21 दिवसीय महानुष्ठान-पद्मावती के तट स्थित श्री वैकुण्ठधाम गुरूद्वारा में बहेगी आस्था व धर्म की गंगा ।
परमात्मस्वरुप अनंत श्री विभूषित श्री सरस्वती नंदन स्वामी महाराज के दर्शनवंदन के लिये देश विदेश से एकत्रित होगें श्रद्धालुजन ।
झाबुुआ। श्री सरस्वती नंदन स्वामी भजनाश्रम धार्मिक निजी न्यास बैकुंठ धाम गुरुद्वारा थांदला जिला झाबुआ के द्वारा श्री प्राकट्य महोत्सव वर्ष 2024.. 25 के अंतर्गत 16 दिसंबर 2024 से 6 जनवरी 2025 तक 21 दिवसीय महानुष्ठान का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है । न्यास मंडल के अध्यक्ष श्री राजेंद्रप्रसाद अग्निहौेत्री ने बताया कि न्यास मंडल द्वारा प्रतिवर्ष इस कार्यक्रम का आयोजन ब्राह्मण समाज एवं गुरु भक्त मंडल के सहयोग से अखंड नाम संकीर्तन किया जाता है, जिसमें राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र से कई भक्त इस कार्यक्रम में सम्मिलित होकर तन, मन, धन से सहयोग भी करते हैं, साथ ही नित्य आयोजित समस्त पूजन विधि में सम्मिलित होकर धर्म लाभ प्राप्त करते हैं ।
श्री अग्निहौत्री के अनुसार में बताया कि बाहर से आने वाले भक्तों के ठहरने एवं भोजन प्रसादी की पर्याप्त व्यवस्था न्यास द्वारा पृथक से की गई है, उन्होने गुरु जी का परिचय देते हुए बताया कि परमात्मस्वरुप अनंत श्री विभूषित श्री सरस्वती नंदन स्वामी महाराज मारवाड़ क्षेत्र के भीयाणी ग्राम में अवतरित हुए थे,। इनके सांसारिक माता का नाम श्रीमती अन्नपूर्णा तथा पिता का नाम श्री गंगाधर था। उन्होनेे चित्तौड़ नगर में योगाभ्यास किया तथा संस्कृत साहित्य का गहन अध्ययन किया, उन्हेे संस्कृत के साथ-साथ भारत की सभी भाषाओं का ज्ञान था। अरबी, फारसी और उर्दू का भी आपको बहुत अच्छा ज्ञान था, गुरु परंपरा के अंतर्गत प्रातः स्मरणीय पूज्य चरण वासुदेवानंद सरस्वती आपके गुरु रहे हैं, आप मुख्यतः नर्मदा के संत माने जाते हैं इन्होने मां नर्मदा की परिक्रमा कई बार की है,। नर्मदा परिक्रमा के कारण नर्मदा किनारो पर बसे ग्रामों में आपकी व्यापक काफी ख्याति रही है,। मध्य प्रदेश के बड़वाह ग्राम में नर्मदा किनारे स्थित शिव मंदिर में आपने योग साधना की तथा समाधि के माध्यम से परमात्मा में आप कई बार एकाकार होते रहे, इनकी अलौकिकता के दर्शन जब नेपाल नरेश ने किया तो उन्होंने उस शिव मंदिर में 240 किलो ग्राम का एक घंटा बनाकर उसे पर श्री सरस्वती नंदन स्वामी का नाम उल्लेख करवा कर लगवाया ।
गुुरूदेव परिवाजकाचार्य के रूप में विख्यात थे ,इसी अवधि में पंढरपुर में विट्ठल भगवान का साक्षात्कार भी किया, इनके श्रीमुख से विट्ठल विट्ठल का अजपा जाप अहर्निश चलता रहता था, विट्ठल ही इनकेेेेेेेेेेेे आराध्य देव रहे हैं । आपने माता रुधिनी और रुक्मणी के बीच भगवान विट्ठल की प्रतिमाओं की स्थापना गुजरात के ग्राम भदाम बड़ौदा और मध्य प्रदेश के थांदला, पेटलावद नगर में मंदिर बनाकर की रही ,इन्होने बड़ौदा के पामेली फलिया में, बड़ी क्षेत्र में संस्कृत पाठशाला खोलकर ब्राह्मण बच्चों को वेद अभ्यास भी करवाया, ।गुरूदेव ने थांदला शहर में भी ब्राह्मण बच्चों को वेदाभ्यास की शिक्षा देकर संस्कृत स्कूल भी आरंभ करवाया था ।
गुरु शिष्य परंपरा के अनुसार मुख्यतः गृहस्थ लोग ही आपके शिष्य रहे हैं, आपके शिष्य सर्वत्र निवासरत हैं ,आप जातिवाद के प्रखर विरोधी रहे हैं ,तथा सभी जातियों के भेद को व्यर्थ बताकर अपने समाज में सभी वर्गों को अपना शिष्य बनाकर भगवत भक्ति की प्रेरणा दी,।आज भी पूज्य गुरुदेव के जन्मोत्सव पर पौष सुदी अष्टमी से पूर्णिमा तक नाम संकीर्तन की आयोजना की जाती है ।
इस वर्ष नाम संकीर्तन का आरंभ 6 जनवरी 2025 से हो रहा है, । 16 दिसंबर से 25 दिसंबर तक 10 दिवसीय श्री गणपति अर्चना अभिषेक, 26 दिसंबर को मां अन्नपूर्णाअभिषेक, 27 दिसंबर को मां सरस्वती का अर्चना अभिषेक, 28 दिसंबर को कुबेर जी एवं शिवजी का रुद्राभिषेक,29 दिसंबर को मां लक्ष्मी का श्री सूक्त अर्चना अभिषेक, तथा 30 दिसंबर से 5 जनवरी तक सात दिवसीय महानुष्ठान तथा पूर्णाहुति एवं महाप्रसादि का आयोजन भी किया गया है, सभी अनुष्ठान का समय प्रातः 10.00 बजे से दोपहर 3.00 बजे तक रहेगा रखा गया है ।
न्यास के सक्रिय कार्यकर्ता पंडित किशोरचंद्र आचार्य महानुष्ठान प्रभारी है ,तथा न्यास के अन्य सहयोगी भागवत शुक्ला, श्रीरंग आचार्य , रमेंद्र सोनी ,डॉक्टर सुश्री जया पाठक तुषार भट्टी प्रदीप अरोड़ा (झाबुआ) आदि न्यासी ने अधिक से अधिक संख्या में थांदला पधार कर धर्म लाभ प्राप्त करने हेतु सभी सनातन धर्मावलंबियों से विनती की है।
फोटो- गुरूदेव का
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