1957 में झाबुआ का भूगोल :—
पूर्व में आखरी भवन न्यायालय, पुलिस लाइन और उसके क्वाटर्स बस और कोई बसाहट नहीं बस थोड़ा उत्तर पूर्व मे एस पी आफिस और जैल गार्डन….
उत्तर दिशा में :—+
थांदला गेट पर बस्ती समाप्त… वही ं पर बस स्टैन्ड उसके बाद केवल सरकारी भवन… जो सिविल लाइन (एरिया) कहलाता था….
पशुचिकित्सा विभाग, पुराना पोस्टआफिस,, टेकरी पर सरकारी आवास और उसके बाद दरबार हाईस्कूल… बुनियादी स्कूल फिर केथोलिक मिशन… ( नया बस स्टैंड नहीं था) मिशन के सामने अस्पताल और वार्ड तथा क्वाटर्स फिर ट्रेजरी और तात्कालिक कलेक्टर आफिस, (वर्तमान के दिलिप क्लब जो तब भी क्लब ही था ) के सामने… सेन्ट्रल जैल उसके सामने राजपूत बोर्डिंग और छाबड़ा का पेट्रोल पम्प..
उत्तर दिशा में ही झाबुआ स्टेट के सभी ठिकाने दारो( ठाकुर) की कोठियां थी…. पारा ठाकुर साहब का बंगला, झकनावदा हाउस, बोरी बंगला, कल्याण पुरा कोठी, करवड़ कोठी…….दिलिपगेट और डाक बंगला…. वर्तमान बड़ा पोस्ट आफिस तब कलेक्टर आवास था….
उत्तर में ही पारा ठाकुर साहब के निवास जिसमें वर्तमान में पारा के ठाकुर डांक्टर एल एस राठौर साहब निवास करते है की ही कतार मे जिला जज, एस पी साहब और फारेस्ट विभाग के जिला अधिकारी और रेंजर रहते थे ….दिलिप क्लब के ठीक पीछे वन विभाग था और डिप्टी कलेक्टर साहबान के निवास थे,.. यह था सिविल एरिया और कोई सामान्य आवास नहीं….
अब अगली कड़ी मे पश्चिम में चलेंगे..…..
झाबुआ के पश्चिम में छोटा तालाब, शंकर मंदिर, कुछ प्रमुख मुस्लिम परिवारों का मोहल्ला ‘ “होड़ा ” होड़ा की माध्यमिक शाला हनुमान टेकरी और हाधीपावा की पहाड़िया और सीताफल, झरबेरी और ढाक के घने जंगलों जिसमें शेर, भालू और जंगली जानवर थे के अलावा कुछ नहीं था……
दक्षिण दिशा:— यहां बड़ा तालाब, हनुमान मंदिर, और युरोपियन गेस्ट हाउस और घोड़ापाटी ( अभी का बाबेल कम्पाउंड) सीमा थी और फिर घना जंगल और बिलिडोज़ गाँव बस…..
कोई कालोनियां नहीं थी… गोपाल कालोनी भी नहीं न राजगढ नाका …सीधा जंगल और अनास नदी…. 2000 की जनसंख्या वाला झाबुआ….,