री मुंडा ने सांसद श्री डामोर की सक्रियता को लेकर व्यापक प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उन्हे संसदीय क्षेत्र की समस्याओं के साथ ही विकासोन्मुखी प्रश्न पुछले के लिये उनकी प्रशंसा भी की ।

संसद मे प्रश्न क्रमांक 42 के तहत पूरक प्रश्न पुछते हुए सांसद श्री डामोर ने लोकसभा अध्यक्ष के माध्यम से जनताीय विभाग के मंत्रीजी से यह जानना चाहा कि जिस प्रकार से जनजातीय क्ष्ेात्रों मे नीजी संस्थायें धर्मान्तरण का काम करती है, जनजातीय संस्कृति को नष्ट करती है ,सरकार प्रयास तो कर रही है किन्तु इस क्षेत्र में नीजी संस्थाओं का सहयोग लेकर धर्मान्तरण को रोका जा सकता है, जनजातीय संस्कृति का सरंक्षण किया जा सकता हैे क्या?
इस पर मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने जवाब देते हुए कहा कि  सांसद ने जो चिंता जाहिर की है,  जो जनजातीय क्षेत्र  है उसमे विशेष प्रावधान ह, इस संबध में राज्य में जनजातीय सलाहकार परिषद है, उसके माध्यम से ऐसे विषय पर चर्चा करने के लिये संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। राज्यों को ऐसे मालोंपर विचारकरते हुए यह ध्यान में रखना चाहिये कि उनकी संस्कृति परम्परायेंब नी रह सकें ।
मंत्रीजी के उत्तर पर पुनः पूरक प्रश्न करते हुए सांसद श्री गुमानसिंह डामोर नेमंत्री जी से लोकसभा अध्यक्ष के माध्यम से पुछा कि क्या जनजातीय संस्कृति, रीति रिवाज आदि को लेकर जनजातीय क्षेत्रों में सरंक्षण के उपयायों को स्कूलों के पाठ्यक्रमों में शामील करेगें ? इस पर जनजातीय कार्यमंत्री श्री अुर्जन मंुडाने जवाब दिया कि नई शिक्षा नीति में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नई शिक्षा नीति प्रस्तुत की गई है तथा हाल ही में मानव संसाधन शिक्षा मंत्री ने जो प्रयत्न किया है उसमें जनजातीय क्षेत्रों में भाषाओं को सवंर्धित करने का ऐसे चिजों को जिसें सांस्कृतिक विरासत बनी रहे, राज्य सरकारों को भी निर्देशित किया गया है कि पाठ्यक्रमों में राज्य स्तर तथा केन्द्र स्तर पर इसके लिये कार्य चल रहा है।
इस तरह क्षेत्रीय सांसद श्री गुमानसिंह डामोर ने रतलाम, झाबुआ, आलीराजपुर संसदीय क्षेत्र की जनजातीय विरासत, धर्मान्तरण को लेकर जो आवाज उठाई है तथा केन्द्र एवं राज्य स्तर से जो कदम उठाये जारहे है को लेकर अंचल में व्यापक खुशिया व्याप्त है तथा  सांसद की सक्रियता की सर्वत्र प्रसंशा हो रही है ।

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