धर्म के योग्य आचरण करने पर व्यक्ति धर्म से जुड़ता है ।,* प्रवर्तक पुज्य जिनेन्द्रमुनिजी म.सा.
झाबुआ। स्थानक भवन में 15 अगस्त सोमवार को पुज्य जिनेन्द्रमुनिजी म,.सा.ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि संसार में ऐसे भी व्यक्ति है, जो सन्मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को उन्मार्गीगामी बना देते है । ऐसे व्यक्ति इस प्रकार का कर्म करके गाढे निकाचित कर्म ,महामोहनीय कर्म का बंध करते है । *सन्मार्ग मोक्ष का मार्ग है, तथा उन्मार्ग संसार का मार्ग है ।* जो आत्मा सन्मार्ग की और आगे बढती है, वह मोक्ष मार्ग पर शीघ्र अग्रसर होती है । आपने आगे कहा कि साधक के 3 प्रकार के है 1. सम्यग् दृष्टि 2. देश विरति , 3 सर्व विरति । जो श्रावक व्रत नियम का पालन करते हेै, वह देश विरति श्रावक है । परन्तु ऐसे श्रावक को भी कुछ व्यक्ति धर्म विरोधी बाते बता कर, फुसला कर उन्मार्गीैैै बना कर पथ भ्रष्ट कर देते है । श्रावक को भी कुछ व्यक्ति अनाप-शनाप बाते बता कर उसे धर्म से विमुख कर देते है । देश विभाजन के पूर्व भारत-पाकिस्तान एक ही थे । जैन संत लाहौर, रावलपिण्डी आदि शहरों में विचरण करते थे, वहां जैन धर्मावलम्बी रहते थे । जैन मंदिर, स्थानक भवन भी बने हुए थे । परन्तु विभाजन पश्चात जैन श्रावकों पर अत्याचार हुए, उन्हे कई तरह के दुःख दिये गए, मंदिर,स्थानक, भवन तोड दिये, सारी संपत्तिया नष्ट कर दी गई, । कई का धर्म परिवर्तन खासकर गरीब परिवारो का कर दिया गया । परन्तु धर्म में दृढ रहने वाले कई श्रावक विचलित नही हुए, उनको खुब यातना दी गई । परन्तु उनको मरना मंजुर था, पर धर्म परिवर्तन नही मंजुर था । इस प्रकार का कृत्य करने वाले भी महामोहनीय कर्म का बंध करते हे । इसी प्रकार संयम लेने वाले सर्वविरति को भी परेशान कर वैराग्य को नष्ट करने वाले व्यक्ति,परिवार भी संसार मे होते है । परन्तु वैराग्य पथ पर दृढ रहने वाले धर्म पर दृढ रहते है, उनका वैराग्य कायम रहता है, ऐसे व्यक्ति विरले होते है। जो संयमी तपस्वी बन गये है, उनको भी पतित करने वाले व्यक्ति होते है । कई बार ऐसे व्यक्तियों की बातों में बहक कर आचरण में अशुद्धि आ जाती है , धर्म से विमुख भी हो जाते है । मन मे भाव बिगड जाते है, धर्म को छोड देते है । उनके निमित्त बुरा आचरण करने वाले होते है । व्यक्ति का आचरण धर्म के योग्य होता है, तो व्यक्ति धर्म से जुडता है । जो व्यक्ति धर्म मार्ग पर आगे बढते है, उनकी प्रशंसा करना चाहिये, उनको सहयोग देना चाहिये । गुणीयों के गुणों की प्रशंसा करने वाला सम्यग् को संयम को निर्मल बनाता हे । एक भव की अंतराय भव-भव तक जीव को धर्म से विमुख करती हे । अंतराय देने वाला व्यक्ति संसार सागर में अनंत भव तक परिभ्रमण कर गाढे महामोहनीय कर्म का बंध करता है ।
*जीव शरीर से आजाद हुआ हे, पर उसे कषाय रूपी जंजीरों ने गुलाम बना रखा हे* – पूज्य संयतमुनिजी म.सा.
धर्मसभा में पूज्य संयतमुनि जी म.सा. ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी जी अंतिम भव में कर्म से, कषाय से आजाद हुए थे । आज देश में आजादी का 75 वां अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है , घर घर तिरंगा लहराया जारहा है, सारे देश मे खुशियां मनाई जारही है । देश अंग्रेजो का गुलाम था, गुलामी के समय हमारे पूर्वज गुलामी की जंजीरों से बंधे हुए थे । उस समय उनके दुखों को सुनकर हमारे रोंगटे खडे हो जाते हे । आज अंग्रेज छोड कर चले गये पर हम पर अंग्रेजी छोड गये, जिसके हम आज भी गुलाम हे । जीव को गुलामी पंसद नही है, वह आजाद रहना पसंद करता है । परन्तु क्या हम वास्तव में आजाद हुए है ? जीव शरीर से तो आजाद जरूर हुआ है, परन्तु उसे कषाय रूपी जंजीरों ने गुलाम बना रखा है। जीव ने पुदगलों को बांध रखा है,वह पुदगलों का गुलाम है । जीव पुदगल रूपी पिंजरें मे बंद है, उसे अच्छा खाने पीने को मिल रहा है, प्रसन्न हो रहा हे । जिस वस्तु के बिना काम नही चलें, हम उसके गुलाम है । संसार में जितने भी पुदगल है उनको ले-लेकर हमने छोड दिया हे । आज सारी दुनिया मोबाईल की, टी.वी. की, गाडी की, खाने-पीने की सभी वस्तुओ की, व्यसनों की आदि सभी की गुलाम है ।संसार में वमन का अर्थात छोड़े हुए पुदगलो का पुनः पुनः भक्षण होता आया हे । यह जीव अनादिकाल से पुदगलों का गुलाम होता आया हे । हमें इस गुलामी से मुक्त होना चाहिये । गुलामी का दुःख बडा दुःखदायी होता हे । आज हम आजादी की खुशी देख रहे हेै । जो जीव पुदगलो, कषायों की गुलामी से आजाद होगा वह भव भव तक सुखी और प्रसन्न रहेगा । *अपने ऊपर अपना स्वयं का शासन ही स्वतंत्रता है, दूसरो का शासन हमारे ऊपर रहे यह परतंत्रता हे ।*। अपनी आत्मा पर पुदगलो का शासन चल रहा है, इस कारण हम परतंत्र है। इन पुदगलों का मोह छोडेगें तो ही हम स्वतंत्र होगें ।
आज घर्म सभा में करवड निवासी श्री अशोक जी श्रीमाल ने 39 उपवास तथा श्रीमती वीनस कटारिया ने 15 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये । श्रीमती आजाद बहन श्रीमाल ने 20 उपवास, श्रीमती भीनी कटकानी ने 13 उपवास की तपस्या के प्रत्याख्यान् लिए ।10 तपस्वी वर्षीतप, उपवास, एकासन, निवितप से उग्र तपस्या कर रहे है । श्रीमती पूर्णिमा सुराणा सिद्धि तप श्रीमती उषा, सविता,पद्मा सुमन रूनवाल श्रीमती रेखा कटकानी द्वारा उपवास से श्री मयंक रूनवाल द्वारा नीवी से मेरुतप किया जा रहा है । 17 अगस्त से पंचरंगी तपस्या प्रारंभ हो रही है । प्रवर्तक श्री जी द्वारा सुबह, दोपहर श्रावक श्राविकाओं को घार्मिक ज्ञान की शिक्षा दी जा रही है । संघ में विभिन्न प्रकार के मासक्षमण की तपस्या भी तपस्वी कर रहे हे । सभा में सुभाष ललवानी द्वारा सुंदर गुरू गुणगान गीत गया गया । संघ मे तेला व आयंबिल तप की लडी सतत चल रही है । प्रवचन का संकलन श्री सुभाषचन्द्र ललवानी द्वारा किया गया सभा का संचालन केवल कटकनी ने किया ।