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झाबुआ

असत्य और कलह से दूर रहने पर जीव के मन में शुभ भावों की अभिवृद्धि होती है । -प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनि जी म.सा.

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झाबुआ । आत्मोद्धार चातुर्मास में 10 अगस्त बुधवार को स्थानक भवन में पुज्य जिनेन्द्र मुनिजी म.सा.ने कहा कि केवल ज्ञानी धर्म का सही उपदेश देते है। उनके उपदेश श्रवण कर अनेक आत्मा सन्मार्ग गामी होते है । कई बार कई सन्मार्गी मात्र अपनी वाह वाही लूटने ,उपदेश सही नही होने के कारण ऐसे उपदेश सुनाने वाले व्यक्ति के उपदेश सुनकर उन्मार्गगामी बन जाते है । सही आराधना नही करके ,विपरित आराधना करते है । ऐसे व्यक्ति खुद डूबते है, तथा दूसरों को भी डुबाते है । ऐसे उन्मार्ग गामी गाढे कर्म का खुद बंध करते ही है तथा जो ऐसे मार्ग पर चलते है वे भी कर्म बंध करते है । सुधर्म को कुधर्म , सुगुरू को कुगुरू, सुशास्त्र को कुशास्त्र मानते है, ऐसा अनादि काल से, उन्मार्गगामी इस मार्ग पर चल कर संसार में परिभ्रमण करते रहते है । उसका कभी अंत नही आता है । सबसे ज्यादा जीव को परिभ्रमण कराने वाला मार्ग उन्मार्ग (बुरा मार्ग) है ।* जिनेश्वर देव द्वारा बताया गया मार्ग ही सन्मार्ग है ।
आपने आगे कहा कि 18 पापों में से मिथ्या दोषारोपण करना ऐसा पाप है जो जेसा जिस रूप् में करता है, उस पर वेसा ही पाप का उदय आता है । व्यक्ति अज्ञानवश, मोहवश किसी पर झुठा दोषारोपण करके गाढे कर्म का बंध कर लेता है अपने दोषों को दूसरो पर लगाता है। पाप खुद करता है, दूसरो के उपर मढ कर महामोहनीय कर्म का बंध कर लेता है । समाज में , नगर में, परिवार में अच्छा दिखूं इसलिये ऐसे गलत कार्य करता है, परन्तु इसके परिणाम भी दुष्ट होते है । किसी दुसरें को कैसे फंसाना, किसी की छबि को कैसे धुमिल करना, इस प्रकार के कार्य करने से उसके परिणाम लंबे समय तक उसे भोगना पडते है । व्यक्ति समाज में, परिवार में दबा रहता है , सच्चें को झुठा, झुठे को सच्चा बना देता है । अपने दोष दिखाई नही देते, अंधा बन जाता है । आजकल बडे घोटालें होते है, पर बरी हो जाते हे । इस प्रकार का कार्य करने वाला व्यक्ति अनेक लोगों की आहे ओर श्राप लेकर दुःखी होता है ।
आपने आगे कहा कि जो व्यक्ति जानते हुए लोगों के बीच सत्य को झुठ, मिलाकर कलह करता है, वह महामोहनीय कर्म का बंध करता है । सत्य को असत्य सिद्ध करना असत्य को सत्य सिद्ध करना, जरा जरा सी बात पर झुठ बोलता है । संसार में इस प्रकार का झुठ चलता रहता है । झुठ बोलने वाले के मन में हमेशा अशुभ भाव, अशुभ विचार चलते रहते है । बात बात में व्यक्ति झुठी कसम खाता है । भगवान के नाम की झुठी कसम भी खा लेता है । ऐसे व्यक्ति का दिमाग अशुभ भाव में रहता है और कर्म बंध करता है । उनकी पुरी जिंदगी अशुभ भाव में निकल जाती है । झुठ का पुलिंदा बन जाने पर पाप का उदय होने पर उसे भयंकर परिणाम भोगना पडते है । जरा-जरा सी बात पर झगडा करना, कलह करना भी कर्म बंध का कारण है । जो कलह करता है वह मोक्ष के लक्ष्य को समाप्त करता है । चाहे वह साधु साध्वी हो या श्रावक-श्राविका हो । ज्ञानी कहते है कि कलह की प्रवृर्ति से दूर रहना चाहिये , जो जितना कलह से परे रहता है, शुभ भाव की उसमें अभिवृद्धि होती है। असत्य और कलह से दूर रहने पर जीव के मन में शुभ भावों की वृद्धि होती है ।
कुछ मनुष्यो की वृत्ति दूसरो को दुःख ओर पीड़ा देने की होती है ।
अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा ने कहा कि भगवान ऋषभदेव जी के 98 पुत्र भरत राजा की शिकायत करने भगवान के पास आये थे, भगवान ने शिकायत सुनने के बाद कहा कि समझ बडी दुर्लभ है ,इसे समझो। भगवान की बात समझ कर सभी पुत्रों ने दीक्षा ले ली । वे समझ गये कि अगर संसार में रहेगें तो भरत राजा की आज्ञा मानना पडेगी । उनकी खुशामद गरज करना पडेगी , चापलुसी करना पडेगी । पर दीक्षा लेने के बाद उनकी गरज खुशामद की जरूरत नही पड़ेगी ।संसार में गृहवास में रहते हुए कई लोगों की खुशामद करना पडती है । कई लोगों के सामने जीव दबा हुआ है । दबे हुए को भार लगता है । कुछ मनुष्यों की वृत्ति दुसरों को दुःख और पीडा देने की होती है । ऐसे व्यक्ति का सामना नही कर सकते है,तो उसकी खुशामद करना पड़ती है। चाहे सामने वाला हल्का हो, गरज पडने पर उसके सामने व्यक्ति को झुकना ही पडता हे । झूठा,आदर और सम्मान देना ही पडता है । जीव देवता-देवियों से भी डर कर खुशामद करता है ।देव उसी को नमस्कार करते हे जिसका मन संयम में लगा रहता है ।। व्यक्ति का धर्म में मन लग गया तो उसे खुशामद नही करना पडती हे । गृहस्थ दुर्बल मन वाले होतेे है,इसलिए उनको देवों से भी दबना पड़ता हे । व्यक्ति को दबना पसंद नही है , पर काम निकालने के लिये दबना पडता है । झुठी प्रशंसा करने पर कर्म बंध होते है । जो भी समझ गये वो आनंद में है, जो नही समझे वो दुःखी है । मजबुत मन वाले ही लंबी तपस्या करते है । ऐसे तपस्वी जो यहां तपस्या कर रहे है वे धन्यवाद के पात्र है ।
खाना पीना छोड़ा, छोड़ा स्वाद और चटकारा । धन्य तपस्वी तुमको, तप से तन मन को संवारा ।
मासक्षमण से भी आगे बढ कर उग्र तपस्या की ओर अग्रसर श्रीमती राजकुमारी कटारिया ने आज 33 उपवास के प्रत्याख्यान लिये । मास क्षमण की ओर कदम बढाते हुए श्रीमती आरती कटारिया, श्रीमती रश्मि, निधिता रूनवाल, श्रीमती चीना, नेहा घोडावत ने आज-30 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये । श्री अक्षय गांधी ने 29 तथा श्रीमती आजाद बहन श्रीमाल ने 15उपवास के पचखान लिए । 10 तपस्वीयो द्वारा उपवास,एकासन ,निवि तप से वर्षीतप कर रहे है । श्रीमती पूर्णिमा सुराणा सिद्धितप, श्रीमती उषा, सविता पद्मा,सुमन रूनवाल, श्रीमती रेखा कटकानी मेरू तप कर रही हे । अन्य कई तपस्वी विभिन्न प्रकार की तपस्या कर रहे है । आज श्रीमती रश्मि मेहता के 30 उपवास पूर्ण होने पर जयकार यात्रा निकाली गई । वर्षावास प्रारंभ से तेला-आयम्बिल तप की लडी सतत चल रही है । प्रवचन का संकलन सुभाष ललवानी द्वारा किया गया। सभा का संचालन केवल कटकानी ने किया ।

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