महाराजश्री ने आगे कहा कि शत्रुता के बाद फिर से मित्रता हो गई हो तो भी उसका विश्वास नहीं करना चाहिए, सृष्टि के प्रादुर्भाव के समय ब्रह्मा के दक्षिण अंग से मनु तथा वाम अंग से शतरूपा प्रकट हुई थी मनु व शत्रुपा ने प्रभु से याचना की थी कि वे उनके यहां जन्म ले तो उनकी सेवा, भक्ति तथा दर्शन करते रहेगे।
प्रभु से की गई याचना असफल नहीं होती
प्रभु से की गई याचना कभी असफल नहीं होती, क्योंकि प्रभु देने में कभी इंकार नहीं करते हैं और प्रभु ने मनु शतरूपा के यहां जन्म लिया। उन्होंने कहा कि गुरु का तिरस्कार करने वाला, ब्राह्मणों का श्राप विनाशी वस्तु के प्राप्ति के उपदेश देने वाला व्यक्ति उपदेश प्राप्त करने वाले व्यक्ति का विनाश करवाता है ।
व्यक्ति को मंत्र योग व तप गुप्त रखना चाहिए
उन्होंने कहा कि भगवत प्राप्ति मनुष्य मात्र के जीवन का परम लक्ष्य है धर्म आचरण करना इस मार्ग को प्रशस्त करता है, व्यक्ति को मंत्र योग व तप गुप्त रखना चाहिए तो ही वह फलीभूत होते हैं। कथा के अंत में प्रभु की आरती रंगकर्मी व अधिवक्ता कैलाश व्यास, ट्रस्टी राजेंद्र शर्मा, दिनेश वाघेला, पोरवाल महिला मंडल अध्यक्ष लता सेठिया ,कोमल पोरवाल, मनोरमा चौहान, हर्ष चौहान, ट्रस्ट अध्यक्ष राजाराम मोतियानी, समिति अध्यक्ष मोहनलाल भट्ट तथा नागरिकों ने की। अंत में आरती कर प्रसाद वितरित की गई।( दैनिक पत्रिका से साभार)