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झाबुआ

हमारी भीतरी शक्ति या एनर्जी का सद उपयोग करे, यही पराक्रम है :- समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी

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झाबुआ से हंसा गादीया की विशेष रिपोर्ट….
-पर्युषण पर्वाधिराज का सातवा दिन : धयान दिवस

झाबुआ – जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या समणी निर्वाण प्रज्ञा जी और समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी के मंगल सन्निधि मे तेरापंथ सभा भवन पर पर्यूषण पर्व जप,तप और स्वाध्याय के द्धारा मनाया जा रहा है । मंगलवार को पर्युषण महापर्व का सातवा दिन ध्यान दिवस के रुप में मनाया गया ।

सुबह करीब 9:00 बजे स्थानीय तेरापंथ सभा भवन पर कार्यक्रम प्रारंभ करते हुए समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी ने सर्वप्रथम उपस्थित समाज जन को नमस्कार महामंत्र का जाप करवाया। समणी मध्यस्थ प्रज्ञा जी ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा . पराक्रम क्या है पराक्रम एक पावर हाउस की तरह है जिसका समय पर सद उपयोग किया जाना चाहिए । जिस प्रकार विद्युत सप्लाई में पावर के बिना लाइट जल पाना संभव नहीं है उसी प्रकार हमारे शरीर में भी अनंत शक्ति है लेकिन यदि उसका उपयोग नहीं करते हैं तो कुछ काम की नहीं है । हमारी भीतरी शक्ति या एनर्जी का सद उपयोग करें । यही पराक्रम है । पराक्रम एक कुए की तरह है जिस प्रकार यदि हम कुए का पानी नहीं निकालेंगे ,.तो वह गंदा हो जाएगा । उसी प्रकार यदि हम हमारी भीतरी शक्ति या एनर्जी का सही उपयोग नहीं करेंगे ,तो वह नष्ट हो जाएगी । हमारे शरीर में अनंत शक्ति है लेकिन उस शक्ति का स्मरण करने या याद दिलाने की आवश्यकता है । समणी जी ने यह भी बताया कि पराक्रम का अर्थ है आत्मा में विद्यामान अनंत शक्ति का उपयोग करना । जुझारू या जुनून होना । साहसी कदम उठाना । प्रश्न हैं पराक्रम क्यों करें …अर्थ प्राप्ति के लिए । शरीर संपोषण के लिए । ज्ञान प्राप्ति के लिए । आत्मोलब्धि के लिए । यह भी बताया कि पराक्रमी वह होते हैं जो अभय हो । दूसरों को अभयदान दे । धैर्यवान हो । जो सहिष्णु हो । पराक्रम दो प्रकार के होते हैं आत्मपतन की ओर ले जाने वाला और आत्मोत्थान के लिए । आत्मपतन याने विनाश की ओर ले जाने वाला पथ । आत्मोत्थान यानी मोक्ष या विकास की ओर ले जाने वाला पथ । यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस और विकास करना चाहते हैं ।

पर्यूषण पर्व की आराधना के सातवें दिन भगवान महावीर के जीवन दर्शन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए समणी डॉ निर्वाण प्रज्ञा जी ने कहा प्रभु महावीर की जीवन यात्रा नयसार से प्रारंभ होकर 26 भवो तक संसार की यात्रा कर , 27 वे भव में आत्मा पराक्रमण कर मुक्ति की ओर प्रस्थान करती है। भगवान ने करुणा स्त्रोत बहाया , पृथ्वी पानी से लेकर मानव तक समस्त प्राणियों के प्रति दया भाव रखा । किसी भी प्राणी को अपने से कष्ट नहीं दिया । भगवान का जीवन अद्भुत था क्योंकि भगवान महावीर के समवसरण में साक्षात सूर्य चंद्र देव उपस्थित हुए । भग गर्भ संहरण भी हुआ । भगवान की आत्मा ने कर्मों का संचय अधिक किया । अतः उन्हें क्षीण करने के लिए भगवान को तीव्र पराक्रम करना पड़ा । कष्टों और उपसर्गों को सहन किया । बेले से 6 मास तक तपस्या की । साढे 12 वर्षों में मात्र 350 दिन ही आहार किया । शेष समय तपस्या में व्यतीत किया । साढे 12 वर्षों में मात्र 48 मिनट की नींद ली । 16 प्रहर तक अहर्निश ध्यान में खड़े रहते थे । प्रभु ने आत्मोत्थान व घोर गौर कर परमज्ञान को प्राप्त किया । पश्चात समणी निर्माण प्रज्ञा जी ने ध्यान दिवस पर विभिन्न ध्यान केंद्रों पर ध्यान भी करवाएं । अंत में समणी वृंद ने समाज जन को मांगलिक सुनाई ।

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