पापों का त्याग करने पर संयम निर्मल बनता है -प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी म.सा.
राग द्वेष दुःखी करने वाले है, भगवान ने इनको छोडा, हमे भी छोडना होगा- अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा
झाबुआ। मिथ्यादृष्टि आत्मा भी वंदनीय पूजनीय साधुओं को देख कर संयम अंगीकार कर लेता है । वह 9 पूर्व का ज्ञान भी प्राप्त कर उपदेश देता है, उसके उपदेश से कई वैराग्य भाव वाले भी होते है । कई भवि आत्मा इन उपदेशों को सुन कर संयम अंगीकार कर लेते है । इनमें से कई दृढता पूर्वक संयम का पालन कर कोई देव गति में तो कोई मोक्ष गति में जाता हैे । परन्तु मिथ्या दृष्टि आत्मा देव गति में जा सकता है, वह मोक्ष गति मे नही जाता है । सम्यग श्रद्धा आने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती हेै। पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी ने आगे कहा कि भगवान द्वारा बताया गया धर्म भुतकाल में भी था, वर्तमान में है और भविष्य में भी होगा । ऐसा श्रेष्ठ धर्म हमे मिला है, इस पर श्रद्धा, रूचि पूर्वक पालन करने पर जीव भवसागर से पार होता है । 5 प्रकार के पाप होते है- प्रााणातिपात, मर्शावाद , अदत्तादान, मेथुन, परिग्रह । इनपांच पापो का त्याग करने पर संयम निर्मल बनता है । अब्रह्म से निवृत्त होकर ब्रह्म को स्वीकार करना । साधु 5 प्रकार के पापों का त्याग करते है । दीक्षा ग्रहण करने वालें को पहले छोटी दीक्षा दी जाती हैै, जिसमें करेमिभंते का पाठ पढाया जाता है । बडी दीक्षा देते समय 5 महाव्रत कास्वरूप् इनके अर्थ, भावार्थ समझाते है इनकों समझाकर किस प्रकार यत्ना करना, रात्रि भोजन नही करना यह बताकर प्रतिज्ञा दिलवाई जाती है । प्रतिक्षण जीवन में अब्रह्म को छोड़कर ब्रह्म के भाव को सार्थक करना चाहिये । वर्षा के कारण सडक पर कई जीव आ जाते है, उन पर दृष्टि रखकर यत्ना पूर्वक चलने का ध्यान रखना चाहिये । क्रोध, मान, माया, लोभ के कारण असत्य नही बोलना, बिना दी गई वस्तु को ग्रहण नही करना चाहिये । भाव पूर्वक यदि कोई वस्तु दे तो ही ग्रहण करना । साधु को पैसा, गहनों से कोई लेना-देना नही होता है । 5 आश्रव का बार बार त्याग करने स आत्मा संयम से परिपूर्ण होता हे । साधु को अकल्प को छोड कर कल्प का पालन करना चाहिये । अपना जीवन चलाने के लिये आहार पानी,वस्त्र,पात्र की मर्यादा बताई गई है । मर्यादा से आचरण करना पडता है । इन वस्तुओं को लेकर मर्यादा का पालन करें तो संयम निर्मल होता है ।
पूज्य श्री ने आगे कहा कि साधु को मर्यादा के योग्य वस्तु को ही ग्रहण करना चाहिये । अनादिकाल से जीव का अज्ञान में ज्यादा समय व्यतित हुआ । अज्ञान को छोड कर सम्यग ज्ञान को ग्रहण करने का लक्ष्य होना चाहिये । भगवान की वाणी सुनकर जीव ज्ञानी बनता है । अज्ञान दुःखदायी है, यह समझ में तब आता है जब ज्ञान हो जाता है । आत्मा में अच्छे विचार बार-बार सुनने से अज्ञान छूटता हे । पूज्यश्री ने दिनांक 29 जुलाई को पूज्य आनंदऋषि जी मसा. की जन्म जयंती पर 108 एकासन तप तथा प्रत्येक श्रावक श्राविका को 3 सामयिक करने का आव्हान किया ।
इन्द्रियों के प्रति आसक्ति दुःखदाई है ।
धर्मसभा में अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा. ने फरमाया कि मृगापुत्र को जाति स्मरण ज्ञान हुआ तो उनको वैराग्य हुआ । चारो गति दुखःदायी है, ऐसा समझा तो वे संसार छोड कर दीक्षित हुए । माता पिता ने पहले समझाया कि तुम युवा हो, भोग भोगों पर उन्होने कहा कि चारो गति में दुःख देखे है, भोगो में सुख नही है , वैराग्य में ही सुख है । इसलिये मुझे दीक्षित होना है । कीम्पांग फल उपर से अच्छा दिखता है पर उसमें अंदर जहर भरा हुआ है । यह जीव भी अनादि काल से कीम्पाग फल के समान भोग भोगता रहा है और दुःख पाता रहा । व्यक्ति को भोग में आनंद आता है, पर बाद में पछताना पडता है । गृहस्थ के काम भोग थोडे काल के है, तुच्छ है, निस्सार है,इन पर आसक्ति नही होना चाहिए ।5इंद्रियों का भोग अच्छा लगता हे । जुबान में कोई चिज आने पर अच्छी लगी तो खुशी , बुरी लगी तो दुःख होता हे । रसनेन्द्रिय के विषय में आसक्ति रोज होती है, कइ्र बार व्यक्ति अभक्ष भी खा लेता है । रसनेन्द्रिय हमेशा सुख नही देती है । इसी प्रकार स्पर्शर्नेन्द्रिय की आसक्ति भी दुःख दाई हे । कपडे पहिनने में सुख दिखता है, गर्मी में ठंडा पानी पीना, पंखा- कूलर, ए.सी. अच्छा लगता है । सौन्दर्य साधन भी स्पर्शनेंन्द्रिय के विषय है । अनादिकाल से जीव इसमें आसक्त है । भगवान की वाणी सुनकर अभी नही जागे तो कब जागेगे । ये राग द्वेष दुःखी करने वाले है, भगवान ने इनको छोडा, हमे भी छोडना होगा । परिग्रह नही बढाना चाहिये । इन 5 इन्द्रियों के प्रति आसक्ति दुःख दाई है, इनसे बचकर रहना चाहिये । भगवान की वाणी पर सच्ची श्रद्धा रखना चाहिये ।
तपस्या की छाई बाहर, तप से मिलती हे शांति अपार ।
आज श्रीमती राजकुमारी कटारिया, श्रीमती सोनल कटकानी , श्री राजपाल मूणत ने 20उपवास, श्रीमती रश्मि मेहता ने 18उपवास, श्रीमती आरती कटारिया, श्रीमती रश्मि, निधि , निधीता रूनवाल , श्रीमती नेहा, चीना घोड़ावत ने 17उपवास कु.खुशी चौधरी ने 10उपवास तथा श्री मनोज कटकानी ने 7उपवास के नियम लिए । संघ में वर्षी तप, सिद्धि तप, मेरु तप की तपस्या श्रावक, श्रविका कर रहे हे । तेला, ओर आयंबिल की लड़ी गतिमान हे । प्रवचन का संकलन सुभाष ललवानी ने किया, संचालन केवल कटकानी ने किया ।