सद्ज्ञान जीव को सन्मार्ग पर ले जाता है- प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी मसा.
झाबुआ । दि. 29 जुलाई को स्थानक भवन में धर्मसभा में पूज्य जिनेन्द्रमुनिजी ने फरमाया कि व्यक्ति को अच्छी वस्तु को जानकर ग्रहण करना तथा बुरी वस्तु को जानकर छोडना चाहिये । जानने से सही-गलत की जानकारी होती हे । विपरित कार्य करना अकल्प कहलाता हैे । अकल्प को छोडना तथा कल्प को ग्रहण करना आवश्यक है । विपरीत आचरण छोड़ना तथा अच्छा आचरण करना आवश्यक है । साधु साध्वी को कल्प का पालन करना अनिवार्य है । गृहस्थ द्वारा साधु के निमित्त से बनाया गया आहार ,पानी,वस्त्र,पात्र साधु के लिये अकल्पनीय हेै । सम्मुख लाकर बहराना तथा ग्रहण करना भी अकल्पनीय हे । जो ग्रहण करता है, वह साधु प्राणी वध का भागी बनता है । इस प्रकार के कार्य छोडने से सदाचरण होता है ।
अज्ञान को जानकर ज्ञान को ग्रहण करना चाहिये –
आपने आगे फरमाया कि जिनेश्वर देव द्वारा जो बात बताई गई वह तत्व ज्ञान ही ज्ञान है, शेष अज्ञान है । अज्ञान को जानकर ज्ञान को ग्रहण करना चाहिये । आधुनिक समय की पढाई ज्ञानी की दृष्टि में संस्कार को बढ़ाने वाली नहीं है । पहले की पढाई और आज की पढाई में बहुत अंतर है । आचरण बिगडता जा रहा है और घमंड भी आता है । व्यक्ति आधुनिकता में बढता है, यह मिथ्या ज्ञान हे । सभी उच्च पढे-लिखे का सम्मान नही होता है , आज बेरोजगारी, तीव्रगति से बढ रही हे । ज्ञान-अज्ञान का जब तक भेद समझ में नही आएगा, तब तक व्यक्ति के आचरण में निर्मलता नही आयेगी । सही जानकारी के अभाव में श्रद्धा विकृत होती है । चरित्र का पतन हो रहा है । विदेशों में चरित्र की हीनता बहुत ज्यादा हे । सद्ज्ञान ही जीव को सन्मार्ग पर ले जाता है । अज्ञान को जानकर ज्ञान को ग्रहण करना चाहिये । भगवान द्वारा कहा गया ज्ञान ही सम्यक ज्ञान है । व्यक्ति जैेसे जैेसे भगवान की वाणी का श्रवण करता है, वैसे वैसे उसमें ज्ञान की समझ आती है तथा चारित्रिक उत्तमता बढती जाती है ।ज्ञान की प्राप्ति पुरूषार्थ एवम ज्ञानावर्णीय कर्म का क्षय होने से होती है । । आपने फरमाया कि आज पूज्य आचार्य आनन्दऋषि जी मसा. की जन्म जयंती हे । उन्होने 12 वर्ष की उम्र में दीक्षा ग्रहण की थी । उन्हे कर्इ् भाषाओं का ज्ञान था, लम्बी उम्र में भी उनकी याददाश्त अच्छी थी । उन्होने दूर दूर तक परिभ्रमण कर धर्म का प्रचार किया । उनकी वाणी का प्रभाव जबरदस्त था , दूर दूर से दर्शनार्थी दर्शन के लिये आते थे । हमे भी उनसे प्रेरणा लेकर उनके गुणों को अपनाना चाहिये ।
जीव अनादिकाल से विषयों का सेवन करके कर्म बांध रहा है-
धर्मसभा में अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी ने फरमाया कि भगवान महावीर स्वामी ने असंयम के कारण जानकर उनको छोड कर संयम ग्रहण किया था । अन्य आत्माओं को भी संयम में आने का उपदेश दिया था । जीव अनादिकाल से इन्द्रियों के विषय भोग में आसक्त हे । जिस प्रकार मकडी जाल स्वयं बनाती है, स्वयं ही उसमे फंसती है, उसी तरह जीव भी स्वयं विषयों के जाल बना कर उसमें फंसता हे । प्रतिकूल वस्तु, प्रतिकूल व्यक्ति, प्रतिकूल परिस्थिति आने पर जीव विषयों को छोडता हे, पर इनकों वह भाव से नही छोडता है । जीव इच्छापूर्वक छोडे तो दुःख नही होता है, बिना इच्छा के छोडे तो दुःख होता है । वापस भोगने का मन होता है । विषय भोग भोगते हुए व्यक्ति कभी भी तृप्त नही होता है । यह जीव अनादिकाल से विषय भोगों का सेवन करके कर्म बांध रहा है , इसी मे सुख अनुभव करता है । क्षण-मात्र का सुख बहुत समय के दुःख का कारण बन जाता हे ।संसार में इंद्रियों के विषय के निमित्त बहुत ज्यादा मिलते है जबकि साधुपने में ये दुःख बहुत कम हो जाते हे । इसलिए भगवान ने संयम को श्रेष्ठ कहा है । आपने आगे फरमाया कि पूज्य आनंद ऋषि जी मसा. का नाम नेमीचंद था, इसका अर्थ नियम पालने वाला चंद्रमा । आचार्य भगवन भी नियम पालने वाले थे ।उनका जीवन देखने योग्य था । वे अनुशासन प्रिय थे, विनय प्रिय थे । 3 बार वे आचार्य बने थे, उन्होने धर्म की अच्छी प्रभावना की । आज उनकी जयंती तप-त्याग से मनाई जा रही है ।
मास क्षमण तपस्या की ओर अग्रसर तपस्वी-
आज श्री राजमल मुणत, श्रीमती राजकुमारी कटारिया, श्रीमती सोनल कटकानी ने 21 उपवास, श्रीमती रश्मि मेहता ने 19 उपवास श्रीमती आरती कटारिया , श्रीमती रश्मि, निधि, निधिता रूनवाल, श्रीमती नेहा, चीना घोडावत, ने 18 उपवास कु. खुशी चौधरी ने 11 उपवास, श्री अक्षय गांधी ने 17 उपवास तथा श्री मनोज कटकानी ने 8 उपवास के नियम ग्रहण किये । इसके अतिरिक्त संघ में वर्षी तप, सिद्धि तप, मेरु तप, चोला चोला, तेला तेला तप, बेला बेला तप तपस्वियों द्वारा किए जा रहे हे । तेला ओर आयंबिल तप की लड़ी बराबर चल रही हे । पूज्यआनंदऋषि जी मसा, की जन्म जयंती पर लगभग 100 तपस्वीयो ने एकासन तप किया । व्याख्यान का संकलन सुभाष ललवानी ने किया, सभा का संचालन दीपक कटकानी ने किया ।
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