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झाबुआ

यह परिवहन विभाग है साहब, नजर अंदाज करने मे माहिर है यहां सब

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यह परिवहन विभाग है साहब, नजर अंदाज करने मे माहिर है यहां सब
सेटिंग के लिए खुद अपने दफ्तर में एजेंटों से डील करते हैं
सरकार के राजस्व को पलिता लगना कब होगा बंद
झाबुआ। (मनोज अरोरा ) झाबुआ, पारा, थांदला, मेघनगर और काकनवानी जैसे स्थानों से गुजरात की बसों द्वारा अवैध रूप से परिवहन कर सवारी ढोई जा रही है। अवैध परिवहन के संचालन पर आरटीओ द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा। 25 बसें रोजाना जिले में आती है। वही गुजरात राज्य से रात के अंधेरे में सूरत, अहमदाबाद आदि से लक्जरी बसों का आना जाना तथा उसमें कथित तौर बडी मात्रा में सामनों माल आदि का ढोहा जाना एक नियमित क्रम बन चुका है। जिला स्तर पर आरटीओ के होने बाद भी ये अनदेखी क्यों हो रही है, प्रशासन के संज्ञान में यह बात क्यों नही आरही है, आदि आदि कर्इ्र सवाल आम लोगों के मन में कुलबुला रहे है । कार्यवाही के नाम पर यदा कदा रेत आदि के ट्रको को पकड कर वाहवाही लूटने तथा सरकार को हो रहे मोटे राजस्व की हानि को लेकर कोइर्द भी जिम्मेवार क्यों खामशी अख्तियार किये हुए है, यह समझ से परे है। कुल मिला कर देखा जावे तो संदेह होना स्वाभाविक है कि आरटीओ विभाग के परोक्ष आशीर्वाद के चलते तुम भी कमाओं हम भी कमायें, सरकार जाये भाड में वाली कहावत यहा चरितार्थ हो रही है ।
वैसे तो आम तोैर पर जब से सब काम आन लाईन हुआ है, तब से तो आरटीओ के जिम्मेवार यह कहते नही अघाते है कि उनके दफ्तर में एजेंटों की एंट्री पूरी तरह है बंद, दिखने पर की जाएगी कार्रवाई लेकिन हकीकत कुछ और ही निकलती है, यह अदना सा आदमी तक जानता है। जाहिर है यहां अभी भी दलाली प्रथा बदस्तुर जारी है और जनचर्चा को सही मान लेवे तो, अधिकारी से लेकर बाबुओं तक को मिलता है अच्छा-खासा कमीशन । और इसी मुद्राराक्षस के चलते वे सरकार को मिलने वाले राजस्व, पैनेल्टी आदि से एकत्रित होने वाली रकम को नजर अंदाज करके ऐजेंटों के माध्यम से ही अपनी तिजोरिया भरने का काम बदस्तुर कर रहे है ।
जिले भर में चाहे स्वच्छ एवं साफ प्रशासन की बात की जारही हो, किन्तु ध्रुव सत्य तो यही है कि जिले में धडल्ले से अवैेध परिवहन का क्रम थम नही रहा है ।खटारा बसेस जिन्हे शसन की गाईड लाइ्रन के अनुसार आफ रोड घोषित करना चाहिये उन खटारा बसों में नाम पर परमीट होकर ऐसी खटारा बसे धडन्ने से सडकों पर विभिन्न रूटों पर दौड रही है। औव्हर लोडिंग की ओर आरटीओ साहब एवं उनके माहतत जिम्मेवारों का ध्या नही नही हे । इन सबके पीछे लक्ष्मी यंत्रों का काम नही होगा यह बात मानने मे नही आती है। लोग बाग बाते करते है उसमे सत्यता जरूर ही छलकती है ।
और तो ओर जिस रूट के लिये परमीट जारी किया गया है,उन रूट्स पर बसे चलने की बजाय मनमाफीक तरिके से बस आनर बसों का संचालन धडल्ले से कर रहे है और आरटीओ साहब अपनी निन्दा्र में ही दिखाई दे रहे हे उनकी तन्द्रा टूटने का नाम ही नही ले रही है जाहिर है दाल मे कुछ न कुछ काला जरूर है इसीलिये तो नही देख रहे है । क्योकि रंगपुरा हो कर आरटीओ आफीस के सामने से ही ऐसी बसे गुजर रही है फिर भी आरटीओ साहेब सिफ तमाशबीन बने हुए है ।
गुजरात के सूरत-अहमदाबाद वापी, आदि स्थानों से लक्जरी बसों का परिवहन रात्री के अंधेरे में यहां होता है, प्रदेश की सीमा पिटोल पर इन बसों को बेधडक आने जाने दिया जाता हे। जबकि वास्तविकता यह है कि इन टू-बाय-टू लक्जरी बसों में तथा स्लिपिंग कोच में नीचे सवारिया बैठी रहती है ओर उपर ठसाठस लगेज और माल भरा रहता है किन्तु पिटोल बेरियर पर ना तो कभी इन बसों की जांच होती है ओर ना ही भरे हुए क्विंटलो लगेज की चंकिंग की जाती है। तय है कि इस तरह शासन को मोटी रकम जो पेनेल्टी आदि के रूप में राजस्व के रूप में लिना चाहिये वे संभवतया बिचौलियों एवं जिम्मेवारों की जेब के हवाले होती ही होगी इसमें कोई संशय नही है ।
दूसरी बात यह भी महत्वपूर्ण हे कि इस जिले के गरीब आदिवासी काम की तलाश में गुजरात में इन्ही बसों के द्वारा यात्रा करते है उनका भी आर्थिक शोषण होकर वे भी इसके शिकार बन रहे है। उनसे मनमाना किराया वसूला जाता है और निर्धारित किराये से कई गुना देना उनकी मजबुरी बन जाता है। ऐसी कथित अवेैध बसों के संचालन के चलते जानलेवा दुर्घटनायें भी होने की संभावना से इंकार नही किया जासकता है।
जिले के आन्तरिक एवं बाह्य गा्रमीण अंचलों में भी कई छोटी बडी,चार पहिया वाहने बिना परमीट के चल रही है यह बात भी आरटीओ विभाग के संज्ञान में होने के बाद भी उन पर प्रभावी कार्रवाही का नही होना भी सवालिया निशान खडे करता है । आन्तरिक गा्रमीण अंचलों में चलने वाली ये छोटी चार पहिया वाहनों में 50-50 सवारियों को ढोना आम बात हो चुकी है। झाबुआ से दोहद गुजरात तक चलने वाली छोटी चार पहिया वाहनों की कभी भी जांच नही होती है और ये फर्राटे से गुजरात सीमा में प्रवेश कर जाती है। इन गाडियों में सवारियों से मनमाना किराया लिया जारहा है पर इन्हे भी देखने वाला कोई नही है। ऐसे वाहन चालकों से जब इस बारे में पुछा जाता है तो उनका एक ही कहना होता है कि हमे हफ्ताबंदी देना पडती है तो किराया तो हम वसुलेगें ही ।
जिले में अवैध तरिके से रेत खनिज का परिवहन होना कोई बडी बात नही है,कभी कभार ही कुछ डंपरों, ट्रको को पकड कर उन पर पेनेल्टी लगा कर खाना पूर्ति करने का काम भी आरटीओ की नाक की नीचे हो रहा है। और सरकार को सबसे अधिक राजस्व देने वाले परिवहन विभाग के जिम्मेवारों की सेटिंग या कहे मेहरबानी के चलते राजस्व की प्रतिवर्ष मोटी रकम के राजस्व की हानि होना यहां का रीवाज सा बन गया है ।
कहने को तो जिला परिवहन कार्यालय में पारदर्शिता के साथ काम होता हैे किन्तु वास्तविक का नकारा नही जासकता है ।हर काम के लिए एजेंट अभ्यर्थियों से मोटी रकम लेकर आरटीओ अधिकारी व बाबू को कमीशन देकर हर काम कराया जा रहा है। वहीं आरटीओ कार्यालय के बाहर ऑनलाइन के नाम पर सैकड़ों एजेंट अपनी दुकान खोलकर बैठे हैं और लोगों को लूट रहे हैं। इसमें आरटीओ अधिकारी की पूरी मिली भगत है। गौरतलब है कि आरटीओ दफ्तर से संबंधित हर काम के लिए लोगों को एजेंट का सहारा लेना पड़ रहा है। इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आज भी यदा कदा आवाजे उठती रहती है। यो तो आरटीओ के जिम्मेवार कहते है कि लोग स्वयं आकर अपना काम करा रहे हैं। अगर कोई भी एजेंट कार्यालय में आकर काम कराता है तो उसे चिन्हित कर उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। यहां के आरटीओ ऑफिस में एजेंटों के बिना नहीं बनते लाइसेंस, ज्यादा रुपए खर्च करने पर बनते हैं ।
जाहिर है कि आरटीओ कार्यालय में खुलेआम एजेंटों का बोलबाला है, यानी बिना एजेंटों के एक काम भी नहीं हो सकता है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक एजेंट ने बताया कि आरटीओ हर काम के लिए मोटी रकम की मांग करते हैं। नहीं देने पर महीनों दस्तावेज पर साइन नहीं करते हैं। मजबूरन हमें ज्यादा रुपए देने पड़ते हैं। कमीशन अधिकारी से लेकर बाबू तक को पहुंचाना पड़ता है। हर विभाग के बाबू को मोटी रकम देनी पड़ती है। आरटीओ अधिकारी कंबल ओढकर घी पीने जैसी कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं। विभाग में कमीशन खोरी चरम पर है। इस पर रोक लगाने की बजाए वे और बढ़ावा दे रहे हैं। यह भी बताया जारहा है कि 3 हजार से ज्यादा बाइक व सौ से ज्यादा कार व भारी वाहनों की बिक्री हुई है। सभी की फाइल रजिस्ट्रेशन के लिए एजेंट के माध्यम से विभाग में जाती है ।
आरटीओ अधिकारी अपने विभाग में एजेंटी प्रथा कम करने की जगह उसे बढ़ावा देने में लगे हैं। जब भी कोई नया अधिकारी आता है तो रेट और बढ़ा देते हैं। इससे आम लोगों की परेशानी भी बढ़ जाती है। जिले भर में जहां अवैध खनिज परिवहन, रेत, आदि का परिवहन धडल्ले से होता है किन्तु कुछ अपवादों को छोड दे तो किसी भी मालवाहक की जांच नही होती है इससे निश्चित ही सरकार को जो राजस्व नक नम्बर में मिलना चाहिये वह दो नम्बर में इन बिचौलियो, ऐजेंटो एवं अधिकारियों की जेब में ही जाता होगा इसमें कोइ्र सन्देह नही हे। ऐसे मे जिले के युवा कलेक्टर को इस बात को संज्ञान में लेना जरूरी हेै कि सरकार का कमाउ पूत कहलाने वाला परिवहन विभाग मोटी भरकम राशि का राजस्व वसूलने में क्यों पिछड रहा है। हालांकी कुछ अकल्पनीय कारण भी हो सकते है जिसके कारण इस विभाग के माध्यम से राजस्व का हानि हो रही है। और राजस्व बढ नही पारहा है ।

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