झाबुआ । गोंडवाना की रानी दुर्गावती का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित है. उनका जन्म उत्तर प्रदेश में एक चंदेली परिवार में हुआ था। 1542 में, उन्होंने गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से शादी की. 1550 में अपने पति की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती गोंडवाना की गद्दी पर बैठीं और एक कुशल शासक के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज की। रानी दुर्गावती के पति दलपत शाह का मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में रहने वाले गोंड वंशजों के 4 राज्यों, गढ़मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला, में से गढ़मंडला पर अधिकार था। शादी के 4 वर्षों के बाद ही दुर्भाग्यवश रानी दुर्गावती के पति राजा दलपतशाह का निधन हो गया. जिसके बाद रानी दुर्गावती ने इस राज्य का शासन संभाला लेकिन फिर इस राज्य पर मुगलों की कुदृष्टि पड़ी जिसके बाद रानी दुर्गावती का पतन निश्चित हो गया इस स्थिति में भी रानी ने कई लड़ाईयां वीरता के साथ लड़ी और उन्हें खदेड़ा लेकिन फिर मुगलों की शक्ति के सामने हार निश्चत दिखी । इस स्थिति में उन्होंने घुटने टेकने के बजाय अपना चाकू निकाला और 24 जून, 1564 को युद्ध के मैदान में खुद की जीवन लीला समाप्त करली थी ।
श्री सोलंकी ने कहा कि 5 अकटूबर 1524 को उतर प्रदेश के बादा जिले मे कालिंजर के राजा कीर्तिसिह चंदेल के धर दुर्गावती का जन्म हुआ था उस दिन दुगाअष्टमी तिथि थी ,इसलिए उनका नाम दुर्गावती रखा गया था । अपने पिता की वह इकलौेती संतान थी दुगावती उसी चंदेल वश से थी । भारत मे महमूद गजनबी को रोका था ,बचपन से धुडसवारी, तलवार आदि शस्त्र कलाओं मे निपुणता हासिल की थी । युद्ध के समय उन्हे आभास हो गया था अन्ततः उप्होने खुद ने कटार से अपनी बलिदान दिया । ऐसी वीरांगना दुर्गावती के बलिदान दिवस पर हम सभी समाजजन श्रद्धांजलि अर्पित करते है तथा राजपुत समाज महारानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए संकल्प लेता है कि उनके शौर्य-पराक्रम को अपना आदर्श मानता है तथा उन्हे स्मरण करते हुए उनके पदचिन्हो पर चलने का संकल्प लेता है। उक्त बात रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर शुक्रवार को राजपुत समाज द्वारा बसंत कालोनी स्थित समाज राजपुत भवन में आयोजित कार्यक्रम में समाज के अध्यक्ष भैरूसिंह सोलंकी ने व्यक्त किये ।
इस अवसर पर श्रीमती अर्चना राठौर ने समाजजनों को संबोधित करते हुए कहा कि दीवान बेहर अधर सिम्हा और मंत्री मान ठाकुर की सहायता से रानी ने सफलतापूर्वक 16 वर्षों तक गोंडवाना साम्राज्य पर शासन किया। रानी घुड़सवारी, तीरंदाजी और अन्य खेलों में अच्छी तरह से प्रशिक्षित थी और वह अपनी वीर क्षमताओं के लिए प्रसिद्ध थी। रानी दुर्गावती को एक उत्कृष्ट शिकारी माना जाता था। एक समय जब उन्होंने सुना कि एक बाघ आ गया है, तब उन्होंने तब तक पानी नहीं पिया जब तक उसे मार नहीं दिया। रानी दुर्गावती ने मुगल बादशाह अकबर की सेना से लड़ाई की और पहली लड़ाई में उन्हें अपने राज्य से खदेड़ दिया।
समाज के उपाध्यक्ष रविराजसिंह राठोर ने कहा कि गोंडवाना की रानी दुर्गावती का नाम भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से अंकित है. उनका जन्म उत्तर प्रदेश में एक चंदेली परिवार में हुआ था। 1542 में, उन्होंने गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से शादी की. 1550 में अपने पति की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती गोंडवाना की गद्दी पर बैठीं और एक कुशल शासक के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज की।
रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में अतिथि के रूप में एडवोकेट अशोक सिंह राठौर एवं अर्चना राठौर उपस्थित थे । बडी संख्या में उपस्थित समाजजनो की उपस्थिति रही । कार्यक्रम की अध्यक्षता समाज के अध्यक्ष भैरोंसिंह सोलंकी ने की इस अवसर पर गोपाल सिंह चौहान , राघवेंद्र सिंह सिसोदिया , सुश्री रुकमणी वर्मा के द्वारा भी विस्तार से बताया गया । समाज के श्रीमती अनिता चोहान कमला सोलंकी ,विकमसिह चोैहान विकी, संजयसिह सिकरवार, आभार समाज के उपाध्यक्ष रविराज सिंह राठौर के द्वारा व्यक्त किया गया ।
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