झाबुआ – नगर मे चातुर्मास हेतु पधारें प. पू . मुनिराज श्री चन्द्रयशविजय जी म.सा. , मुनि श्री जनकविजय जी म.सा. , मुनि श्री जिनभद्रविजय जी म.सा. आदि की पावन निश्रा और प्रेरणा से झाबुआ में सिद्धितप और मासक्षमण की तपस्या अब पूर्णता की ओर है । मुनिराज के पावन सानिध्य मैं सिद्धि तप जैसी उग्र तपस्या में सकल जैन संघ ने भाग लेकर झाबुआ के इतिहास मे पहली बार 115 तपस्वी एक साथ सिद्धि तप जैसी कठिन तपस्या कर धर्म आराधना कर रहे हैं । इसी कड़ी में 115 सिद्धि तप तपस्यवीयो व मासक्षमण तप आराधको का विजय तिलक समारोह या पारणा समारोह 26 व 27 अगस्त को झाबुआ शहर में तप महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है.।
115 साधना पथ के पथिको का भव्य तप यशस्वी वरघोडा एवं पारणा समारोह के आयोजन को लेकर पत्रकार वार्ता का आयोजन स्थानीय बावन जिनालय मंदिर में आयोजित की गई । चातुर्मास मुख्य संयोजक संजय काठी ने उपस्थित पत्रकारों का स्वागत व अभिनंदन किया । तत्पश्चात पूज्य मुनिप्रवर मुनिराज चंद्र यश विजय जी म.सा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया भर में अनेका एक धर्म है हर धर्म की अपनी पद्बति है साधना पद्धति है । वैसे ही जैन धर्म में दान, शील, तप और भाव चार पद्बति हैं । इन चार धर्म के प्रकारों के माध्यम से हमे मिली हैं । संपत्ति का सदव्यय करना मंदिरों में , धर्मशाला में ,जीवदया के लिए, जरूरतमंदों के लिए , शिक्षा के लिए, स्वास्थ्य के लिए , मानव सेवा के लिए पैसों का सदव्यय करना दान की श्रेणी में आता है। उसके बाद दूसरा शील धर्म …..जीवन को सात्विक बनाने में, चरित्रवान बनने में शील धर्म आता है । ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना धर्म का दूसरा प्रकार है । तीसरा अपने मन को मजबूत रखकर , इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर, इंद्रियों का निग्रह करके जैन धर्म का तप करना । वह तप मात्र शरीर नहीं करता । वह तन , मन और वचन इन तीनों के द्वारा किया जाता है । तप ही जैन धर्म में मान्य है । चौथा प्रकार भाव …..यदि आपके पास संपत्ति नहीं है दान नहीं कर सकते हैं शील का पालन नहीं कर सकते हैं शरीर मजबूत नहीं है या फिर शरीर की अनुकलता नहीं होने के कारण तप नहीं कर सकते हैं जो इन तीन प्रकार के धर्म का पालन कर सके, उनकी प्रशंसा करें , वह तीनों धर्म का अंश प्राप्त कर सकता है मुनिराज ने आगे कहा कि जैन धर्म का उपवास कैसा होता है तथा सिद्धितप तक के बारे में विस्तार रूप से बताया तथा कहां की 44 दिनों की उग्र तपस्या में आराधको को 36 दिन भूखा रहना होता है और 8 दिन भोजन करना होता है। मुनि प्रवर ने कहा कि झाबुआ शहर में 115 आराधको ने इस श्रेष्ठ तम तप को किया है । इन 115 श्रद्धालुओं में 8 से 80 वर्ष तक के आराधक तप में शामिल है ।उनकी प्रशंसा, अनुमोदना के लिए 26 अगस्त को बहुमान व 27 अगस्त शाही वरघोडा के रूप मे तप महोत्सव मनाया जा रहा है । उपवास करने में अपनी काया को, मन को मजबूत रखना होता है । तप करने से कर्मों की निर्जरा होती है भगवान ने कहा है जब प्राणी के पूर्वोत्त्व कर्म उदय में आते हैं तब प्राणी या जीवात्मा दु:ख प्राप्त करता है । तब कर्मों को समाप्त करने के लिए तप किया जाता है जिन्होंने तप किया है वह दुखी नहीं होते हैं । लेकिन जिन्होंने तप नहीं किया है उन्हें आने वाले कर्मों को भोगने के लिए, आने वाले कर्म जब उदय में आते हैं दु:खी बनते हैं इसलिए भगवान ने कहा है कि आने वाले कर्मों के उदय के पहले तप कर लो, ताकि दुख ना भोगना पड़े ।
मुनिराज ने आगे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के ग्रामीण जनों को पत्रकार वार्ता के माध्यम से संदेश देते हुए कहा कि पहले क्षेत्र मे रहने वाले भाईयो के अंदर जो धर्मसंघ में थोडी कमी होती थी । अब उन में भी समझ व जागृति आई है वे भी मानवता के लिए सजग रहते हैं । वे भी इंसान है और मानव को जो.एक उचित व्यवहार करना चाहिए , उसका निर्वाहन करना चाहिए । हिंसा से दूर रहे , व्यसन से दूर रहे , शराब के सेवन से दूर रहे , व्यसनों को त्याग कर, एक दूसरे की मदद करना चाहिए , एक अच्छा जीवन जीना चाहिए । सहयोग की भावना रखनी चाहिए , क्षेत्र भर में प्रेम और मैत्री का भाव, मित्रता का भाव सबके भीतर हो, एक दूसरे के साथ चलने के लिए एकता का परिचय देना चाहिए । बिना जाति, बिना धर्म भेदभाव के एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए, क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए व जिले का नाम रोशन हो ऐसे प्रयास करना चाहिए । प्रेम, मैत्री ,एकता व भाईचारे के साथ सभी जाति और धर्म के लोग रहे । कार्यक्रम का सफल संचालन चातुर्मास मुख्य संयोजक संजय काठी ने किया व आभार संदीप जैन व पीयूष गादीया ने माना ।