झाबुआ – माननीय मुख्यमंत्री जी की घोषणा के परिपालन में मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा तैयार रामकथा साहित्य में वर्णित वनवासी चरितों पर आधारित ष्वनवासी लीलाओंष् क्रमशः भक्तिमती शबरी और निषादराज गुह्य की प्रस्तुतियां जिला प्रशासन के सहयोग से प्रदेश के 89 जनजातीय ब्लॉकों में होंगी। इस क्रम में जिला प्रशासन-झाबुआ के सहयोग से दो दिवसीय वनवासी लीलाओं की प्रस्तुतियां आयोजित की जा रही हैं। 4 नवम्बर को उत्कृष्ट खेल मैदान में दी गई प्रस्तुति के समय कलेक्टर श्रीमती रजनी सिंह, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत श्री अमन वैष्णव, एडीएम श्री एस.एस.मुजाल्दा,एसडीएम झाबुआ श्री सुनिल कुमार झा, डिप्टी कलेक्टर श्री तरूण जैन एवं जिलाधिकारी कर्मचारी, जनप्रतिनिधि, गणमान्य नागरिक, प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधि उपस्थित थे। सभी ने आयोजन की मुक्त कण्ठ से सराहना की ।
प्रस्तुतियों की श्रृंखला में 04 नवंबर को हाट बाजार मैदान, ग्राम पंचायत पिटोल बड़ी जिला झाबुआ में सुश्री गीतांजलि गिरवाल, ग्वालियर द्वारा भक्तिमति शबरी एवं और 05 नवंबर को श्री हिमांशु द्विवेदी ग्वालियर द्वारा लीला नाट्य निषादराज गुह्य, 09 नवंबर को दशहरा मैदान, रामा (झाबुआ) में सुश्री कीर्ति प्रमाणिक, उज्जैन द्वारा भक्तिमति शबरी तथा 10 नवंबर को श्री विशाल कुशवाहा, उज्जैन द्वारा निषादराज गुह्य लीला नाट्य की प्रस्तुति दी जायेगी। इसी तरह 10 और 11 नवंबर को दशहरा मैदान, उत्कृष्ट विद्यालय के सामने राणापुर (झाबुआ) में भी वनवासी लीला नाट्य भक्तिमति शबरी तथा निषादराज गुह्य की प्रस्तुतियाँ होंगी। इन दोनों ही प्रस्तुति का आलेख श्री योगेश त्रिपाठी एवं संगीत संयोजन श्री मिलिन्द त्रिवेदी द्वारा किया गया है। यह दो दिवसीय कार्यक्रम प्रतिदिन सायं 07.00 बजे से आयोजित किया जा रहा है ।
लीला की कथाएं- वनवासी लीला नाट्य भक्तिमति शबरी कथा में बताया कि पिछले जन्म में माता शबरी एक रानी थीं, जो भक्ति करना चाहती थीं लेकिन माता शबरी को राजा भक्ति करने से मना कर देते हैं। तब शबरी मां गंगा से अगले जन्म भक्ति करने की बात कहकर गंगा में डूब कर अपने प्राण त्याग देती हैं। अगले दृश्य में शबरी का दूसरा जन्म होता है और गंगा किनारे गिरि वन में बसे भील समुदाय को शबरी गंगा से मिलती हैं। भील समुदाय शबरी का लालन-पालन करते हैं और शबरी युवावस्था में आती हैं तो उनका विवाह करने का प्रयोजन किया जाता है लेकिन अपने विवाह में जानवरों की बलि देने का विरोध करते हुए, वे घर छोड़ कर घूमते हुए मतंग ऋषि के आश्रम में पहुंचती हैं, जहां ऋषि मतंग माता शबरी को दीक्षा देते हैं। आश्रम में कई कपि भी रहते हैं जो माता शबरी का अपमान करते हैं। अत्यधिक वृद्धावस्था होने के कारण मतंग ऋषि माता शबरी से कहते हैं कि इस जन्म में मुझे तो भगवान राम के दर्शन नहीं हुए, लेकिन तुम जरूर इंतजार करना भगवान जरूर दर्शन देंगे। लीला के अगले दृश्य में गिद्धराज मिलाप, कबंद्धा सुर संवाद, भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग मंचित किए गए। भगवान राम एवं माता शबरी मिलाप प्रसंग में भगवान राम माता शबरी को नवधा भक्ति कथा सुनाते हैं और शबरी उन्हें माता सीता तक पहुंचने वाले मार्ग के बारे में बताती हैं। लीला नाट्य के अगले दृश्य में शबरी समाधि ले लेती हैं। वनवासी लीला नाट्य निषादराज गुह्य में बताया कि भगवान राम ने वन यात्रा में निषादराज से भेंट की। भगवान राम से निषाद अपने राज्य जाने के लिए कहते हैं लेकिन भगवान राम वनवास में 14 वर्ष बिताने की बात कहकर राज्य जाने से मना कर देते हैं। आगे के दृश्य गंगा तट पर भगवान राम केवट से गंगा पार पहुंचाने का आग्रह करते हैं लेकिन केवट बिना पांव पखारे उन्हें नाव पर बैठाने से इंकार कर देता है। केवट की प्रेम वाणी सुन, आज्ञा पाकर गंगाजल से केवट पांव पखारते हैं। नदी पार उतारने पर केवट राम से उतराई लेने से इंकार कर देते हैं। कहते हैं कि हे प्रभु हम एक जात के हैं मैं गंगा पार कराता हूं और आप भवसागर से पार कराते हैं इसलिए उतरवाई नहीं लूंगा। लीला के अगले दृश्यों में भगवान राम चित्रकूट होते हुए पंचवटी पहुंचते हैं। सूत्रधार के माध्यम से कथा आगे बढ़ती है। रावण वध के बाद श्री राम अयोध्या लौटते हैं और उनका राज्याभिषेक होता है। लीला नाट्य में श्री राम और वनवासियों के परस्पर सम्बन्ध को उजागर किया गया ।
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