जो हरिका दास है वह सुख-दुख से परे होकर हमेशा परमानंद की स्थिति में रहता है- अनुपानंदजी महाराज भागवत कथा के चैथे दिन कथा में रही श्रद्धालुओं की भीड
झाबुआ। श्री पद्मवंशीय मेवाडा राठौर तेली समाज द्वारा स्थानीय श्री विश्व शांति नवग्रह शनि मंदिर परिसर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के चैथे दिन व्यास पीठ पर विराजमान श्रीमद् भागवत कथा के सरस प्रवक्ता कानपुर उत्तरप्रदेश से पधारे पं. अनुपानंदजी महाराज भगवान के विभिन्न अवतारों की कथा सुनाई। उन्होने कथा का वर्णन करते हुए कहा कि भागवत कथा से भक्तों में सद्गुणों का विकास होता है वह काम, क्रोध, लोभ, भय से मुक्त हो जाता है। पं. अनुपानंदजी ने कहा कि समुद्र मंथन से एक बार में केवल 14 रत्न मिले थे, पर आत्म मंथन से मनुष्य को परमात्मा की प्राप्ति होती है, जो हरिका दास है वह सुख-दुख से परे होकर हमेशा परमानंद की स्थिति में रहता है। उन्होंने कहा कि भागवत का सार है ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नमः। जब अमृत मंथन की प्राप्ति के लिए देवों एवं असुरों ने समुद्र मंथन शुरू किया तब भगवान ने कच्छप का अवतार लिया एवं अपने ऊपर मथनी रखा, जिससे समुद्र का मंथन हुआ। उन्होने आगे कहा कि श्रीगणेश के नाम के बिना कोई सफल नहीं होता है। समुद्र मंथन के समय भी पहले गणेश की प्रार्थना की गई, तब मंथन शुरू हुआ। समुद्र मंथन में 14 रत्न की प्राप्ति हुई थी। सबसे पहले हलाहल विष निकला, जिससे सभी देव एवं असुर डर गए, तब उन्होंने भगवान शंकर को पुकारा। भगवान शंकर ने उक्त विष को ग्रहण किया एवं विष को गले में संग्रहित रखा तभी से भगवान शंकर नीलकंठ कहलाए। समुद्र मंथन से लक्ष्मी, ऐरावत हाथी, कोस्तु मणी, परिजात, धन्वंतरि, चंद्रमा, कामधेनु, धनुष आदि रत्न का प्रदुर्भाव हुआ। सबसे अंत में अमृत का प्रदुर्भाव हुआ। कथा के दौरान मनमोहक भजनों की प्रस्तुति भी दी, तब श्रोता भावविभोर होकर झुमने लगे।
लाभार्थी परिवार का किया स्वागत
श्रीमद् भागवत कथा के चैथे दिन के लाभार्थी परिवार का कथा के अंत में स्वागत किया गया। लाभार्थी श्रीमती कौशल्याबाई कन्हैयालालजी आसरमा को गमछा एवं भेरूलाल को साफा एवं जितेंद्र कन्हैयालालजी का समाज के सह सचिव कुलदीप नारायणजी पंडीयार द्वारा गले में गमछा एवं श्रीफल भेटकर तथा समाज के वरिष्ठ सदस्य बाबुलाल लुणाजी गोलानिया द्वारा प्रतिक चिन्ह देकर लाभार्थी परिवार का स्वागत किया गया। स्वागत समारोह के पश्चात लाभार्थी आसरमा परिवार द्वारा भागवतजी की आरती कर प्रसादी का वितरण किया।