झाबुआ

जीवन से शिकायत न करें समाधान खोजें – पुण्यशीलाजी

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अंतरदृष्टि खुल जाने पर जीवन का मूल्यांकन होता है – पुण्यशीलाजी

सिद्ध जैसी हमारी आत्मा यह इतनी बड़ी पहचान है हमारी – पुण्यशीलाजी

पुण्यशीलाजी म.सा. का हुआ पेटलावद कि ओर विहार

थांदला (वत्सल आचार्य) महज 4 दिन के अल्प कल्प के लिए भीषण गर्मी में नंगे पैर उग्र विहार करते हुए धर्म नगरी थांदला में पधारें पुण्य पुंज पुण्यशीलाजी म.सा. ने मंगल प्रवचन सभा में धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए अपनी वैराग्यमय वाणी में फरमाते हुए पूछा कि आप सभी को भगवान की वाणी कैसी लगती …? भगवान क्या कहते है और आप क्या करते हो …? भगवान ने कहा नींद नहीं लेना …? आप क्या करते हो..? पूज्याश्री ने अपनी ओजस्वी वाणी में फरमाया कि प्रायः नींद के लिये जीव बहुत अनुकूलता के पुरुषार्थ करता है उसकी अनुमोदना अच्छी लगती है। ऐसी, कूलर, पंखें, आराम दायक गद्दे सबकुछ होने पर भी यदि नींद नही आये तो वह नींद की गोलियां तक लेने लग जाता है लेकिन ज्ञानियों ने नींद को प्रमाद बताया है। नींद से घोर दर्शनावरणीय कर्म का बंध होता है यह समकीत प्राप्ति में भी बाधक बनती है। भगवान ने अपने साधना काल में निद्रा विजयी के लिये अनेक पुरुषार्थ किये फिर भी उन्हें साढ़े बारह वर्षों की साधना में महज दो घड़ी की निंद आ गई। हम नींद लाने के लिए या उसे भगाने में ज्यादा पुरुषार्थ करते है यह सोचना जरूरी है। पूज्याश्री ने कहा कि सभी आत्म प्रदेशों पर प्रभाव डालती है, ऐसी सर्व घाती दर्शनावरणीय कर्म की 9 प्रकृति में निंद्रा, निंद्रा-निंद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला व सत्यनग्रद्धि रूप 5 प्रकृति नींद से जुड़ी हुई है इसलिए इससे जागने के लिए भी प्रबल पुरुषार्थ आवश्यक हो जाता है। तभी भगवान ने भव्य जीवों से कहा” उठो प्रभाद मत करो”। आजकल हम देखने के साथ-साथ सुनने के इतने रसीक है की स्वयं भगवान की वाणी भी कभी सुनी होगी तो उसे भी घोल कर पी गए जबकि वहाँ 12 प्रकार की परिषद जिसमें तिर्यंच भी है वह समझ जाता है पर हम नही समझ पाए जिसके परिणाम स्वरूप आज भी भटक रहे है। इसलिये सुनने के रसीक बनने के साथ उसे जीवन में उतारने के पुरुषार्थी बने। पूज्याश्री ने कहा वाणी- व्याख्यान अच्छे हो न हो पर ऐसे हो जो जीवन बदल दे तो ही उपयोगी है। नींद को परिभाषित करते हुए जागरण का महत्व बताते हुए पूज्या श्री ने कहा जीव की आँखें खुली तो वह भौतिक वस्तु का ही मूल्यांकन कराएगी व उसका उपयोग उपभोग करेगी जो कर्म बंध का कारक है परंतु यदि आत्मीक दृष्टि खुल जाए तो वह जीवन का मूल्यांकन कराती है। पूज्याश्री ने मानव मस्तिष्क पर चोट करते हुए कहा कि खाना-पीना तो पशु भी करता है, घोंसला घर भी बनाता है यहाँ तक कि बच्चों का पालन पोषण भी करता है, फिर मनुष्य में ऐसी क्या विशेषता है जो उसे पशुता से अलग बनाती है वह है उसका चिंतन। पूज्याश्री ने कहा जीव सिद्ध जैसा है इतनी बड़ी उसकी पहचान है जिसे वह भूल गया है। पूज्याश्री ने कहा की जीव को जीवन से हमें यह नहीं मिला हमें वह नहीं मिला ऐसी भौतिक संसाधनों की कमी आदि की शिकायत नही करते हुए हम जीवन के सदुपयोग रूपी समाधान से मोक्ष पाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर पूज्याश्री ने जैनाचार्य पूज्य गुरुदेव उमेशमुनिजी म.सा. की अप्रमत्त साधना का जिक्र करते हुए उनके व उनकी निश्रा में संयम आराधना पथ पर चल रहे अन्य साधकों के लिए दिन में सोने का निषेध किया वही प्रमाद की ऐसी दशा में यदि 1 मिनट की नींद आ जाये तो 5 गाथा का स्वाध्याय करने का नियम बनाया जिससे आज अनेकों साधकों में रही अल्प प्रमदावस्था भी दूर होने लगी है। धर्म सभा में महकश्रीजी ने कहा कि भगवान ने सुख व दुख दोनों मार्ग बताये लेकिन हम पसंद तो ऊची सुख की रखते है, परंतु दुख के मार्ग का अनुसरण करते हैं। महकश्रीजी ने कहा सर्वज्ञ भगवान सब जानते है फिर भी वह करणीय कार्य ही करते है जबकी उन पर यह नियम लागू नहीं होता है। अरिष्टनेमीजी को गजसुकुमाल मुनिजी के महाकाल शमशान में साधना के कष्ट पता थे फिर भी उनके भावों में परिवर्तन नहीं आया। वैसे ही द्वारिका विनाश की भविष्यवाणी होने पर भी कुछ आत्माएं ही जाग्रत हुई और संयम सुख मार्ग पर चली, जबकि अनेक आत्माओं ने तत्काल भौतिक सुख का ही भोग किया था। पूज्याश्री ने कहा वर्तमान में भी काल हीनता को प्राप्त कर रहा है, सब उल्टे कार्य हो रहे है फिर भी पांचवे आरे के अंत तक आत्माएँ अपना कल्याण करती रहेगी अर्थात जो आत्माएं मोह नींद से जागृत बनेगी वह संसार सागर से तीर जाएगी। पूज्याश्री ने इसके लिए सरल उपाय बताते हुए कहा कि जैसे हमने घर को सर्वस्व मान उसके लिए पुरुषार्थी बन गए लेकिन यदि घरवालों की चिंता नही की तो वह कुछ काम का नही वैसे ही हमने इस पुद्गलों के पिंड के पीछे इसकी देखरेख में ही जीवन व्यतीत किया लेकिन आत्मा का ध्यान नही रखा तो सब व्यर्थ है। इसलिए जीव ने संसार में इन पुद्गलों के रूप में वमन (उल्टी) का ही बर-बार आस्वादन किया है, अतः इस वमनकारी पुद्‌गलों की आसक्ति घटाने के लिए पुरुषार्थ करना ही सुखी होने की चाबी है।

पुण्यशीलाजी म.सा. आदि महासतियों का विहार

जैनाचार्य पूज्य श्री उमेशमुनिजी म.सा. “अणु” की पावन परम्परा को आगे बढ़ा रहे बुद्धपुत्र प्रवर्तक श्री जिनेन्द्रमुनिजी म.सा. की आज्ञानुवर्ती पुण्य पुंज पुण्यशीलाजी म.सा. आदि ठाणा -6 का पेटलावद कि ओर विहार हुआ। जानकारी देते हुए संघ अध्यक्ष भरत भंसाली व सचिव प्रदीप गादिया ने बताया कि पुण्य पुंज पुण्यशीलाजी म.सा. का धर्मदास गण में करीब 26 सतियाजी के साथ सबसे बड़ा सिंघाड़ा है जिसमें पूज्याश्री का बदनावर चातुर्मास है जबकि अनुपमशीलाजी का बामनिया, निखिलशीलाजी का थांदला, सुव्रताजी का पेटलावद व कीरणबालाजी का आष्टा चातुर्मास होगा शेष सतियाजी आपके अधीन रहेगी। किरणबालाजी महासती वृंद आष्टा के लिए विहाररत है जबकि शेष सतियाजी का मिलन पेटलावद हो रहा है जहाँ से सभी अपने आपने चातुर्मास के लिए विहार करेंगें।

सामूहिक अनशन तप का आयोजन – सामूहिक होंगें पारणें

श्री ललित जैन नवयुवक मंडल अध्यक्ष रवि लोढ़ा, सचिव सन्दीप शाहजी ने बताया कि जैन समाज के लोगों द्वारा मूक प्राणियों की घोर बलि के विरोध एवं प्राणीमात्र के प्रति जीवदया व करुणा के भाव व उनकी आत्मा को शांति मिलें इस उद्देश्य को लेकर प्रतिवर्ष बकरीद पर एक दिन का अनशन तप करते आ रहे है। ऐसे में उन सभी तप आराधकों के सामुहिक पारणें स्थानीय महावीर भवन पर होंगें जिनका लाभ वर्धमान खेमराज तलेरा परिवार ने लिया है।

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