झाबुआ

मृत्यु सामने हो और नवजीवन का सूर्य सामने दिखायी दे ,तब समझना कि आप शिवत्व को प्राप्त करने मार्ग पर हो–आचार्य रामानुज जी मानस शिव चरित्र कथा के 8वे दिन भी पिपलखूंटा तीर्थ पर श्रद्धालुओं ने लगाई ज्ञान गंगा मे डूबकी ।

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मृत्यु सामने हो और नवजीवन का सूर्य सामने दिखायी दे ,तब समझना कि आप शिवत्व को प्राप्त करने मार्ग पर हो–आचार्य रामानुज जी

मानस शिव चरित्र कथा के 8वे दिन भी पिपलखूंटा तीर्थ पर श्रद्धालुओं ने लगाई ज्ञान गंगा मे डूबकी ।
झाबुआ । पिपलखूटा स्थित हनुमंत निवास आश्रम पर  मंगलवार को शिव मानस भक्ति कथा में पधारे हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुजनों को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सभी को बधाई देते हए पूज्य आचार्य श्री रामानुज जी ने कहा कि एक बात मुझे स्मरण मे आरही है ,दुनिया के असंख्य देशो मे हमारे भारतीय लोग देश का नाम गौरवान्वित कर रहे है, केवल अमेरिका मे ही 80 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय ही चिकित्सक है , हमारा  राष्ट्र स्वर्णयुग की और बढ़ रहा है,। स्वर्णयुग तभी साकार हो पायेगा जब हर भारतीय देश के विकास मे अपना अपना योगदान प्रदान करना आरम्भ कर दे। विज्ञान जब तक उपयोगी है तब तक वरदान है ,किन्तु जब यही विज्ञान नशा बन जाए तो फिर वह अभिशाप है। आज हम कितना समय विज्ञान के साधनो व्यतीत कर देते है ,जो चिंता का विषय  है ।

आचार्यश्री ने कहा कि मेहनती बने, दाड्की वाले बाबा ने यही तो संदेश दिया,। स्वतंत्रता दिवस पर इस स्वतंत्रता अनुशासन में हैे तो महोत्सव है, वर्ना स्वच्छंदता तो सन्ताप दे ही रही है । ईश्वर के गीत जीवन का संबल है । जीवन मे जब सत्य समझ में आ गया और आप सत्य के साथ हो लिए, तभी आप परमश्रेष्ठ करना सिख जाओगे,। जहाँ जीवन बदल जाए, आयाम बदल जाए उसे प्रेम  कहते है,। प्रेम जगाता है, रुलाता है, उद्वेलित करता है, उसी स्थिति मे तब सार निकलता है कि सत्य और प्रेम का सार ही शिवत्व है । जीवन मे करुणा होती है तो केवल दूसरो को भोजन मात्र करवा देने से व्यक्ति तृप्ति प्राप्त कर लेता है । मृत्यु सामने हो और नवजीवन का सूर्य सामने दिखायी दे ,तब समझना कि आप शिवत्व को प्राप्त करने मार्ग पर हो ।

 

उन्होने आगे कहा कि ईश्वर ने कुछ दिया है तो आप कुछ देना सीखे । अपनी करुणा का पुष्प महादेव पर चढाने से पूजा का स्वीकार्य होगा । स्वार्थ के कारण जब झूठ बोलने का मंन करे, तब याद करना कि हमारे माता पिता शंकर पार्वती है । उनका नाम खराब हो जाएगा । भगवान महावीर स्वामी ने प्रतिक्रमण का मार्ग बताया, अहिंसा का मार्ग बताया यानी धर्म का मार्ग बताया।

भगवान श्री राम के प्रति शिव जी की भक्ति का उदरहरण देते हुए उन्होने कहा कि अगस्त ऋषि के आश्रम में रामकथा सुनने गए थे, शिवजी और सती,। किन्तु सती ये बात समझ नहीं सकी कि शिवजी श्रीराम को अपना आराध्य क्यों मानते हैं ? वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी को एक-दूसरे की बात पर भरोसा करना चाहिए। अगर इस रिश्ते में अविश्वास आता है तो रिश्ते बिगड़ सकते हैं। ये बात शिवजी और सती की एक कथा से भी समझ सकते हैं।
आचार्य श्री के अनुसार श्रीरामचरित मानस के बालकांड में शिव और सती का एक प्रसंग है। शिव और सती, अगस्त ऋषि के आश्रम में रामकथा सुनने गए। सती को ये बात थोड़ी अजीब लगी कि श्रीराम शिव के आराध्य देव हैं। सती का ध्यान कथा में नहीं रहा और वह यह सोचतीं रहीं कि शिव जो तीनों लोकों के स्वामी हैं, वे श्रीराम की कथा सुनने के लिए क्यों आए हैं? कथा समाप्त हुई और शिव-सती वापस कैलाश पर्वत लौटने लगे। उस समय रावण ने सीता का हरण किया था। श्रीराम सीता की खोज में भटक रहे थे। देवी सती को ये देखकर आश्चर्य हुआ कि शिव जिसे अपना आराध्य कहते हैं, वह एक स्त्री के वियोग में साधारण इंसान की तरह रो रहा है। सती ने शिवजी के सामने ये बात कही तो शिवजी ने समझाया कि यह सब श्रीराम की लीला है। भ्रम में मत पड़ो, लेकिन सती नहीं मानीं और शिवजी की बात पर विश्वास नहीं किया। सती ने श्रीराम की परीक्षा लेने की बात कही तो शिवजी ने रोका, लेकिन सती पर शिवजी की बात का कोई असर नहीं हुआ। देवी सती सीताजी का रूप धारण करके श्रीराम के सामने पहुंच गईं। श्रीराम ने सीता के रूप में सती को पहचान लिया और पूछा कि हे माता, आप अकेली इस घने वन में क्या कर रही हैं? शिवजी कहां हैं? जब श्रीराम ने सती को पहचान लिया तो वे डर गईं और चुपचाप शिव के पास लौट आईं। शिवजी श्रीराम को अपना आराध्य देव मानते हैं, सती ने उनकी पत्नी का रूप धारण करके श्रीराम की परीक्षा लेकर उनका अनादर किया है। शिवजी की बात पर अविश्वास किया। इस कारण शिवजी ने मन ही मन सती का त्याग कर दिया। सती भी ये बात समझ गईं और इसके बाद दक्ष के यज्ञ में जाकर आत्मदाह कर लिया था। इस प्रसंग की सीख यह है कि पति-पत्नी के बीच विश्वास होना बहुत जरूरी है। अगर विश्वास टूटता है तो रिश्ते बिगड़ सकते हैं।
आठवें दिन की कथा के विश्राम के अवसर पर पूज्य आचार्यश्री ने कहा कि विराम प्रारम्भ का अनिवार्य सत्य है । कथा के अन्त में महामंगल आरती  तथा महाप्रसादी का वितरण किया गया । 77 वें स्वतंत्रता दिवस पर हनुमंत आश्रम परिसर में तिरंगा भी फहाराया गया तथा सभी ने परस्पर एक दुसरे को आजादी के पर्व की बधाईया दी ।

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