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झाबुआ

कलेक्टर साहब ….स्वास्थ अधिकारी नही दे रहे जिला चिकित्सालय पर ध्यान……

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इम्यूनो ग्लोबुलिन टीका अस्पताल में खत्म हुए 4 माह गुजरे
परिजन महंगा खरीद कर ला रहे हैं टीका, 2-3 दिन में आता है एक केस, जिम्मेदारों का ध्यान नहीं ।
मनीष के इशारे पर नाचने को क्यो मजबुर हे सीएमएचओ डा. ठाकुर

झाबुआ। जिले का स्वास्थ्य विभाग भ्रष्टाचार, भाई भतिजावाद एवं नियमों के विरूद्ध जहां कार्य करने के लिये हमेशा ही मीडिया की सूर्खियों में बना रहता है, जब से मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डा. जयपालसिंह ठाकुर को जिले का प्रभार मिला है तब से अपने चाटूकारों के बीच घीरे रहते है, ?इनके द्वारा स्वार्थ के चलते नियमों, कानून कायदों, एवं उपरी संेटिंग करके किस कदर भ्रष्टाचार को सरंक्षण दिया जारहा हे । अपने खासम-खास मनीष सेन पर तो इतने अधिक कृपावंत है कि उनको वे अपनी आंख से दूर ही करना नही चाहते है। एनआरएचएम में नियमों को ताक पर रख कर जिस व्यक्ति को हटाना चाहिये था, उन्ीे अपनी नाक का बाल बनाये हुए है। विभागीय खरीद दारी में भी डा. ठाकुर के कई लू -पोल चर्चा का विषय बने हुए है और सिर्फ मुद्राराक्षस के लिये डा0 ठाकुर कुछ भी करने मे पीछे नही रहते हे । जनस्वास्थ्य एवं जनहित के लिये व्यवस्था करने में वे अनभिज्ञ बन जाते है और इसकी चाामियाजा गरीबों आदिवासियों, गरीबी रेखा से नीचे वाले मरीजों को उठाना पड रहा है, तथा उन्हे इनकी ऐसी भ्रष्ट नीतियों के कारण ही इस महंगाई के युग में आर्थिक शोषण का शिकार होना पडता है । डा. ठाकुर के द्वारा जहां एक ही फम्र से मनमाना कमिशन मिलने के चलते उसे उपकृत करने में कोई कोतिाही नही नही बरती जारही है। वही सरकार के स्पष्ट निर्देशों एवं इमरजेंसी सेवाओं के लिये त्वरित प्रबंध किये जाने के निर्देशों को भी धत्ता बताया जरहा है । जिले की स्वास्थ्य सेवाओं को सुचारू बनाये रखने के साथ ही मातृ एवं शिशु कल्याण के तहत मिलने वाले भारी भरकम बजट को भी सिर्फ कमिशन बाजी के चक्कर में पलिता लगाने मे पीछे नही रह रहे है। मनीष जेसे वित्तिय सलाहकार के चलते केवल कागजी खाना पूर्ति करके ये दर्शाना चाहते है कि वे देध के धुले है, किन्तु वास्तविकता के धरातल पर देखे मों पिक्च्र कुछ और ही चल रही है और इसे लेकर विभाग में भी चर्चायें इन बातों को पुष्ट करती हैै।
जिला अस्पताल रि ही बात करें तो जिला चिकित्सालय में पिछलें 4 माह से हैपेटाइटिस बी पॉजिटिव मां के नवजात को लगाए जाने वाला इम्यूनो ग्लोबुलिन टीका खत्म हो रहा है। ऐसे में नवजात के परिजनों को बाजार से 5 हजार रुपए से अधिक में टीके को खरीदकर लगवाना पड़ रहा है। हैपेटाइटिस बी पॉजिटिव मां के नवजात को 72 घंटे में इम्यूनो ग्लोबुलिन टीका लगना अति आवश्यक है। टीका महंगा होने से सरकार इसे अस्पतालों में निशुल्क दिलवाती है, लेकिन जिला अस्पताल में 4 माह से यह आवश्यक टीका नहीं मिल रहा है। इस अवधि में अस्पताल प्रशासन ने न आरएमआरएस द्वारा टीके को खरीदने की कोशिश की और न जननी सुरक्षा योजना के तहत ही खरीदा गया। जिला अस्पताल में जिलेभर से प्रसूताएं डिलेवरी के लिए आती है। यहां प्रसव से पूर्व होने वाली जांचों में 2-3 दिन में एक केस हैपेटाइटिस बी पॉजिटिव प्रसूता का सामने आता है। डॉक्टर परिजनों को टीका मंगाने के लिए कह देते हैं। अस्पताल में टीका नहीं होने का टका-सा जवाब मिलने अप्रैल से लेकर अभी तक यही हो रहा है । सरकार के निर्देशानुसार पूर्व से ही निशुल्क व्यवस्था होने के बाद भी गरीब लोग टीका खरीदने पर मजबूर, आखिर क्यों ? अभी तक जिम्मेदार अधिकारी और हमारे निर्वाचित जनप्रतिनिधि एवं नेतागण ध्यान नहीं दे रहे हैं ।
यदि डा. ठाकुर में जरा भी मानवीयता एवं बीमार बच्चों के प्रति संवेदना होती तो प्राथमिकता के आधार पर वे व्यवस्था करवा सकते थे तो जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डा0 बीएस बघेल को इसके लिये निर्देशित भी कर सकते थे, किन्तु ’’………. मौसेरे भाई’’ वाली कहावत के चलते न तो जिला अस्पताल प्रबंधन ने ध्यान दिया ओर न ही मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को इसमें अपना लाभ दिखाई दिया । फलतः शिवराज मामा के राज में भानजों के साथ इस प्रकार से अमानवीतया भी मनन का विषय बनी हुई हेै । जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी साहब का ध्यान भ्रष्टाचार व अपने ही विभागीय कर्मचारियों के साथ तुतडाई और भेदभाव करने से फुर्सत हो तब इस और संज्ञान लेंगे ? सिर्फ इस अंचल में पैसा ही कमाने के उद्देश्य से आये लगते है । भोले भाले ग्रामीण जनो के साथ इस प्रकार का छलावा क्यों ? यदि जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी अपनी ड्युटी को समझते तो एवं यदि वे चाहे तो आनन फानन में जिला चिकित्सालय पर यह टीका तत्परता से उपलब्ध करवा सकते है। परन्तु अपने सिर पर आई मार को दूसरें पर डालने में माहिर डा0 ठाकुर अपने आप को दुध का धुला ही साबित करने में कहा चुकेगें ।

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