-पर्युषण पर्वाधिराज का पंचम दिवस : अणुव्रत चेतना दिवस
झाबुआ -अध्यात्म और साधना से ओतप्रोत पर्युषण पर्वाधिराज निरंतर प्रवर्धमान हैं ।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य, आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या समणी निर्वाण प्रज्ञा जी और समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी के मंगल सन्निधि मे तेरापंथ सभा भवन पर पर्यूषण पर्व आध्यात्मिक रूप में मनाया जा रहा है। रविवार को पर्युषण पर्वाधिराज का पांचवा दिन अणुव्रत चेतना दिवस के रूप में मनाया गया।
सुबह करीब 9:00 बजे स्थानीय तेरापंथ सभा भवन पर कार्यक्रम प्रारंभ करते हुए समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी ने सर्वप्रथम उपस्थित समाज जन को नमस्कार महामंत्र का जाप करवाया । पश्चात समणी जी ने भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा के बारे में विस्तार पूर्वक बताया । पश्चात समणी निर्वाण प्रज्ञा जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि भगवान महावीर की आत्मा अनेक जन्मों में घूमते घूमते जैन शासन के अंतिम तीर्थंकर बने । प्रश्न है भगवान की आत्मा कैसे एक साधारण प्राणी से असाधारण बने । बिंदु से सिंधु बने । मानव से महामानव बने । इंद्रिय चेतना से अतींद्रिय चेतना वाले बने । इसके लिए कुछ बिंदुओं पर विचार करने से स्पष्ट होता है - दृढ़ संकल्प शक्ति , अनुकंपा (दया ) की शक्ति , संयम की शक्ति । समणी जी ने यह भी बताया कि लघु से प्रभु कौन होता है जो अहं से अहम की ओर बढ़ता है । जो प्रदर्शन से आत्मदर्शन की ओर बढ़ता है ।.जो संसार से सिद्धि की ओर बढ़ता है जो भोग से योग की ओर बढ़ता है ।
अणुव्रत चेतना दिवस के संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा अणुव्रत मतलब छोटे छोटे व्रत और नियमों का पालन करना । जैसे व्यापारी व्यापार के दौरान नापतोल में गड़बड़ी ना करना, या सामान कम नही देना या गलत सामग्री नही देना , अर्थात नैतिकता और इमानदारी पूर्वक कार्य करके हम अणुवर्ती बन सकते हैं । राजनेता होकर भ्रष्टाचार न करके जन सेवक के रूप में कार्य करना भी अणुव्रत का हिस्सा हैं । इस तरह छोटे-छोटे नियमों का पालन करके हम अणुव्रती बन सकते हैं । अणुव्रत का हमारे जीवन मे बहुत महत्व है.. संकल्प शक्ति के साथ जो व्यक्ति अपने जीवन मे त्याग के पथ पर आगे बढ़ना प्रारंभ कर देता है छोटा संकल्प उसके जीवन को महान बनाने वाला बन जाता है. आचार्य श्री तुलसी ने पुरे देश मे अणुव्रत आंदोलन चलाया व कई राजनेताओ को अणुव्रती भी बनाया । समणी निर्वाण प्रज्ञा जी ने यह भी बताया कि व्रत के साथ अणु जुड़े तो अणुव्रत, महा जुड़े तो महाव्रत और बारह जुड़े तो बारहव्रत हो जाता है। श्रावक जो बारहव्रत का पालन करने का प्रयास करते हैं, वे यदि सुमंगल साधना की दिशा में आगे बढ़ें तो गृहस्थ जीवन में भी मानों एक प्रकार से साधुता की बात हो जाएगी। हमारे परम पूज्य आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन चलाया। इसके लिए अणुव्रत विश्व भारती सोसयटी, अणुव्रत न्यास तथा देश के विभिन्न हिस्सों में अणुव्रत समितियां अणुव्रत के प्रचार-प्रसार का कार्य करती हैं। अणुव्रत के नियम जन-जन का भला करने वाला है और इसे कोई भी स्वीकार कर सकता है। वह जैन हो अथवा अजैन, किसी भी जाति, वर्ग, धर्म, संप्रदाय से हो इन छोटे-छोटे संकल्पों को स्वीकार कर अपने जीवन का कल्याण कर सकता है। सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति तो मानों अणुव्रत का नीचोड़ है। अंत में समणीवृंद ने अणुव्रत के उदघोष संयम: खलु जीवनम ….संयम ही जीवन है …के जयघोष भी लगवाए ।
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