झाबुआ

आजीविका मिशन के जिम्मेदारो की लेटलतीफी से, नोनीहाल बच्चों को स्कूल ड्रेस नसीब नहीं हो रही….

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झाबुआ। जहां एक और प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान पूरे प्रदेश में बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं देने की बात कर रहे हैं इसी के साथ शिक्षा के नाम पर लाखों करोड़ों रुपए हर वर्ष खर्च किए जा रहे हैं परंतु झाबुआ जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले में वर्ष 2022-23 की स्कूल ड्रेस का वितरण पूर्ण रूप से नहीं हो पाया है । वहीं कुछ दलालों की सक्रियता के कारण भी स्कूल ड्रेस वितरण मे काफी दिक्कतें हो रही हैं ।

जिले में आजीविका मिशन अंतर्गत 236 समूह के माध्यम से स्कूल ड्रेस बनवाई जाना थी । लेकिन शिक्षा विभाग मे दलालों की सक्रियता के चलते वयवस्था पूरी तरह से बिगडी.हुई हैं । संभवत वर्ष 2022-23 में 2 लाख 98 हजार से अधिक स्कूल ड्रेस का वितरण होना था । इस वर्ष की स्कूल ड्रेस को लेकर क्या योजना है वह जांच का विषय हैं । संभवत पिछले सत्र मे मात्र 50% ही स्कूल ड्रेस का वितरण हो पाया था । बच्चों को सरकार की ओर से स्कूल ड्रेस के रूप में राशि दी जाती है। लेकिन कुछ दलालों ने स्कूलो में साठगाँठ कर नोनिहाल बच्चों की स्कूल ड्रेस पर डाका डाल रहे हैं। सत्र शुरू होने के करीब दो माह बाद यानी अगस्त माह बीत जाने के बाद.भी स्कूलों मे स्कूल ड्रेस नहीं पहुंची और जहां पहुंची है वहां पर कॉफी घटिया और गुणवत्ताहीन निम्न क्वालिटी की स्कूल ड्रेस पहुंचाई गई है। आखिर कब तक जिले का शिक्षा विभाग दलालों के माध्यम से बच्चों का स्कूल ड्रेस की राशि रफा-दफा करने में लगा रहेगा । कई स्कूलों में विद्यार्थियों को मिलने वाली गणवेश अब तक नहीं मिल पाई है। वहीं कई स्कूलों में गणवेश पहुंच चुकी है, लेकिन वहां के शिक्षकों के द्वारा गणेश बच्चों को वितरित नहीं की गई है। शासन द्वारा भले ही लाखों करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं किंतु जब बात जमीन स्तर की आती है तो स्थिति बेहद दयनीय हो जाती हैं आज भी पश्चिमी मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले में हालात नहीं सुधरे हैं। क्योंकि जिले में बैठे जिम्मेदार भी अपनी जिम्मेदारी को सही सही तरीके से नहीं निभा पा रहे हैं और स्थिति दिनों दिन और बिगड़ती जा रही है। स्कूलों के हालात बहुत खराब हो चुके हैं बच्चों को ना तो समय पर गणवेश मिल पाती है और ना ही स्कूलों में बच्चों को बैठने के लिए भवन नसीब हो पा रहे है। छोटे-छोटे कमरों में बच्चों को ठूस दिया जाता है। जैसे तैसे बच्चे अपनी पढ़ाई को पूरा कर रहे हैं। कुछ दलालों की सक्रियता ने बच्चों को मिलने वाले सरकारी सुख सुविधाओं पर डाका डाल रखा है हम बात करें स्कूल ड्रेस की तो कई ऐसे धन्नासेठ मासूमों के हक अधिकार पर डाका डाल रहे हैं। जिले का शिक्षा विभाग आज भी कुंभकरण की नींद सोया हुआ है आखिरकार शासन की ओर से बच्चों के लिए राशि आवंटित होती है तो फिर समूह संगठन दलाल के हाथों में स्कूल ड्रेस देने का काम क्यों ……..क्या सीधे तौर पर शिक्षा विभाग नोनिहाल बच्चों के लिए ड्रेस उपलब्ध नहीं करवा सकता क्या..? जब से आजीविका मिशन के हाथों में स्कूल ड्रेस सहित अन्य काम दिया है तब से आजीविका मिशन चलाने वाले सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने में लगे है और शासन की राशि का भरपूर फायदा उठाकर इस जिले को खोखला करने में लगे हैं । यदि दीमकरूपी संस्था की जांच की जाए.तो हाल ही में 15 अगस्त पर झंडा वितरित करने का काम भी आजीविका मिशन के हाथों में था परंतु आनंन फानन और अपना टारगेट पूरा करने के चक्कर में जो पंचायतो में तिरंगा झंडा वितरित किए हैं वह भी गुणवत्ताहीन और मापदण्ड से परे हैं। क्या शासन प्रशासन इस और ध्यान देकर बच्चों को वितरित की जाने वाली स्कूल ड्रेस को लेकर कोई जांच करेगा या फिर यह दलाल यूं ही बच्चों को दी जाने स्कूल ड्रेस में गड़बड़ी कर अपनी जेबे भरते रहेंगे…..?

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