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परमात्मा की प्राप्ति के पावन प्रांगण तक पहुंचने के लिए शिवत्व के मार्ग से होकर जाना होगा- आचार्य श्री रामानुजजी । मानस शिवचरित्र  कथा पिपलखुटा में बह रही ज्ञान गंगा

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परमात्मा की प्राप्ति के पावन प्रांगण तक पहुंचने के लिए शिवत्व के मार्ग से होकर जाना होगा- आचार्य श्री रामानुजजी ।
मानस शिवचरित्र  कथा पिपलखुटा में बह रही ज्ञान गंगा

झाबुआ।  पदमावती नदी के पावन तट स्थित श्री हनुमंत निवास आश्रम पिपलखुटा पर श्री मानस शिवचरित्र कथा का श्रीगणेश आचार्य श्री रामानुजजी के श्रीमुख से गणेश वंदना के साथ हुआ ।  आचार्यश्री ने कथा के प्रथम दिन संभु चरित सुनी सरस सुहावा । भारद्वाज मुनि अति सुख पावा । बहुलालसा कथा पर बाढ़ी नयनन्हि नीरू रोमावली ठाढ़ी ।
श्री रामचरित्र मानस की चैपाईयों को संबल बना कर कहा कि पोथी का पल्लू पकड़कर पूरी दुनिया में  मेरी  यात्रा होती है, आपकी श्रद्धा एव भगवद्प्रेम ही व्यासपीठ के अनुष्ठानों का कारण बनती है , हमारा भी अनुष्ठान सिद्ध होता है तब इतने सरल संत दयाराम दास जी जैसे  प्राप्त होते है , इनका प्रेम और करुणा बरबस यंहा खिंचलाती है , ऐसे अवसर जीवन मे बारबार नही मिलते , मुझपर महाराज जी का विशेष प्रेम है । आचार्य रामानुज जी ने कहा शायद हनुमान चालीसा का कोई मन्त्र दिल से लिया गया होगा इसके परिणाम में ऐसे संतो का सानिध्य मिला ,। वैदिक सिद्धान्त भगवान को ईश्वर के नाम से पुकारता है । जब हम मुस्कराते है तो भगवान महादेव भी मुस्कुराते है। हमारे रुदन में उनकी करुणा होती है ।
उन्होने शिव मानस कथा कहते हुए कहा कि शिव में शिवत्व की अवधारणा क्या है ?, यह समझने के लिए शिव की शरण मे जाना पड़ेगा । भगवान शंकर की ंकथा हमारी अन्र्तआत्मा की कथा है , बहिर्मुखी जगत को छोड कर शास्वत सत्य से मिलने का अवसर है शिवचरित्र को सुनना । शिवश्रद्धा में रहने वाला व्यक्ति अवैदिक आचरण भी कर सकता है । यह विद्वानों का मत है । किंतु तुलसीदासजी कहते है कि ’’सरस सुहावा’’ यह चरित्र सरस है सुनने वाले का आचरण भी सरस हो जाता है । आचार्य रामानुजजी ने आगे कहा कि परमात्मा की प्राप्ति के पावन प्रांगण तक पहुंचने के लिए शिवत्व के मार्ग से होकर जाना होगा ।  शिवचरित में भगवान विष्णु की एक विशिष्ट छवि का दर्शन होगा और भगवान विष्णु में शिव नजर आएंगे यह अन्योन्न है, मिलेंगे तो दोनों मिलेंगे नही ंतो कोई नही भी नही मिलेगा । आचार्य के अनुसार भरम न जाए तो सत्य सन्मुख होते हुए भी समझ नही आता । पूज्य गोलोकवासी श्री जमुनादास जी महाराज का ध्येय वाक्य जो दाड़की करेगा वो सुखी रहेगा ,यह मंत्र है तन्मेमनः शिवसंकल्पमस्तु । जब मन सहज हो जाए तब उस सहजता में सापेक्षता में  ही ईश्वर का आभास होता ही है । जब आत्मा में शंकर बैठकर मुस्कुरा दे, तब व्यक्ति जय सियाराम बोलता है, जब हृदय में राम बैठे तब व्यक्ति महादेव बोलता है । पूज्य श्री ने कहा कि तुलसीदास जी की कीर्ति तो राममंदिर की ध्वजा बखान करती है । हमारे भीतर समाधि औेर नृत्य दोनों होना चाहिए ,। हर शब्द में हर हर महादेव का नाद होने लगे तब समझना कि शिवचरित्र भीतर उतर रहा है  ।
उन्होने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि हम हमारी प्रतिष्ठा में जिसके इसलिए हमें मानव जीवन मिला है , दूसरो की प्रतिष्ठा का ध्यान रखे एव अपनी प्रतिष्ठा की अवहेलना न करें । खुदपर भरोसा न रखने वाला व्यक्ति भिक्षुक बनता है । वाराणसी स्थित एक ब्राह्मण कि कथा का सुंदर वर्णन करते हुए आज की कथा को विराम दियागया ।
पिपलखूटा तीर्थ पर आयोजित शिव चरित्र मानस कथा के अवसर पर महन्त दयारामदास जी महाराज ने पोथी पूजन किया । इस अवसर पर सैकडो की संख्या में श्रद्धालुजनों ने शिव मानस चरित्र कथा का रसास्वादन किया । ज्ञातव्य है कि आज 8 अगस्त से प्रारंभ हुई कथा 16 अगस्त तक होगी तथा जिले के दूर दूर से अंचल से आये श्रद्धालुजन इस पावन कथा का रसास्वादन लेगें

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