झाबुआ

कल्लाजी राठौर को लोक देवता के रूप में मान्यता उन्हे देवता तुल्य माना जाता है-बावजी ठा प्रतापसिंह राठौर । काली कल्याण धाम गंगाखेडी पर दो दिवसीय श्री कल्लाजी जन्मोत्सव का होगा आयोजन ।

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कल्लाजी राठौर को लोक देवता के रूप में मान्यता उन्हे देवता तुल्य माना जाता है-बावजी ठा प्रतापसिंह राठौर ।

काली कल्याण धाम गंगाखेडी पर दो दिवसीय श्री कल्लाजी जन्मोत्सव का होगा आयोजन ।

झाबुआ । श्री काली कल्याणधाम गंगाखेडी पर 108 श्री कमधज कल्लाजी राठौर बाबजी का जन्मोत्सव बडी ही धुमधाम एवं श्रद्वा एवं भक्ति के साथ मनाया जावेगा ।  बावजी ठा. प्रतापसिंह राठौर ने जानकारी देते हुए बताया कि गंगाखेडी स्थित मां नागणेचा कल्लाजी  धाम पर 23 अगस्त बुधवार रात्रि में भजन संध्या का आयोजन किया जारहा है । 24 अगस्त  गुरूवार को प्रातः 9 बजे से मां श्री नागणेचा   का अभिषेक तथा प्रातः 1 बजे श्रीकल्ला बाबजी का अभिषेक विधि विधान एवं मंत्रोच्चार के साथ किया जावेगा । तत्पश्चात दोपहर 12 बजे से गादी दर्शन व दोपहर 1 बजे से महाप्रसादी एवं  महाभंडारे का आयोजन  होगा । मातारानी व श्री कल्ला जी राठौड़ का विशेष श्रृंगार कर महामंगल आरती की जाएगी। कार्यक्रम ठा प्रतापसिंह राठौर के सानिध्य सम्पन्न किए जाएंगे। ज्ञातव्य है कि श्री कल्लाजी के दर्शन वंदन के लिये उनके जन्मोत्सव के अवसर पर अंचल से हजारों की संख्या में श्रद्धालुजन दर्शनार्थ पहूंचते है तथा मनोवांछित फल प्राप्त करते है। इस स्थान पर देवलोकवासी गादीपति श्री नारायणसिंह राठौर के द्वारा श्री कल्लाजी महाराज से साक्षात्कार हुआ था तथा माता श्री नागणेचा के आशीर्वाद से यह स्थान तीर्थतुल्य बन चुका है ।
बताया जाता है कि मां श्री नागणेचा जी का यह स्थान अति प्राचिन होकर यहां मांगी गई सभी मुरादे पूरी होती है । उल्लेखनीय है कि क्षेत्रवासी शेषावतार कल्ला जी राठौड़ को देवतुल्य मानकर प्रतिवर्ष उनका गंगाखेडी शक्तिपीठ पर जन्मोत्सव मनाते हैं। कल्लाजी राठौड़ की भारतीय संस्कृति और गौवंश के रक्षक के रूप में मान्यता हैं। सन 1568 में 24 साल की उम्र में चित्तौड़ के पास अकबर की सेना से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त करने वाले कल्लाजी का जन्म महान संत मीराबाई के कुल में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन तत्कालीन कुरीतियों और आतंक से लड़ने में लगाया था। उनकी जयंती के मौके पर गंगाखेडी में हर साल उनके अनुयायी उन्हें शेषनाग का अवतार मानकर पूजते हैं। वीर कल्लाजी राठौड़ मेवाड़ के लोक देवता है जिन्हें नाग योनि में पूजा जाता है। इनके प्रति पूरे अंचल के लोगो की अटूट श्रद्धा है।.बताया जाता है जो भी इनके दरबार में आता है.उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती ।
श्री कल्लाजी केे जीवन वृत पर जानकारी देते हुए बावजी ठा. प्रतापसिंह राठौर ने बताया कि कल्ला जी राठौड़ राजस्थान के एक राजपूत योद्धा थे जिन्हें लोकदेवता माना जाता है। ये मेड़ता के राव जयमल के छोटे भाई आसासिंह के पुत्र थे।, इन्होने मेवाड़ के लिये महाराणा प्रताप के साथ अकबर से युद्ध किया था।,ये तीसरे साका युद्ध (विक्रम संवत 1624) में चित्तौड़गढ़ में अकबर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये थे। राजस्थान में अनेक वीरों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया, जिससे उनकी छवि लोकदेवता जैसी बन गयी। कल्ला जी राठौड़ ऐसे ही एक महामानव थे। उनका जन्म मेड़ता राजपरिवार में आश्विन शुक्ल 8, विक्रम संवत 1601 को हुआ था। इनके पिता मेड़ता के राव जयमल के छोटे भाई आसासिंह थे। भक्तिमती मीराबाई इनकी बुआ थीं। कल्ला जी की रुचि बचपन से सामान्य शिक्षा के साथ ही योगाभ्यास, औषध विज्ञान तथा शस्त्र संचालन में भी थी। प्रसिद्ध योगी भैरवनाथ से इन्होंने योग की शिक्षा पायी। इसी समय मुगल आक्रमणकारी अकबर ने मेड़ता पर हमला किया। राव जयमल के नेतृत्व में आसासिंह तथा कल्ला जी ने अकबर का डटकर मुकाबला किया पर सफलता न मिलते देख राव जयमल अपने परिवार सहित घेरे बन्दी से निकल कर चित्तौड़ पहुँच गये। राणा उदयसिंह ने उनका स्वागत कर उन्हें बदनौर की जागीर प्रदान की। कल्ला जी को रणढालपुर की जागीर देकर गुजरात की सीमा से लगे क्षेत्र का रक्षक नियुक्त किया।

श्री राठौर के अनुसार कुछ समय बाद  श्री कल्लाजी का विवाह शिवगढ़ के राव कृष्णदास की पुत्री कृष्णा से तय हुआ। द्वाराचार के समय जब उनकी सास आरती उतार रही थी, तभी राणा उदयसिंह का सन्देश मिला कि अकबर ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया है, अतः तुरन्त सेना सहित वहाँ पहुँचें। कल्ला जी ने विवाह की औपचारिकता पूरी की तथा पत्नी से शीघ्र लौटने को कहकर चित्तौड़ कूच कर दिया। महाराणा ने जयमल को सेनापति नियुक्त किया था। अकबर की सेना ने चित्तौड़ को चारों ओर से घेर लिया था। मेवाड़ी वीर किले से निकलकर हमला करते और शत्रुओं को हानि पहुँचाकर फिर किले में आ जाते। कई दिनों के संघर्ष के बाद जब क्षत्रिय वीरों की संख्या बहुत कम रह गयी, तो सेनापति जयमल ने निश्चय किया कि अब अन्तिम संघर्ष का समय आ गया है। उन्होंने सभी सैनिकों को केसरिया बाना पहनने का निर्देश दिया। इस सन्देश का अर्थ स्पष्ट था। 23 फरवरी, 1568 की रात में चित्तौड़ के किले में उपस्थित सभी क्षत्राणियों ने जौहर किया और अगले दिन 24 फरवरी को मेवाड़ी वीर किले के द्वार खोल कर भूखे सिंह की भाँति मुगल सेना पर टूट पड़े। भीषण युद्ध होने लगा। राठौड़ जयमल के पाँव में गोली लगी। उनकी युद्ध करने की तीव्र इच्छा थी, पर उनसे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। कल्ला जी ने यह देखकर जयमल के दोनों हाथों में तलवार देकर उन्हें अपने कन्धे पर बैठा लिया। इसके बाद कल्ला जी ने अपने दोनों हाथों में भी तलवारें ले लीं। चारों तलवारें बिजली की गति से चलने लगीं। मुगल लाशों से धरती पट गयी। अकबर ने यह देखा, तो उसे लगा कि दो सिर और चार हाथ वाला कोई देवता युद्ध कर रहा है। युद्ध में वे दोनों बुरी तरह घायल हो गये। कल्ला जी ने जयमल को नीचे उतारकर उनकी चिकित्सा करनी चाही पर इसी समय एक शत्रु सैनिक ने पीछे से हमला कर उनका सिर काट दिया। सिर कटने के बाद के बाद भी उनका धड़ बहुत देर तक युद्ध करता रहा। तभी से कल्लाजी राठौर को लोक देवता के रूप में मान्यता मिली तथा उन्हे देवता तुल्य माना जाने लगा । उनकी अंश एवं सवारी हर गादीपति को आती है जिसमें वे लोगों की समस्याओं, दुख दर्दो को गादी के माध्यम से सुनते है तथा उनकी सभी समस्याआंें का निदान करते है ।
बावजी ठा.प्रतापसिंह राठौर, के अलावा, कृष्णपालसिंह घुघरी, ठा.मांधातासिंह डाबडी, राजेशसिंह गौड इन्दौर, राजेश भटेवरा रतलाम, कैलाशचन्द्र सोनी उज्जैन, भगतसिंह राठौर इडवा मारवाड, एवं कल्याण भक्त मंडल गंगाखेडी ने जिलेवासियों एवं अंचल के सभी कल्लाभक्तों से अनुरोध किया है कि पूज्य बाबजी के जन्मोत्सव के इस वृहद कार्यक्रम में सहभागी होकर अपना सहयोग प्रदान करें !

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