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आँफिसर्स कालोनी के कर्मियों में घबराहट, किसके और कैसे बने किराएदार ?*  जाने कैसी बादलों के दरमियाँ साजिश हुई~~~ मेरा घर मिट्टी का था मेरे ही घर बारिश हुई

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आँफिसर्स कालोनी के कर्मियों में घबराहट, किसके और कैसे बने किराएदार ?* 
जाने कैसी बादलों के दरमियाँ साजिश हुई~~~
मेरा घर मिट्टी का था मेरे ही घर बारिश हुई
रतलाम। मशहूर शायर जनाब अहमद तनवीर की गजल का यह शेर इन दिनों प्रशासनिक व्यवस्था से जुड़े कर्मचारियों के लिए मौजू साबित हो रहा है। ये प्रशासनिक अमला जिन सरकारी मकानों को अपना घर समझ कर वर्षो से रह रहा है उसी घर को इन्हे अब छोड़ कर किराये के मकानों की तलाश करना होगी।
इस तरह के आदेश पहले प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए थे, मगर बाद में इस आदेश पर अमल सिर्फ कर्मचारियों के लिए ही होना बताया जा रहा है।
शहर से जुड़ी आँफिसर्स कालोनी में रहने वाला एक एक कर्मचारी इन दिनों अपना घर टूटने की खबर से परेशान है। इन्हे जल्द ही घर खाली करने के नोटिस दिए जाने की भी तैयारी लगभग शुरु होने वाली है।
 दरअसल हो यह रहा है कि रीडेसी फिकेशन में गोल्ड पार्क बनाने वाली कंपनी समदडिय़ा को गोल्ड पार्क के साथ-साथ जिला अस्पताल का 320 बिस्तरों वाला नवीन भवन 800 सीट का ऑडिटोरियम और नवीन ऑफिसर कॉलोनी ठेके पर बना कर देना है। इस कार्य की निगरानी का काम हाउसिंग बोर्ड को दिया जाना बताया गया है।
अब जिला अस्पताल और ऑडिटोरियम में तो कोई दिक्कत नहीं है, क्यूकि ये जनता के काम भविष्य में आ सकते है। हालांकि ऑडिटोरियम एक ऐसा झुनझुना है, जो वर्षो से सिर्फ गरजता आ रहा है, मगर बरसा आज तक नही है।
इधर ऑफीसर्स कॉलोनी की ईमारतों व मकानों में रहने वाले जब अब घरौदों के टूटने की बात को सोचते है तो उनकी रुह कांपने लगती है।
इनकी परेशानी की की एक वजह ये भी है कि रतलाम की जमीने और किराए के मकान इन्दौर, उज्जैन, मुंबई सहित अन्य नगरों व महानगरों से भी अधिक मंहगे है। अब तक सरकारी मकानों में रहने वाले कर्मचारी अपनी मर्जी के मालिक माने जाते है, लेकिन अगर इन्होने रतलाम शहर की किसी गुवाड़ी, मोहल्ले और कालोनी में किराए का मकान मिल भी गया तो भवन स्वामी की किटकिट से इनका व इनके परिवारर का जीना हराम होना तय है। ऐसे में घबराए कई कर्मचारी तो जब तक इस टूटाटूटी का काम टालने की दुआएं कर रहे है।
 की माने तो फिलहाल कलेक्टर ने मकान खाली करने के नोटिस जारी नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि जल्द ही आवास खाली करने के लिए नोटिस जारी होने वाले हैं अब बेचारे कर्मचारी परेशान होकर किराए के मकान ढूंढ रहे हैं जो रतलाम शहर में इतनी आसानी से नहीं मिलते हैं मिल भी रहे हैं तो कर्मचारियों की कम तनख्वाह के मद्देनजर उनकी रेंज से बाहर हैं।
इधर इस सत्य घटना में एक पेंच और भी फंसा हुआ है पहले तो यह तय था कि जहां  डिप्टी कलेक्टर और तहसीलदार आदि बड़े औहदे वाले रह रहे हैं वह आवास भी टूटना थे, मगर जैसे अफसरों में बेघर होने की घबराहट हुई तो उन्होंने प्लान ही बदला दिया अब सिर्फ कर्मचारियों के आवास ही टूट रहे है। और गरीब कर्मचारी अपना सा मुंह लेकर अपने किराए ढूंढ रहे हैं सही बात है जो समर्थ होते हैं प्लान भी उनके हिसाब से बदल जाता है।
बहरहाल, मेरे ख़ूँ का ज़ाइक़ा जब दोस्तों ने चख लिया,जिस्म के फिर एक-एक क़तरे की फऱमाइश हुई। आँफिसर्स कालोनी में रहने वालो को नवीन भवनों की अग्रिम शुभकामनाए। उन्हे किराए के सस्ते सुंदर और टिकाऊ घर इस शहर में मिल जाए, हम यही कामना करते है। आदेश का यथावत पालन हो और कर्मचारियों के साथ ही अफसरों के मकान भी टूटे और नए बने ताकि रतलाम की आँफिसर कालोनी अमन-चमन नजर आए, क्यूकि कर्मचारियों की नई बिल्डिंगों के आगे अफसरों के पुराने मकान नए मकानों की सुंदरता में दाग जैसे नजर आएगे। गोल्ड पार्क और आँडिटोरियम नई पीढ़ी के जवान होने तक बन जाए तो उनकी आने वाली पीढ़ी दुआँए देगी।
जाने कैसी बादलों के दरमियाँ साजिश हुई
मेरा घर मिट्टी का था मेरे ही घर बारिश हुई
रतलाम। मशहूर शायर जनाब अहमद तनवीर की गजल का यह शेर इन दिनों प्रशासनिक व्यवस्था से जुड़े कर्मचारियों के लिए मौजू साबित हो रहा है। ये प्रशासनिक अमला जिन सरकारी मकानों को अपना घर समझ कर वर्षो से रह रहा है उसी घर को इन्हे अब छोड़ कर किराये के मकानों की तलाश करना होगी। इस तरह के आदेश पहले प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों के लिए थे, मगर बाद में इस आदेश पर अमल सिर्फ कर्मचारियों के लिए ही होना बताया जा रहा है।
शहर से जुड़ी आँफिसर्स कालोनी में रहने वाला एक एक कर्मचारी इन दिनों अपना घर टूटने की खबर से परेशान है। इन्हे जल्द ही घर खाली करने के नोटिस दिए जाने की भी तैयारी लगभग शुरु होने वाली है।
 दरअसल हो यह रहा है कि रीडेसी फिकेशन में गोल्ड पार्क बनाने वाली कंपनी समदडिय़ा को गोल्ड पार्क के साथ-साथ जिला अस्पताल का 320 बिस्तरों वाला नवीन भवन 800 सीट का ऑडिटोरियम और नवीन ऑफिसर कॉलोनी ठेके पर बना कर देना है। इस कार्य की निगरानी का काम हाउसिंग बोर्ड को दिया जाना बताया गया है।
अब जिला अस्पताल और ऑडिटोरियम में तो कोई दिक्कत नहीं है, क्यूकि ये जनता के काम भविष्य में आ सकते है। हालांकि ऑडिटोरियम एक ऐसा झुनझुना है, जो वर्षो से सिर्फ गरजता आ रहा है, मगर बरसा आज तक नही है।
इधर ऑफीसर्स कॉलोनी की ईमारतों व मकानों में रहने वाले जब अब घरौदों के टूटने की बात को सोचते है तो उनकी रुह कांपने लगती है।
इनकी परेशानी की की एक वजह ये भी है कि रतलाम की जमीने और किराए के मकान इन्दौर, उज्जैन, मुंबई सहित अन्य नगरों व महानगरों से भी अधिक मंहगे है। अब तक सरकारी मकानों में रहने वाले कर्मचारी अपनी मर्जी के मालिक माने जाते है, लेकिन अगर इन्होने रतलाम शहर की किसी गुवाड़ी, मोहल्ले और कालोनी में किराए का मकान मिल भी गया तो भवन स्वामी की किटकिट से इनका व इनके परिवारर का जीना हराम होना तय है। ऐसे में घबराए कई कर्मचारी तो जब तक इस टूटाटूटी का काम टालने की दुआएं कर रहे है।
जानकारों की माने तो फिलहाल कलेक्टर ने मकान खाली करने के नोटिस जारी नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि जल्द ही आवास खाली करने के लिए नोटिस जारी होने वाले हैं अब बेचारे कर्मचारी परेशान होकर किराए के मकान ढूंढ रहे हैं जो रतलाम शहर में इतनी आसानी से नहीं मिलते हैं मिल भी रहे हैं तो कर्मचारियों की कम तनख्वाह के मद्देनजर उनकी रेंज से बाहर हैं।
इधर इस सत्य घटना में एक पेंच और भी फंसा हुआ है पहले तो यह तय था कि जहां  डिप्टी कलेक्टर और तहसीलदार आदि बड़े औहदे वाले रह रहे हैं वह आवास भी टूटना थे, मगर जैसे अफसरों में बेघर होने की घबराहट हुई तो उन्होंने प्लान ही बदला दिया अब सिर्फ कर्मचारियों के आवास ही टूट रहे है। और गरीब कर्मचारी अपना सा मुंह लेकर अपने किराए ढूंढ रहे हैं सही बात है जो समर्थ होते हैं प्लान भी उनके हिसाब से बदल जाता है।
बहरहाल, मेरे ख़ूँ का ज़ाइक़ा जब दोस्तों ने चख लिया,जिस्म के फिर एक-एक क़तरे की फऱमाइश हुई। आँफिसर्स कालोनी में रहने वालो को नवीन भवनों की अग्रिम शुभकामनाए। उन्हे किराए के सस्ते सुंदर और टिकाऊ घर इस शहर में मिल जाए, हम यही कामना करते है। आदेश का यथावत पालन हो और कर्मचारियों के साथ ही अफसरों के मकान भी टूटे और नए बने ताकि रतलाम की आँफिसर कालोनी अमन-चमन नजर आए, क्यूकि कर्मचारियों की नई बिल्डिंगों के आगे अफसरों के पुराने मकान नए मकानों की सुंदरता में दाग जैसे नजर आएगे। गोल्ड पार्क और आँडिटोरियम नई पीढ़ी के जवान होने तक बन जाए तो उनकी आने वाली पीढ़ी दुआँए देगी।

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