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भास्कर एक्सक्लूसिवयूरोप की सबसे ऊंची चोटी फतह कर लौटी लेडी पटवारी:बर्फीले पहाड़ पर 2 फीट का अंधेरा रास्ता, सिर पर टॉर्च की रोशनी; फिसलने पर लाश भी नहीं मिलती

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भास्कर एक्सक्लूसिव~~यूरोप की सबसे ऊंची चोटी फतह कर लौटी लेडी पटवारी:बर्फीले पहाड़ पर 2 फीट का अंधेरा रास्ता, सिर पर टॉर्च की रोशनी; फिसलने पर लाश भी नहीं मिलती
भोपाल~~लेखक: आशीष उरमलिया

 

सोनाली परमार और अनुराग चौरसिया दुनिया की सातों सबसे ऊंची चोटियों को फतह करने वाले दंपती बनना चाहते हैं।

यह कहानी मध्यप्रदेश की एक लेडी पटवारी की साहसिक यात्रा की है। जिसकी इच्छा है कि वह अपने पति के साथ दुनिया के सातों महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटियों पर तिरंगा फहराए। अगर यह इच्छा पूरी हो जाती है तो ये कारनामा करने वाले ‌‌वे दुनिया के पहले दंपती होंगे। हालांकि, उनकी राह इतनी आसान नहीं है।

सोनाली परमार की ये कहानी इसलिए भी अलग है क्योंकि वो शुजालपुर के छोटे से गांव से निकली हैं। सोनाली उस गांव की ग्रेजुएशन करने वाली पहली स्टूडेंट तो हैं ही, सरकारी नौकरी करने वाली भी पहली लड़की हैं। सोनाली और उनके पति अनुराग चौरसिया रतलाम नगर निगम के स्वच्छता सर्वेक्षण 2023 के ब्रांड एंबेसेडर हैं।

मध्यप्रदेश में रतलाम निवासी इस दंपती ने 16 अगस्त की सुबह 5.40 बजे यूरोप की सबसे ऊंची बर्फीली चोटी एल्ब्रुस फतह की। इससे पहले दुनिया के सबसे ऊंचे खड़े पर्वत किलिमंजारो पर चढ़ाई की। उनका दावा है कि दो द्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों की चढ़ाई करने वाले वो देश के पहले कपल हैं।

सोनाली परमार और अनुराग चौरसिया ने बताया कि बर्फीले पहाड़ पर चढ़ाई करना मौत से खेलने जैसा था। जरा सी चूक होते ही खाई में गिरने का खतरा बना रहता है।

दैनिक भास्कर ने सोनाली और अनुराग चौरसिया से उनके संघर्ष से लेकर चोटी फतह करने तक की पूरी कहानी जानी। दंपती ने बताया- बर्फीले पहाड़ पर चढ़ाई करना मौत से खेलने जैसा था। हम 15 अगस्त को ही चढ़ाई पूरी करना चाहते थे, लेकिन खराब मौसम की वजह से 16 अगस्त को चढ़ाई की। जानते हैं, दंपती की पूरी कहानी, उन्हीं की जुबानी…

माइनस 25 डिग्री का तापमान, चढ़ाई में खून जमने का खतरा

सोनाली परमार ने बताया- हमने 360 एक्सप्लोरर नाम की कंपनी से टाईअप किया था। एल्ब्रुस माउंटेन पर 5 हजार 100 फीट की ऊंचाई तक कंपनी के सपोर्ट से चढ़ाई पूरी की। इसके बाद 5 हजार 642 फीट की ऊंचाई तक की चढ़ाई खुद ही पूरी करनी थी। रात 1 बजे शुरू कर सुबह 5 बजकर 40 मिनट पर हम अपने लक्ष्य पर पहुंच गए थे। चढ़ाई पूरी करने के बाद हमने कंपनी को फोन लगाकर इसकी जानकारी दी। वे लोग ये सुनकर शॉक्ड हो गए। उन्होंने कहा- तुमने इतनी जल्दी चढ़ाई पूरी कैसे कर ली। इसको पूरा करने में 8 से 9 घंटे का वक्त लगता है।

शायद ये हमारी कड़ी प्रैक्टिस का नतीजा था। दुनियाभर के 45 लोगों ने हमारे साथ चढ़ाई शुरू की थी, लेकिन हम वहां सबसे पहले पहुंचे थे। चोटी पर पहुंचकर हमने राष्ट्र ध्वज फहराया। राष्ट्रगान गाया और सूर्य नमस्कार किया।

सोनाली ने कहा- एल्ब्रुस की चोटी पर कुल 6 बाई 6 का टॉप है। बहुत ज्यादा ठंड और तेज हवाएं होती हैं। बैग से राष्ट्र ध्वज निकालने में ही हमें 10 मिनट लग गए थे। लग रहा था कि ग्लब्ज से हाथ निकालते ही फ्रीज न हो जाएं। पहले हमने 51 सूर्य नमस्कार करने का फैसला किया था। कम जगह और शरीर पर भारी वजन होने की वजह से हम एक बार ही सूर्य नमस्कार कर पाए।

एल्ब्रुस पर चढ़ाई से पहले हम अपने साथ पानी और सेब लेकर गए थे। हमने जैसे ही सेब निकाला तो देखा कि वो बर्फ जैसा सख्त हो गया है। वहां का तापमान माइनस 25 डिग्री था। पूरा पहाड़ बर्फ से पटा हुआ था। ऐसे में खून जमने का भी खतरा होता है। 75 डिग्री की सीधी चढ़ाई और शरीर पर 30 से 40 किलो का वजन था। हमने क्रेंपल यानी कांटे वाले जूते पहन रखे थे, वो भी फिसल रहे थे। बहुत संभल-संभल कर कदम रखना पड़ रहा था। चढ़ाई का रास्ता 2 फीट भी चौड़ा नहीं था। उसी में रस्सी बांधकर चलना था। चारों तरफ अंधेरा होता है। सिर पर सिर्फ एक टॉर्च होती है, जिसकी रोशनी में आगे बढ़ना होता है। थोड़ा भी यहां-वहां होते ही हम गहरी खाई में समा सकते थे।

सोनाली ने कहा कि मेरे पिता किसान, मां होममेकर हैं। एक छोटी बहन और भाई है। दोनों उज्जैन से कंप्टीटिव एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं। उनकी पढ़ाई का पूरा खर्च भी मैं ही उठाती हूं। अनुराग के परिवार में माता-पिता हैं। पिता सेल्फ एंप्लाइड थे। अधिक उम्र हो जाने की वजह से घर पर ही रहते हैं। ​​​​​​

अनुराग ने बताया- हमारी शादी मार्च 2019 में हुई थी। इसके करीब दो महीने बाद 23 मई को हमने दैनिक भास्कर के फ्रंट पेज पर बोल्ड अक्षरों में पढ़ा कि मध्यप्रदेश की बेटी मेघा परमार ने एवरेस्ट फतह किया है। ये खबर पढ़ते ही मन उत्साह से भर गया। मैंने सोनाली से कहा- अगर मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव सीहोर की लड़की माउंट एवरेस्ट फतह कर सकती है तो हम भी कुछ कर सकते हैं। सोनाली भी मेरी बात से पूरी तरह सहमत थी। हमने तय तो कर लिया था कि ये करना है लेकिन कैसे, इसकी कोई जानकारी हमें नहीं थी।

ऐसे में हमने मेघा से मुलाकात करने का तय किया। उनको फोन कर कहा कि हम भी पर्वतारोही बनना चाहते हैं। इसके बारे में आपसे जानकारी लेना चाहते हैं। मेघा ने हमें मिलने का समय दिया। हम उनके घर गए। मेघा ने हमें बताया कि जब भी हम किसी ऊंची पहाड़ी के टॉप पर पहुंचते हैं तो आखिरी दिन बहुत इंपॉर्टेंट होता है। हमें मेंटली और शारीरिक रूप से मजबूत होना पड़ता है। मेघा ने हमें एक घंटे में पहले 10 और फिर 20 किमी दौड़ कर प्रैक्टिस करने की सलाह दी थी। हमने इसे अच्छी तरह समझा और खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लिया।

इसके बाद हमने आगे की ट्रेनिंग के लिए माउंटेनियरिंग कंपनी 360 एक्सप्लोरर के साथ टाईअप किया। कंपनी हमें हर दिन शेड्यूल भेजती थी कि आज ट्रेनिंग में क्या करना है। वो हमें कहते थे- आपको 5 किमी साइकिल चलानी है। 5 किमी पैदल भी चलना है। जिम में इतने घंटे ये वर्कआउट और ये योगा-प्राणायाम करने हैं।

बेसिक तैयारी के तौर पर हमने एक महीने तक हर दिन सुबह 5 किमी चलना शुरू किया। फिर 5 महीने तक दौड़ना शुरू किया, इसके बाद साइकिलिंग शुरू की। तैयारी पूरी होने और स्टेमिना बढ़ने के बाद हमने तय किया कि 13 सितंबर को चढ़ाई पर जाएंगे।

कंपनी से तैयारी के लिए जो शेड्यूल आता था, उस पर दोगुनी मेहनत करते थे

अनुराग चौरसिया ने कहा- शुरुआती दिनों में हमारे मन में बहुत दबाव होता था। कॉन्फिडेंस की कमी बनी रहती थी। एक तो हम छोटी सी जगह से थे, दूसरे तैयारी से लेकर चढ़ाई के लिए जाने तक में लगातार पैसा खर्च हो रहा था। हमारे अंदर डर बना रहता था कि इतनी मेहनत के बाद अगर कुछ नहीं कर पाए तो कैसा लगेगा।

कहीं कोई कमी न रह जाए इसलिए तैयारी के दौरान हमारे पास जो शेड्यूल आता था, हम उस पर दोगुनी मेहनत करते थे। 12 किमी दौड़ने का शेड्यूल आता था तो हम 20 किमी दौड़ते थे। एल्ब्रुस की चढ़ाई पर जाने से पहले 10 रविवार तक हमने 50-50 किमी तक साइकिलिंग की। 7-7 किमी की दौड़ लगाई। सारी प्रैक्टिस हमने रतलाम में रहकर ही की।

बेटा पैदा होने के बाद घर-परिवार की जिम्मेदारियां, बच्चे को संभालना और नौकरी भी करना.. इस सबके बीच सोनाली ने इस लेवल पर तैयारी की, ये अपने आप में बहुत बड़ी बात है। उसने मेरा भी मनोबल बढ़ाया।

सोनाली ने बताया कि रात के अंधेरे में पहाड़ पर चढ़ाई करना बड़ा चैलेंज होता है। एक-दूसरे के सिर पर लगी टॉर्च की लाइट के सहारे हमने ये विजुअल बनाए।

सात महाद्वीपों में से दो की चोटियां फतह कीं, बाकी के लिए फंड की जरूरत

अनुराग ने बताया- 13 सितंबर 2022 को हमने अफ्रीका महाद्वीप के सबसे ऊंचे माउंट किलिमंजारो को फतह किया था। ये दुनिया के सात सबसे ऊंचे माउंटेन्स में से एक है। समुद्र तट से इसकी ऊंचाई 5895 मीटर यानी 19,341 फीट है। यहां चढ़ाई करने के बाद हमारा नाम हाईरेंज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी रजिस्टर्ड हुआ था। इसके बाद माउंट एल्ब्रुस की चढ़ाई पूरी की। अब हम दुनिया की सातों सबसे ऊंची चोटियों को फतह कर राष्ट्र ध्वज फहराने वाले दुनिया के पहले दंपती बनना चाहते हैं। इसके लिए हमें फंड की जरूरत होगी। आर्थिक मदद के बिना ये कर पाना हमारे लिए मुश्किल होगा।

किलिमंजारो के बाद हमने एल्ब्रुस को इसलिए चुना था क्योंकि इस पहाड़ की चढ़ाई करना अपने आप में बड़ा चैलेंज है। ये पूरा बर्फ का पहाड़ है। साथ ही दुनिया के बाकी महाद्वीपों की ऊंची चोटियों की चढ़ाई में आने वाले खर्च में से इस पर कम खर्च आता है। माउंट किलिमंजारो की चढ़ाई में हमारे 7 से 8 लाख रुपए खर्च हुए। हमें कहीं से भी स्पॉन्सरशिप नहीं मिली। लोग कहते थे कि नए घोड़े पर दांव कौन लगाए। वहीं, एल्ब्रुस की चढ़ाई में साढ़े 6 लाख का खर्च आया। इसमें 30 परसेंट स्पॉन्सरशिप मिली थी। बाकी हमने खुद लगाया था। हमें रतलाम के सेंट स्टीफन्स स्कूल, परमार समाज और पटवारी संघ ने स्पॉन्सर किया था।

ग्रेजुएशन और सरकारी नौकरी करने वाली गांव की पहली लड़की

सोनाली परमार शुजालपुर से हैं। एक छोटे से शहर से दुनिया की ऊंचे पहाड़ों पर पहुंचने के सफर के बारे में बताते हुए उनकी आंखें चमकने लगती हैं। उन्होंने बताया- पिताजी किसान हैं। फैमिली मिडिल क्लास है। साल 2013 में ग्रेजुएशन पूरा किया। पता लगा कि रतलाम में युवाम नाम की एक संस्था है, जो कॉम्पिटिटिव एग्जाम की तैयारी मुफ्त में कराती है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए मैं रतलाम आ गई।

युवाम में तैयारी कर मैंने बैंकिंग के कई एग्जाम पास किए। ऑफिसर लेवल के इंटरव्यू तक भी पहुंची। साल 2013 में ही मेरा सिलेक्शन मध्यप्रदेश पुलिस में हो गया, लेकिन मैंने जॉइन नहीं किया। इसके बाद 2014 में रेलवे में चुनी गई। डेढ़ साल नौकरी की। रेलवे की उस नौकरी में प्रमोशन के लिए हमें 3 शिफ्ट में काम करना होता था, इसलिए मैंने उस नौकरी को छोड़कर दोबारा तैयारी शुरू की। इसके बाद पटवारी चयन परीक्षा क्लियर की। मैं अपने गांव की ग्रेजुएशन करने वाली पहली लड़की हूं। पहली ऐसी लड़की भी हूं, जिसकी सरकारी नौकरी लगी है।

अनुराग से पहली बार युवाम में ही मिली। काफी लंबे वक्त तक एक-दूसरे को जाना-समझा। रतलाम में साल 2013 से 2019 तक मैं और अनुराग साथ ही रहे। दोनों की नौकरी लगने के बाद फरवरी 2019 में हमने अपने परिवारों की सहमति से शादी कर ली। तब हमारी उम्र 31 साल थी।

अफ्रीका महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी फतह करने के बाद सोनाली और अनुराग।

रतलाम और मध्यप्रदेश का नाम पूरी दुनिया में रोशन करने का अरमान

सोनाली 2018 बैच की पटवारी हैं। पटवारी परीक्षा में उन्होंने रतलाम जिले में टॉप किया था। अगस्त 2018 में रतलाम के इटावा खुर्द गांव में नौकरी जॉइन की। तब से यहीं नौकरी कर रही हैं। वहीं, अनुराग बैंक में नौकरी करते हैं। पहाड़ों पर चढ़ाई करने के वक्त दोनों अपनी नौकरियों से छुट्‌टी लेते हैं।

सोनाली ने बताया- हमारा बेटा रुद्रांजय 3 साल का हो गया है। उसके पैदा होने के 6 महीने बाद ही हमने चढ़ाई शुरू कर दी थी। अभी वो अपने दादा-दादी के पास है। उसको हमारी और हमें उसकी हर पल याद आती है। हम हर रात उससे वीडियो कॉल पर बात करते हैं। अपने बच्चे से दूर रहना कितना बड़ा चैलेंज है, ये बयां नहीं किया जा सकता। बेटा कभी-कभी नाराजगी भी जाहिर करता है।

आज हमने जो भी सफलता हासिल की है, इसका पूरा श्रेय मेरी मां और सास-ससुर का जाता है। उन्होंने हमें मोटिवेट किया। हमारी जिम्मेदारियों में हाथ बंटाया। मां हमेशा मुझसे कहती है कि शेरनी की बेटी है, शेरनी जैसे ही रहा कर। मैं इसी बात से सबसे ज्यादा मोटिवेट होती आई हूं। किसी भी चीज से नहीं डरती। मेरे सास-ससुर मेरे बच्चे को संभाल रहे हैं। हमें पूरा सपोर्ट देते हैं।

अनुराग ने भरी हुई आंखों के साथ आगे कहा- मेरे फोन में बेटे की 3 से 4 हजार फोटो हैं। मैं खाली समय में उन्हें ही देखता रहता हूं। कहते हैं न कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। हमारे साथ बस यही हो रहा है। हमारा बच्चा स्कूल भी जाने लगा है।

सोनाली और अनुराग कहते हैं- हमने सात महाद्वीपों की सात सबसे ऊंची चोटियों को फतह करने का तय किया है। अगर हम इसमें सफल हो जाते हैं तो ऐसा करने वाले विश्व के पहले दंपती बन जाएंगे। इससे मध्यप्रदेश का पूरे विश्व में नाम होगा। रतलाम का नाम भी रोशन होगा। इसके लिए हमें फंड चाहिए। सरकारी मदद की भी जरूरत होगी। रतलाम अभी 3 चीजों के लिए फेमस है- सेव, साड़ी और सोना। अगर हमने ये कारनामा कर दिखाया तो फिर रतलाम 4 चीजों यानी सोनाली-अनुराग के लिए भी जाना जाएगा।

(DAINIK BHASKAR SE SADAR SABHAR)
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