शरद पूर्णिमा पर्व को स्वर्णकार समाज अजमीढ़ जी महाराज जयंती समारोह पूर्वक मनायेगा ।
भव्य चल समारोह का नगर में जगह जगह होगा भव्य स्वागत
पूरे अंचल के समाज जन जन्मात्सव में होगें शामील
झाबुआ । श्री मेढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज के आदि पुरुष महाराजा अजमीढ़देव जी जन्म दिन समारोह पूर्वक श्री मेढ क्षत्रिय स्वर्णंकार समाज द्वारा समारोह 17 अक्तुबर शरद पूर्णिमा के पावन अवसर पर मनाया जावेगा । स्वर्णकार समाज थांदला के अध्यक्ष नटवरलाल भगवानलाल सोनी ने भगवान अजमीढ के जन्म दिवस के अवसर पर जानकारी देते हुए बताया कि चंद्रवंश की अठाइसवी पीढ़ी में महाराजा अजमीढ़ जी का जन्म हुआ था। महाराजा अजमीढ़जी विकुंठन जी के जेष्ठपुत्र और हस्ती के जेष्ठपौत्र थे। जिन्होंने हस्तिनापुर बसाया था । द्विमीढ़ एव पुरुमीढ़ दोनों अजमीढ़ जी के छोटे भाई थे । अजमीढ़ जी जेष्ठ होने के कारण हस्तिनापुर राजगद्दी के उतराधिकारी हुए अजमीढ़ जी की जन्म तिथि के बारे मे किसी भी पुराण में उलेख नहीं मिलता है तथा उनके राज्यकाल के विषय में इतिहासकारों का अनुमान है की ई.पू. 2200 से ई.पू. 2000 वर्ष में इनका राज्यकाल रहा है। महाराजा विकुंठनजी के बाद अजमीढ़ जी प्रतिष्टानपुर (प्रयाग) एव हस्तिनापुर दोनों राज्यों के सम्राट हुए। प्रारम्भ में चन्द्रवंशीयों की राजधानी प्रयाग प्रतिष्टानपुर में ही थी। हस्तिनापुर बसाये जाने के बाद प्रमुख राज्यगद्दी हस्तिनापुर हो गई। अजमीढ़ जी की राज्य सीमा विस्तृत क्षेत्र में फैली हुई थी। इनके छोटे भाई द्विमीढ़ से बरेली के आस पास द्विमीढ़ नामक वंश चला। पुरुमीढ़ निसंतान ही रहे ब्रम्हांड पुराण के अनुसार अजमीढ़जी मूलतः क्षत्रिय थे। पुराणो के अनुसार अजमीढ़ जी की तीन रानियाँ थी जिनका नाम नलिनी, केशनी एवं धुमिनी था। इन तीनो रानियों से अजमीढ़ जी के कई वंशोपादक पुत्र हुये। इन्होने गंगा के ऊत्तरी और एव दक्षिणी दिशा में अपने राज्य का विस्तार किया। अजमीढ़जी का नील नामक पुत्र उत्तर पाझाल शाखा राज्य का शासक हुआ, जिसकी राजधानी अहिज्छत्रपुर थी। महाभारत के एक अध्याय में अजमीढ़जी की चार रानियों का उल्लेख मिलता है। ये कैकयी, गान्धारी, विशाला तथा रुता थी। अजमीढ़जी की चैथी पीढ़ी राजस्व नाम का राजा हुआ। इसके पांच पुत्र हुये। ये पाचों पंच पाच्चालिक नाम से प्रसिद्ध हुए। अजमीढ़ जी एक महा प्रतापी वंशकर राजा थे। इनके वंश में होने वाले अजमीढ़ जी वंशी कहलाये। अजमीढ़ जी निःसंदेह पौरववंश के महान सार्वभौम सम्राट थे। यद्यपि सही प्रमाणों के अभाव में पूर्ण दावा तो नहीं किया जा सकता है। किन्तु कई एतिहासिक प्रमाणों के आधार पर इस बात के संकेत मिलते है की वर्तमान अजमेर जिसका प्राचीन नाम अजमेरू था उसके संस्थापक अजमीढ़ जी ही थे अजयराज चैहान द्वारा 12वीं शताब्दी में अजमेर की स्थापना किये जाने की मान्यता निरस्त करने के कई प्रमाण उपलब्ध है। अजयराज चैहान के अतिरिक्त कोई दूसरा दावेदार इतिहास में नहीं है। अंतः बहुत संभव है की अजमीढ़ जी द्वारा ही अजमेर की स्थापना की गई थी। अजमीढ़ जी ने अजमेर नगर बसा कर मेवाड़ की नींव डाली। महान राजा होने के कारण अजमीढ़ जी धर्म-कर्म में विश्वास रखते थे। वे सोने-चांदी के आभूषण, खिलौने व बर्तनों का निर्माण कर दान व उपहार स्वरुप सुपुत्रों को भेंट किया करते थे। वे उच्च कोटि के कलाकार थे। आभूषण बनाना उनका शौक था और यही शौक उनके बाद पीढ़ियों तक व्यवसाय के रुप में चलता आ रहा है।
श्री सोनी ने बताया कि भगवान श्री अजमीढजी का जन्मोत्सव शरद पूर्णिमा के पावन दिन थांदला के स्वर्णकार समाज द्वारा मनाया जावेगा । इस आयोजन में झाबुआ मेेघनगर, रंभापुर, दोहद, आलीराजपुर, मदरानी, काकनवानी,गरबाडा, गांगरडी, पेटलावद, भाबरा, ,खवासा, आदि के समाज जनों को भी आमंत्रित किया गया है ।
समाज के उपाध्यक्ष राकेश कांतिलाल सोनी ने जानकारी देते हुए बताया अजमीढ जयंती पर स्वर्णकार समाज द्वारा दोपहर 2 बजे से श्री नरनाराण मंदिर शांति आश्रम से बेंड बाजों के साथ विशाल चल समारोह निकाला जावेगा। नगर के मुख्य मार्गो पर पुष्पवर्षा कर चल समारोह का जगह जगह स्वागत किया जावेगा । पूरा नगर भगवान श्री अजमीढ की जय जय कारों से गुजित होगा । इस अवसर पर नगर भ्रमण के बाद चल समारोह पुनःः श्री नरनारायण मंदिरशांति आश्रम पहूंचेगा जहां भगवान श्री अजमीढ की महामंगल आरती सायंकाल 5.30 बजे की जावेगी । तत्पश्चात समाज जनों के लिये विशाल सहभोज का भी आयोजन किया गया है । इस अवसर पर बडी संख्या में समाज की मातृशक्ति भी सहभागिता करेगी । समाज के श्री विश्वास सोनी युवा अध्यक्ष चंचल सोनी,राजकृष्ण सोनी, कैलाश सोनी, चन्द्रकांत सोनी, नीतिन सोनी, श्रंेयांश सोनी, परमानन्द सोनी, हर्षित सोनी, बबलु सोनी, सुनिल बाबुलाल सोनी, अनुराधा सोनी, संगीता सोनी, रिद्धी सोनी, सपना सोनी, ललीता सोनी, वैशाली, सीमा, मंशा सोनी, पद्मा सोनी, किरण सोनी, लता सोनी, आदि ने समाज जनों एवं मातृशक्ति से आव्हान किया कि थांदला में भगवान श्री अहजमीढ के इस ऐतिहासक एवं भव्य समारोह में सहभागी होकर सामाजिक एकता का परिचय देवें ।