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झाबुआ

राग द्वेष से रहित जीव को होती है मोक्ष की प्राप्ति‘– प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी~~~~ जीव बार बार इन्द्रियों के विषय का सेवन करता है परन्तु पाप भोगने का अवसर आता है तो दुःखी होता है- अणुवत्स पूज्य संयममुनिजी

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राग द्वेष से रहित जीव को होती है मोक्ष की प्राप्ति‘– प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी~~~~
जीव बार बार इन्द्रियों के विषय का सेवन करता है परन्तु पाप भोगने का अवसर आता है तो दुःखी होता है- अणुवत्स पूज्य संयममुनिजी

झाबुआ । मंगलवार को स्थानक भवन में पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी ने प्रवचन देते हुए फरमाया कि भगवान द्वारा बताये गये निग्रंथ प्रवचन धर्म की विशेषता को समझ कर उसके अनुसार प्रतिज्ञा अंगीकार कर, इसे स्वीकार कर मन, वचन, काया से बार-बार पालन करने से जीव राग द्वेष से रहित होकर मोक्षप्राप्त कर सकता हे । बार बार आराधना करने से शुभ परिणाम बनते है । सूत्र में आराधना में तत्पर होने की भावना की गई है। मैं विराधना से परे हटता हूं, आराधना मे आगे बढंू। विराधना से दूर होकर आराधना करू ऐसा लक्ष्य रखना चाहिये । वितराग ही संपर्ण आराधना करते है । स्थानक भवन में बैठ कर सामायिक करना आराधना है क्योकि वह पाप से निवृत्त होता है । पाप करने से आराधना दुषित होती है । आराधना साधु-साध्वी, श्रावक- श्राविकाओ चारों करते है । साधक का लक्ष्य होना चाहिये कि मुझे राग द्वेष से रहित बनना है । इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर अतिचार से मुक्त होकर आराधना करते हुए निर्मल आराधना करना चाहिये ।
मुनिश्री ने आगे कहा कि छद््मस्तता के कारण यदि आराधना मं दोष लगे तो प्रतिक्रमण कर प्रायश्चित करना तथा शुद्धि करना चाहिये । आपने आगे बताया कि जो आराधक मोक्ष मार्ग के अनुसार नियम पालन में दोष लगाते है, प्रायश्चित नही करते है, आलोचना नही करते है, ज्ञान, श्रद्धा चरित्र में दोष लगाते है , तथा शुद्धि नही करते है, वे विराधक कहलाते है । जो मोक्ष मार्ग के अनुसार क्रिया ही नही करते है, वे अनाराधक हैे ।
उन्होने आगे कहा कि आज के समय अनाराधक अंनंत है, जैेसा चल रहा है वैसा ही करते रहते है । जीव आराधना के स्वरूप को नही समझता है । वे सही को गलत, गलत को सही समझते है । आपने यह भी कहा कि जैन धर्म के अलावा हिन्दु धर्म में भी रात्री भोजन के त्याग की बात बताई गई है । रात्रि भोजन करना भगवान की आज्ञा की अवहेलना करना है। रात्रि भोजन से होने वाले दोषों, पापों के स्वरूप् को बराबर समझने पर व्यक्ति आराधक बनता है । अतः रात्रि भोजन नही करना चाहिये । पापों को छोडने पर ही आराधना हो सकती है । मोक्ष मार्ग में गतिशील बनना है तो, पापों को छोडना होगा । पाप के त्याग के बना आज तक कोई भी मोक्ष नही गया है ,न भविष्य में मोक्ष में जायेगा । असंयम से निवृत्त होकर संयम में विवृत होने की प्रवृर्ति अपनाना चाहिये । 17 प्रकार के असंयम और 17 प्रकार के संयम बताये गये हे । आराधना करने के लिये 17 प्रकार के असंयम की प्रवृर्ति छोडना होगी ।
धर्म सभा में अणुवत्स पूज्य संयममुनिजी ने संबोधित करते हुए बताया कि भगवान महावीर स्वामी जब संसार में थे तब उन्हे 5 इन्द्रियों के सुख उपलब्ध होने के बावजूद उन्होने दीक्षा ली । भगवान ने जाना था कि ये सुख, दुख देने वाले है । सामान्य जनइ न इन्द्रिय जनित सुख कोसुख मानता है, अच्छा खाना-पीना, नाचना-गाना, इनमें सुख लगता है । 5 इन्द्रिय के विषय काम-भोग तुच्छ है । देवता के भी रिद्धि-वैभव खुब होते है, पर वे भी पश्चाताप करते है । इसका कारण वे मानते है कि मैने मनुष्य लोग में लंबें समय तक साधुपना नही पाला, जल्दी दीक्षा नही ली, ऐसा प्श्चाताप करते हे । जीव के इन्द्रियों के वियाय खुजली के रोग के समान है । जीव बार बार इन्द्रियों के विषय का सेवन करता है परन्तु पाप भोगने का अवसर आता है तो दुःखी होता है । हमने पूण्य के उदय से मनुष्य भव पाया है, जो अत्यन्त ही दुर्लभ है । जो कार्य मनुष्य भव में कर सकते है, वे और कहीं नही कर सकते है । हमे ऐसा काम नही करना चाहिये कि बाद में पश्चाताप करना पडे । व्यक्ति थोडे काल के सुख के लिये लम्बे काल के दुःख भोगता हेै । उन्होने कहा कि 5 इन्द्रियों की आसक्ति छोडने पर ही जीव भवसागर से पार हो सकता हे । आत्मोद्धार में इन्द्रियों के वियाय बाधक है, इन्हे छोडना पडेगा ।
धर्मसभा में मेघनगर के सुश्रावक कविन्द्र धोका ने 31 उपवास के, राजगढ से पधारी कुमारी प्राची डोसी ने 15 उपवास तथा राजमल मुणत, श्रीमती राजुकूमारी कटारिया, श्रीमती सोनल कटकानी 15 उपवास, श्रीमती रश्मि मेहता ने 16 उपवास, श्रीमती आरती कटारिया, श्रीमती रश्मि, निधि, निधिता रूनवाल, श्रीमती चीना, नेहा घोडावत ने 15 उपवास, अक्षय गांधी, कुमारी लब्धि कटकानी ने 14 उपवास के प्रत्याख्यान लिये । मेघनगर के कविन्द्र धोका ने 35 उपवास की बोली लेकर बहुमान अशोक कटारिया ने किया । श्री संघ की तरफ से धोकाजी का शाल श्रीफल माला से सम्मान किया गया । प्रभावना भेंट दी गई । संघ मे वर्षी तप, सिद्धितप, मेरूतप, चोला-चोला, तेला-तेला, बेला-बेला, तप की तपस्या श्रावक श्राविकायें कर रहे है । तेला एवं आयम्बिल तप की लडी गतिमान है । व्याख्यान का संकलन सुभाष ललवानी द्वारा किया गया सभा का संचालन केवल कटकानी ने किया । विभिन्न शहरों से बडी संख्या में दर्शनार्थी दर्शनार्थ पधारे ।
सलग्न- फोटो एक
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