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झाबुआ

तेरापंथ समाज ने समणी वृंद के सानिध्य में सामूहिक रूप से भक्तामर स्तोत्र की स्तुती की …….

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झाबुआ – महातपस्वी , महामनस्वी , शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या समणी निर्वाण प्रज्ञा जी व समणी मध्यस्थ प्रज्ञा के सानिध्य में समाज जन द्वारा सामूहिक रूप से भक्तामर स्तोत्र की स्तुति , स्थानीय लक्ष्मी बाई मार्ग स्थित तेरापंथ सभा भवन पर की गई । समणी वृंद ने बताया कि रोजाना भक्तांबर स्तोत्र की स्तुति करना चाहिए तथा यह स्तोत्र बहुत प्रभावशाली है तथा सब प्रकार से आनंद मंगल करने वाला है ।

रविवार सुबह करीब 9:00 बजे तेरापंथ समाज के श्रावक श्राविकाए अपने-अपने ड्रेस कोड में सभा भवन पर उपस्थित हुए और सामायिक प्रत्याख्यान किए । सर्वप्रथम समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी ने गीत… देव तुम्हारा पुण्य नाम मेरे मन में रम जाए ….चैत्य पुरुष जग जाए…. का संगान किया और समाज जन ने दोहराया । इसके बाद समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी और उपस्थित सभी समाज जन ने ईशान कोण में तीन बार त्रिपदी वंदना के बाद नमोत्थाणं का उच्चारण किया । इसके बाद उपस्थित सभा ने नमस्कार महामंत्र का जाप किया । पश्चात 24 तीर्थंकरों की स्तुति हेतु लोगस्स का भी जाप और ध्यान किया गया । पश्चात समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी ने शुद्ध और लयबद्ध तरीके से भक्तामर स्तोत्र का उच्चारण प्रारंभ किया और उपस्थित समाज जन ने भी भक्तामर स्तोत्र का उच्चारण समणी जी के साथ साथ किया शुद्धता पूर्वक किया । समणी निर्वाण प्रज्ञा जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि हमें आस्था और एकाग्रता के साथ मंत्रों का जाप करना चाहिए । साथ ही साथ मंत्रों के उच्चारण में शुद्धता होनी चाहिए तथा गलत उच्चारण से मंत्र फलित नहीं होते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सारे जैन धर्म में भक्तामर स्तोत्र बहुत प्रभावशाली हैं व श्रद्धा से पढ़ा जाता है । तथा सब प्रकार के आनंद मंगल करने वाला है तथा उत्तर दिशा में ईशान कोण की ओर मुख करके पाठ करना उपयुक्त है । इसके बारे में वर्णन करते हुए बताया कि भक्तामर स्तोत्र का दूसरा काव्य लक्ष्मी की प्राप्ति और शत्रु विजय के लिए , छट्टा काव्य बुद्धि विकास के लिए , दसवां वचन सिद्धि के लिए , पंद्रहवा मान सम्मान व प्रतिष्ठा की वृद्धि के लिए । इस प्रकार किन-किन काव्य से क्या क्या लाभ होते हैं समणीजी ने विस्तार पूर्वक बताएं । उन्होंने कहानी के माध्यम से बताया कि सैकड़ों वर्ष पूर्व धार नगरी में राजा भोज राज्य कर रहे थे उस समय अनेक धर्मालंबी अपने धर्म का चमत्कार बता रहे थे। तब महाराजा भोज ने भी मानतुंगाचार्य से आग्रह किया कि आप हमें चमत्कार बताये । आचार्य मौन रहे । तब राजा ने उन्हें 48 तालों की एक श्रंखला में उन्हें बंद कर दिया । मानतुंगाचार्य ने उस समय आदिनाथ प्रभु की स्तुति प्रारंभ की । ध्यान में लीन हो गए । जो जो वे श्लोक बनाकर बोलते गए ….त्यों त्यों ताले टूटते गए । तात्पर्य है कि हमें संपूर्ण आस्था और एकाग्रता के साथ जाप और ध्यान करना चाहिए । समणी जी ने यह भी बताया कि उपसर्गहर स्तोत्र ,लोगस्स पाठ की स्तुति, मंगल पाठ व अन्य मंत्रो रोजाना जाप करने के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी । यह भी बताया कि मंदिर जाने पर विभिन्न मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए । साथ ही ब्रह्म मुहूर्त में उठकर मंत्रों के जाप करने से अधिक लाभकारी होते हैं । देवी देवता भी मंत्रों के उच्चारण से प्रसन्न होते हैं । दिन भर में कभी भी संपूर्ण परिवार द्वारा एक साथ एक स्थान पर बैठकर मंत्रों का जाप करें । जिससे कि नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह या संचार हो । साथ ही साथ यह सुरक्षा कवच के रूप में आपकी रक्षा भी करेगा । साथ ही साथ समणी जी ने सभी से रोजाना मंत्र जाप का नियमित प्रयोग करने के बात भी कही । कार्यक्रम के अंत में समणी वृंद में सभी को मांगलिक भी सुनाई ।

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