झाबुआ – नगर की पावन धरा पर भव्य ऐतिहासिक चातुर्मास के पश्चात श्री शंखेश्वर महातीर्थ भांडव पुर,उदयपुर में गुरु मंदिर की प्रतिष्ठा तथा पालीताना महातीर्थ में भव्य धर्मशाला के शुभारंभ एवम बाबु मंदिर तलेटी पर परम पूज्य श्रीमद विजय हेमेंद्र सुरीश्वर म.सा की भव्य प्रतिष्ठा आदि शासन प्रभावना के कार्य संपन्न करवाते हुए परम पूज्य आचार्य श्री हेमेंद्र सुरीश्वर के शिष्य तथा परम पूज्य ज्योतिष सम्राट श्रीमद विजय ऋषभचंद्र सुरीश्वर म.सा के आज्ञानुवर्ती परम पूज्य मुनिराज श्री चंद्रयश विजयजी म.सा और परम पूज्य मुनिजिन भद्र विजय जी म.सा सिद्धाचल महातीर्थ से जावरा चातुर्मास हेतु विहार करते हुए जा रहे हैं । इसी बीच एक दिन का प्रवास को लेकर झाबुआ नगर पधारे और शहर के दिलीप गेट स्थित महावीर बाग से सकल जैन समाज की उपस्थिति में मुनिश्री का प्रवेश हुआ।
सुबह करीब 9:30 बजे दिलीप गेट स्थित महावीर बाग से मुनि श्री चंद्रयश विजय जी म.सा और मुनि जिनभद्र विजय जी म.सा का मंगल प्रवेश हुआ और यहां से एक शोभायात्रा निकाली गई , जो शहर के मेंन बाजारों से होते हुए 52 जिनालय मंदिर पर समाप्त हुई और धर्म सभा में तब्दील हुई । सर्वप्रथम नमस्कार महामंत्र के उच्चारण के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ । परमात्मा बन जासी म्हारी आत्मा ……. म्हारी आत्मा बन जासी परमात्मा ……गीत का सुंदर संगान किया । जिसका उपस्थित सभी श्रावकों ने अनुसरण किया । जैन समाज के संजय काठी ने स्वागत भाषण में कहा कि मुनिप्रवर एक बार पुनः सकल जैन समाज झाबुआ को जगाने आए हैं और पूर्व चार्तुमास में जो तप व त्याग की लौ जागयी थी वह पुनः इस चातुर्मास में जगाना है । वही हमारी सबसे अच्छी भेंट होगी ।तत्पश्चात धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री चंद्रयश विजय जी म.सा. ने कहा ……प्रार्थना क्यों करते हैं । सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है नकारात्मकता दूर होती है प्रार्थना करने से मन शुद्ध व पवित्र होता है । एकाग्रता बढ़ती है । प्रार्थना का संगान क्यों करना चाहिए ……उदाहरण देते हुए कहा जैसे दूध में दही मिल जाता है तो वह दूध दही बन जाता है इस तरह परमात्मा के गुणो के अंश को हमारी आत्मा में मिलने से , आत्मा परमात्मा बन जाती है । उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी भी पंथवाद में विश्वास नहीं करते हैं इस धर्मसभा में मूर्तिपूजक संघ, स्थानक संघ व तेरापंथ संप्रदाय, सभी पंथ के अनुयायी यहां आए हैं और इस उद्देश्य से आए हैं कि यहां पर धर्म रूपी प्रेम की गंगा बह रही है । उन्होंने यह भी कहा कि जिस प्रकार भगवान श्री राम 14 वर्षों के वनवास के बाद पुन: अयोध्या लौटे थे । उसी प्रकार में भी चातुर्मास पूरा करने के बाद करीब आठ माह बाद पुनः झाबुआ आया हूं । मुझे वही खुशी प्राप्त हुई है । साधु संतों का कार्य होता है श्रावकों के मन में धर्म का दीप जलाना । इसलिए हम आगे बढ़ते हुए हर प्रवास पर धर्म का दीप जला रहे हैं साधु को प्रतिदिन अभिनव ज्ञान की प्राप्ति करना चाहिए । कुछ नया करना चाहिए । परमात्मा का संदेश है कि त्याग तपस्या कर वे परमात्मा बन गए हैं हमें प्रभु से , उनके वचनों से , उनकी आज्ञा से, आत्मा का कल्याण करना है । उन्होंने यह भी कहा कि एक तरफ संसार के सुख है और दूसरी तरफ ज्ञान, दर्शन चारित्र ,दान, शील तप भावनाएं हैं । आयुष्य रूपी सिटी बजे उसके पूर्व में हमारी आत्मा को जगा लेना चाहिए । हमें स्वाध्याय रूपी धार का सहारा लेना चाहिए । हमारे बोलने से या भगवान की वाणी मात्र सुनने से ही किसी का कल्याण नहीं होगा । वरन अनुसरण करके ही ही अपनी आत्मा में बदलाव ला सकता है ।अपना आत्महित स्वयं को साधना है । जो कार्य व्यवस्था में कर सकते हैं वह वृद्धावस्था में नहीं कर सकते हैं । भगवान की वाणी को सुनकर अनुसरण कर , अज्ञानता और राग द्वेष को दूर कर सकते हैं । मूर्ति पूजक संघ के अध्यक्ष मनोहर लाल भंडारी ने भी मुनिश्री के पूर्व चार्तुमास में त्याग , तपस्या के बारे में विस्तृत रूप से बताया तथा समाज दोनों से अपील की है कि इस चातुर्मास में भी जप तप का क्रम जारी रहे । कार्यक्रम का सफल संचालन संजय कांठी ने किया व आभार संजय मेहता ने किया ।