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झाबुआ

हाथीपावा पर कार्यक्रम की आड़ में झूला चकरी और पौधों की ली गई बलि……..कहा तक उचित….?

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झाबुआ – हाथीपावा की पहाड़ियों पर आम जनमानस ने प्रशासन के सहयोग से , इस क्षेत्र को हरा भरा कर, इसे सजाया और संवारा । पूर्व के तत्कालीन कलेक्टरो ने भी इस पहाड़ी को हरा भरा करने के लिए प्रशासनिक सहयोग के साथ-साथ सामाजिक संगठन के अलावा ,आम जनमानस का भी पूर्ण सहयोग लिया और इस पहाड़ी को हरियाली युक्त बनाकर, एक सुगम पिकनिक स्थल के रूप में भी स्थापित किया । सामाजिक संगठनों के सदस्यों ने पौधारोपण कर, श्रमदान कर, प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस विरानी को हरा भरा कर एक पर्यटन स्थल बनाने का प्रयास किया, जो कि काफी हद तक सफल रहा । इस स्थल के निर्माण के बाद लोगों की आवाजही भी बढ गई थी वबच्चे व आमजन परिवार के साथ पिकनिक मनाने के लिए हाथीपावा पर आने लग गए । इस क्षेत्र में बच्चों के लिए झूले चकरी विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र थे । शहर व आसपास के क्षेत्र के कई लोग छुट्टी के दिनों में पिकनिक मनाने के लिए इस हाथीपावा पहाड़ी पर आते थे । लेकिन विगत दिनों यह देखने में आया कि यह हाथीपावा पर हैलीफैड निर्माण की आड़ में प्रशासन ने करीब 50 से अधिक पौधों की बलि ले ली और बच्चों के लिए लगाए गए झूले चकरी को भी तहस-नहस कर दिया गया । साथ ही साथ पिकनिक स्पॉट के लिए बनाए गए टीन शेड को भी पूरी तरह से तोड़ तोड़ कर रख दिया गया । कार्यक्रम की व्यवस्था के लिए झूलो को काटकर तोड़ दिया गया.। आज यह पिकनिक स्पॉट पूर्ण रूप से तहस नहस नजर आ रहा है और अब विरानी मे तब्दील हो गया हैं । पर्यावरण प्रेमी ओर इसके बनाने में जिन्होने अपना पसीना बहाया और समय लगाकर क्षेत्र को सींचा, वो यह सब देख कर आहत हैं ।

हाथीपावा की पहाड़ी पर इस दुर्गति को लेकर आम जनों में सोशल मीडिया पर भी काफी आक्रोश जताया है । वही नगर व आसपास की जनता में बहुत आक्रोश है । हाथीपावा की दुर्गति पर , पिछले 5 वर्षों से झाबुआ की जनता ने जो श्रमदान हाथीपावा पर तन मन धन से किया । जिस पर प्रशासन ने सारा पानी फेर दिया । हाथीपावा पर एक और प्रशासन वृक्षारोपण की बात करता है दूसरी और पौधों को हेलीपैड बनाने के लिए नष्ट कर देना, यह दोहरी नीति क्यों ….?आमजनों में यह चर्चा का विषय बनता जा रहा है कि सुरक्षा की दृष्टि को लेकर हरे भरे पौधों की बलि ले ली गई , जबकि प्रशासन आए दिन पौधारोपण की बात करता है । ऐसी क्या परिस्थितियां निर्मित हुई कि बच्चों के लिए लगाए गए झूला चकरी को तोड़कर तहस-नहस करना पड़ा । क्या किसी कार्यक्रम के लिए यह कदम आवश्यक था ….? क्या पौधों के साथ-साथ झूला चकरी को बचाया नहीं जा सकता था यह चिंतनीय.है । ऐसा देखा गया हैं कि किसी क्षेत्र को विकसित करने और संवारने में बहुत समय लगता है और आमजन के सहयोग के साथ साथ आर्थिक राशि का भी उपयोग होता है तब कहीं जाकर वह क्षेत्र सुंदर स्थल में तब्दील होता है लेकिन उसी हरे भरे क्षेत्र को उजाड़ने में चंद मीनीट ही लगते है………? प्रशासन के इस कठोर निर्णय से पर्यावरण प्रेमी के साथ साथ आम जनमानस ,जिन्होंने अपने समय लगाकर ,पसीने बहा कर इस क्षेत्र को संवारने में सहयोग किया था आज वे सभी इस दृश्य को देखकर आहत हुए हैं.। यह माना भी जा सकता है कि झूला चकरी को वेल्डिंग कर सुधारा जा सकता है लेकिन पौधारोपण और हरियाली को लेकर प्रश्नचिन्ह ….हैं..? आम जनों मे यह जिज्ञासा हैं कि हाथीपावा की पहाड़ियों पर कार्यक्रम की आड़ में झूला चकरी और पौधों की बलि लेना कहां तक उचित है….?

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