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झाबुआ

आखिरकार एसपी अगम जैन साहब क्यों नही उठा पा रहे पुलिसिया सुगम कदम? सटटा, शराब एवं यातायात व्यवस्था को चुस्त दुरूस्त करने में क्यो बरती जारही निष्क्रियता ? जनता के यक्ष प्रश्नों की कसोैटी पर पुलिस प्रशासन ।

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झाबुआ- जिले अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा हैं लेकिन पुलिस अधीक्षक श्री अगम जैन उस पर लगाम लगाने की बजाय सब कुछ ज्ञात होने के बाद भी अनदेखा कर रहे है । आम लोगों ने पुलिस अधीक्षक की कार्य प्रणाली को लेकर अब तो खुसफुसाहट शुरू कर दी है कि जिले मे पूर्व में पदस्थ रहे पुलिस अधीक्षक संजय तिवारी एवं श्रीमती कृष्णावेणी देसावतु की तरह कदम उठाने मे न जाने किन कारणों से ध्यान नही दिया जा रहा है । पुलिस अधीक्षक न तो जिले मे अवैध तरिके से हो रही शराब की तस्करी को रोकने की और ध्यान दिया जारहा है और नही गा्रमीण अंचलों तक फैले सट्टे जैसी सामाजिक बुराई को रोकने के लिये कोई प्रभावी कदम उठाये जा रहे है। चोरियों का ग्राफ भी बढता जारहा है और आम लोगों में असुरक्षा की भावना भी प्रबल होती जारही है।
पुलिस के इसी रवैये को देखकर अपराधी कही दिन दहाड़े लूट, चोरी जेसी भी घटनाओं को अंजामदे रहे है । अंचल में चोर तो आए दिन किसी न किसी मोहल्ले के मकान का ताला चटका रहे है। हालत बहुत की खराब हो गए है। अब तो कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े होने लगे है। मारपीट की घटना तो आम बात है। विगत दिनों स्थानीय चन्द्रशेखर आजाद बस स्टेंड पर एक आदिवासी की निर्मम मौत तक हो चुकी है। यातायात व्यवस्था भीपूरी तरह भगवान भरोसे ही चल रही है। जिले भर में पहले ही अपराध बढ़े थे, अब तो हद हो गई है। कुछ अर्से पर गौर करें तो अपराधी खुलेआम अपराधों को अंजाम देने लगे है। इससे जिलेभर में दशहत फैली हुई है । हर किसी के मन में यह डर बन गया है कि कही सड़क पर निकल तो कोई उनको लूट न ले। कही दिन दहाड़े उनकी हत्या न हो जाए। यह सोचकर हर कोई सहमा हुआ है। थाने की पुलिस केवल निष्क्रियता ओढे हुए है कहा जावे तो अतिशयोक्ति नही होगी। अपराध रोकने पर पुलिस का कोई ध्यान नहीं है।
प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे इस जिले में नशे का व्यापार जोरों पर है। शासन स्तर पर तो जानकारी नहीं है लेकिन प्रशासनिक स्तर पर सब कुछ जानकारी होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं करना समझ से परे है? दरअसल जब-जब नशे के अवैध व्यापार की बात होती है, अफसर उससे पल्ला झाड़ने लगते हैं। यही कारण है कि युवा पीढ़ी नशे के गिरफ्त में आकर बर्बाद होती जा रही है। यहां सालाना 400 करोड़ से अधिक का नशे का व्यापार होता है। यही कारण है कि अर्थबल सतत इसकी जड़ें गहरी करता ही चला जा रहा है। अब नशामुक्ति की डगर आसान नहीं रही।
जिले में इस समय हर तरह का नशा उपलब्ध है। खुलेआम यह अवैध धंधा संचालित हो रहा है, इसके बारे में हर किसी को मालूम है। मालूम नहीं है तो सिर्फ उनको जिन्हें कार्रवाई करने का अधिकार है, इसलिए नई पीढ़ी को बर्बाद करने वाले इस काले धंधे का दायरा बढ़ता ही जा रहा है।
निकटवर्ती गुजरात राज्य से प्रतिबंधित नाइट्रेट की गोलियां आती हैं,ये गोलियां कई स्थानों से युवाओं तक पहुंच रही हैें। जिले के अधिकांश ढाबों-होटलों पर शराब बिकती है। गांजा,चरस आदि आसानी से उपलब्ध हैं। गांव-गांव में अवैध शराब उपलब्ध है। अनुमन हर रोज नशे की वजह से दो-तीन सड़क हादसे होते हैं। लगभग हर अपराध की जड़ में नशा ही रहता है। पूर्व मे नशे को लेकर एक विद्यार्थी की हत्या हो चुकी है,नाबालिग बच्चे को किशोर आरोपितों ने मार डाला था। जिले में करोड़ों का शराब का ठेका ,लाखों का भांग का ठेका,लाखों से अधिक का गांजे का व्यापार,25 लाख के करीब नशे की गोलियां का व्यापार,10 करोड़ से अधिक का कच्ची शराब का व्यापार होने का अनुमानित ़व्यवसाय होता है । जिले में ताड़ी का सीजन चार माह का, लेकिन 12 माह मिलती है, हर बस्ती में कच्ची शराब का अड्डा,अंग्रेजी शराब का अवैध कारोबार जोरों पर,गांजा सेवन के अड्डे पुलिस को छोड़कर सभी को मालूम,झाबुआ में ही जगह-जगह युवा अनेक नशे करते हैं । इसका मुख्य कारण है कि गुजरात मे नशाबंदी होने से अवैध रूप से वाहनों के माध्यम से शराब की तस्करी बंद नही हो पारही है। 7-8 रास्ते गुजरात अवैध शराब भेजी जाती है । सेटिंग से अवैध नशा बढ़ता ही जा रहा है तथा हर स्तर पर सरंक्षण के चलते कार्रवाही नही हो पाती है ।
अवैध शराब का मैदानी सच यह है कि गुजरात बॉर्डर से लगे दो-तीन हजार आबादी वाले गांवों में करोड़ों के ठेके हैं। इससे साफ है कि योजनाबद्ध ढंग से पीढ़ियों को खोखला करने का यह अवैध धंधा चल रहा है। सिर्फ पॉइंट बनाने की औपचारिकता समय-समय पर चलती है। इसका मतलब यह है कि कारोबारी ही प्रशासन पर दबाव आने से अपना कुछ माल पकड़वा देते हैं। झूठी कहानी बनाते हुए वाहवाही लूटी जाती है और कागज पर यह बता दिया जाता है कि कार्रवाई करने के मामले में अमला मुस्तैद हैं
जब-जब नशे के खिलाफ आवाज उठी है, दिखावे के लिए छोटे कारोबारियों पर हाथ डाले गए है । बड़े काराबारियों पर कभी कार्रवाई नहीं की जाती। झुग्गी बस्तियों, सड़क किनारे व अन्य स्थानों पर नशे का धंधा करने वाले एकदम छोटे लोगों को शासकीय अमला टारगेट करने लगता है।
1990 में केवल एक बार ही नशे के खिलाफ जिले में माहौल बना था। उस समय जनजातियों के बीच यह खबर फैल गई कि गुजरात में माताजी ने कोप करते हुए नशा नहीं करने व सात्विक जीवन जीने का कहा है, यदि पालन नहीं किया तो भयंकर संकट आ जाएगा । इसके बाद गांव-गांव में परिवर्तन की लहर चल गई । नशे का व्यापार ही ठप हो गया। कुछ समय बाद शराब माफियाओं ने इस जनांदोलन की योजना बनाते हुए हवा निकाली और ग्रामीणों को फिर से नशे की तरफ धकेला।
वही जिले भर में यातायात व्यवस्था के नाम पर सिर्फ लिपा पोतीके अलावा कुछ नही होता है।जिले में आज भी जीपो एवं छोटे चार पहिया वाहनों में ठुंस ठुसं कर बकरो, मुर्गियों की तरह सवारिया भर का वाहने चल रही है । क्षमता से अधिक ओव्हर लोडिंग हो रहा है। किन्तु ऐसी वाहनों की चंेकिंग की ओर कोई ध्यान नही दिया जारहा है। ऐसे वाहनों से सेंिटंग होना, हफ्ता वसूली होने की भी जन चर्चाओं को नकारा नही जा सकता है। पुलिस अधीक्षक महोदय अधिकांश समय कलेक्टर साहब के साथ ही दौरांे पर रहते है, जबकि उन्हे अपने कार्यालय में बैठकर पुलिस प्रशासन को सख्त रखना चाहिये ।
जिले भर की बात करे तो सटोरियों के मकड़जाल में फंसकर कंगाल हो रहे है लोग। जिले मेंअनुमन हर जगह जुए और सट्टे का कुछ ऐसा जोर चल रहा है कि हर कोई तेजी से अमीर बनने की चाह में इस ओर आकर्षित हो रहा है। सट्टे के इस कारोबार में जहां आम और गरीब लोग पिसते चले आ रहे है, वहीं सट्टा चलाने वाले कारोबारियों ने कई घर उजाड़कर रख दिए है। ये कारोबारी धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक संगठनों से भी जुड़े हुए हैं। इस कारण इनके खिलाफ कार्रवाई भी नही होती है।सट्टे से प्रभावित लोगों के साथ आए दिन होने वाली घटनाओं के मामले सामने आ रहे है, जो इसी अवैध कारोबार के खामियाजे का रूप धारण कर रहे है। शहर सहित पूरे अंचल में सट्टे का ये कारोबार इतना फैल चुका है कि इससे सैकड़ों घर बर्बाद हो चुके है और कई लोग तो कर्ज, ब्याज तथा शराब के अंधेरे में डूब गए है। इस अवैध कारोबार के खामियाजे की भरपाई समाज की नई पीढ़ी को अप्रत्यक्ष रुपए से चुकानी पड़ रही है। कुल मिलाकर सट्टे की चमक-दमक ने कई घरों के उजाले छिन लिए है।
ऐसा नहीं है कि सट्टे और जुए के इस साम्राज्य की जानकारी पुलिस और प्रशासन को नहीं है, बल्कि पुलिस के कांस्टेबल से लेकर आला अधिकारी तक एक-एक स्थान पर संचालित होने वाले जुए-सट्टे के कारोबार की जानकारी है तथा पुलिस व राजनीतिक संरक्षण में ही ये सट्टा संचालित हो रहा है। हालत ये है कि सट्टा और फाइनेंस कारोबारियों के साथ कई पुलिसकर्मियों को गलबहियां करते भी देखा जा सकता है। इस कारण इन सटोरियों के हौसले इतने बुलंद है कि खुलेआम सड़कों पर जुआ-सट्टे के दाव खिलवाते नजर आते हैं। पुलिस की मिलीभगत और सटोरियों से लेन-देन के हिसाब में भी पूरी तरह पारदर्शिता बरती जाती है। ये रिश्वत की राशि नकद के अलावा अन्य स्रोतों से भी पहुंचाई जाती है। पुलिसवालों को गिफ्ट के रूप में कपड़े, जूते, मोबाइल रिचार्ज आदि से भी उपकृत किया जाता है। यानी लेन-देन की प्रक्रिया के हिसाब का पूरा-पूरा हिस्सा उन तक पहुंच जाता है। इन सटोरियों पर न तो आयकर विभाग की कार्रवाई होती है और न ही कोई टैक्स लगता है।
चाहे वह क्रिकेट का सट्टा हो, मटका सट्टा हो या डिब्बा व्यापार (एमसीएक्स) हो, सट्टे के इस कारोबार में शामिल लोगों के रहन-सहन, चमचमाती गाडियों, ब्याजखोरों के बंगले और उनके द्वारा अय्याशी के लिए खर्च किए जाने वाले रुपयों को देखकर युवा पीढ़ी इस ओर आकर्षित होती है। इन्हीं कारणों से निर्मल ने किसानों का रुपया इनके पास खोया। सट्टे के इस दलदल में कई नौजवान और पढ़ने वाले बालक तक फंस चुके हैं और अब कई युवाओं को तो इन सटोरियों ने बाकायदा नौकरी पर रख लिया है। यानी सट्टे के इस काले कारोबार में बालक तक जुड़ चुके हैं। छोटी-मोटी चोरी और अन्य अपराधों की तह में जाने पर प्रमुख कारण सट्टा और जुए का कारोबार ही सामने आता है, जहां एक ओर पुलिस और प्रशासन भी इन सटोरियों के सामने नतमस्तक है।
पूर्व की तरह ही यदि जिले में इस प्रकार के बढते अपराधांे पर नकेल नही कसी गई, अवेध शराब के परिवहनको सख्ती से नही रोका गया, यातायात व्यवस्था को चुस्त दुरूस्त नही कियागया तो इसके लिये जिले के पुलिस अधीक्षक ही जिम्मेवार होते हेै । देखना हैे पुलिस अधीक्षक जिलेभर मे शांति व्यवस्था बनाने के साथ ही इस प्रकार के सतत हो रहे अपराधों की रोकथाम के लिये कितनी सक्रियता दिखाते है। ताकि जिलेकी जनता का आत्म विश्वास पुलिस प्रशासन के प्रति पुनस्र्थापित हो सकें ।

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