भाजपा और कांग्रेस में असंतोष कम नहीं-अगले 48 घंटे का शुभ मुहूर्त भेरू पूजन का या कहे तो रूठे को मनाने का………………………
झाबुआ। प्रदेश की 230 सीटों में शायद ही कोई ऐसी सीट हो,जहां नीबू निचोड़ कर दूध फाड़ने की फितरत नहीं हुई हो। कांग्रेस में तो नीबू डालकर शायद कमलनाथ ने तो दूध फाड़ ही दिया है और वही दूसरी ओर दिग्विजय सिंह ने इसकी छाछ बना कर रायता तो शायद फैला ही दिया है।
भाजपा और कांग्रेस में असंतोष कम नहीं.…………………………
भाजपा में भी असंतोष कम नहीं है। लेकिन साइड लाइन किए गए दावेदारों ने शायद अनुशासन के दुपट्टे से अपना-अपना मुंह लपेट रखा है। पार्टी नेतृत्व के शीर्ष नेताओं को मैदान में पटकनी देने का दांव गौरीशंकर बिसेन ने जिस तरह चला है,उसकी काट करने की रणनीति तलाशी जा रही है। बेटी को टिकट दिलवाकर और आखिरी वक्त पर उसकी तबीयत ठीक नहीं होने का हवाला देते हुए खुद ने नामांकन दाखिल कर दिया। वही कांग्रेस में निशा बांगरे को साथ में मंच पर बैठाया गया। वे पूर्व घोषित प्रत्याशी की जगह ,अपना नाम घोषित होने के सपने में खोई हुई थीं। जबकि कमलनाथ ने यह कह कर रायता फैला दिया कि उनकी सेवाओं का और बेहतर उपयोग पार्टी करेगी।
अगले 48 घंटे का शुभ मुहूर्त भेरू पूजन का या कहे तो रूठे को मनाने का……………………….
निर्वाचन कार्यालय के सामने बजने वाले ढोल-ढमाके तो कल शाम से बंद हो चूके है। लेकिन अगले 48 घंटे का शुभ मुहूर्त भेरू पूजन या कहे तो रूठे को मनाने का है। भाजपा घर बैठे नाराज नेताओं के पैर पूजने निकलेगी। वही अधिकृत प्रत्याशियों को चुनौती देने वाले जिन दावेदारों को विकराल भैरव की सवारी आ रही है,उन्हें कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पूजा का थाल लेकर उनकी इच्छा पूरी करने की मनुहार के साथ भेंट पूजा अर्पण करेंगे।
भाजपा को तो अपने लोगों को डराना,धमकाना व चमकाना शायद आता है………………..
भाजपा को तो अपने लोगों को डराना,धमकाना व चमकाना शायद पक्का आता है। वही कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि यहां तो सरकार बनने का दावा करने वाले बड़े नेताओं में ही एकजुटता नहीं है। उनके दिग्गज नेता सुरेश पचोरी,अरुण यादव,अजय सिंह से लेकर गोविंद सिंह परिदृश्य से लगभग गायब से हैं। एक ओर तो सज्जन वर्मा की दुर्जन वाणी से घायल दिग्विजय,मन ही मन तो कमलनाथ से इसलिए खुश हैं कि उनके कुनबे के हर सदस्य को टिकट मिल गया है। गौरतलब है कि इन सभी की जीत के लिए दिग्विजय सिंह अतिरिक्त परिश्रम अवश्य ही करेंगे ।
एक सप्ताह से अचानक चुनावी हवाओं में एक अलग ही बदलाव ……………
एक सप्ताह से अचानक चुनावी हवाओं में एक अलग ही बदलाव आया है,जो कि कांग्रेस की चिंता बढ़ाने और भाजपा को राहत पहुंचाने वाला बनता नजर आ रहा है। कल तक जो भाजपा घबराई हुयी नजर आ रही थी,लेकिन अब वह कांग्रेस के नेताओ के एक-दूसरे की नीचे से टाटपट्टी या कहे तो जमीन खींच कर रायता फैलाने में कोई कमी नही रखने से, संगत में पंगत वाली बातों को * रात गई बात गयी * की तरह भूलते भी जा रही है।
प्रत्याशी बनाने का खेल शायद कांग्रेस की तकलीफ का सबब बन गया है..……………………..
पहले तो ग्वालियर,चंबल,भोपाल,मालवा,निमाड़ या विंध्य क्षेत्र में प्रत्याशी घोषित करने के बाद,किसी और को प्रत्याशी बनाने का जो खेल कांग्रेस ने खेला है,वही उसकी हवा बिगाड़ने का शायद प्रमुख कारण भी बन गया है,ऐसा साफ प्रतीत हो रहा है। टिकट बांटने के कार्य में मुख्य रूप से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की भूमिका अहम रही है,वही मजेदार बात यह भी है कि बागियों को मनाने का दायित्व भी इन्हींके जिम्मे रखा गया है।
दूध फाड़ने और रायता फैलाने के राज्यस्तरीय मुकाबले तय………………………
भाजपा की सरकार बनती है….तो शायद ये दोनो नेता ही दूध फाड़ने और रायता फैलाने के प्रबल जिम्मेदार भी माने जाएंगे। भाजपा की तमाम उम्मीदों पर पानी फेरते हुए,यदि वर्ष 2018 की तरह ही फिर से कांग्रेस सत्ता में काबिज हो जाती है,तो पहले दिन से यह तय है कि दूध फाड़ने और रायता फैलाने के राज्यस्तरीय मुकाबले दिखने शायद शुरू हो जाए।