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झाबुआ

सूचना के अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ा रहा पीएचई कार्यपालन यंत्री…………..

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जिससे मेरी शिकायत करना हो कर दो ………मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ………….. इस तरह के शब्दों के माध्यम से पीएचई कार्यपालन यंत्री करता है बातचीत……….

झाबुआ – जिले में विभागीय अधिकारी सूचना के अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं जानकारी देना तो दूर की बात आवेदकों से बदतमीजी से और आक्रोशित होकर कर रहे है बात | साथ ही साथ आवेदक से यह कहने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं कि जिसको मेरी शिकायत करना हो कर दो मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है इस तरह के शब्दों के माध्यम से पीएचई कार्यपालन यंत्री इस अधिनियम की धज्जियां उड़ा रहा है…..
हाल ही में शहर के जागरूक नागरिक ने पीएचई विभाग से विभिन्न स्टॉप डेम के अंतर्गत कड़ी शटर्ष या यूं कहें कि इनमें लगने वाली लकड़ी से संबंधित जानकारी सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत मांगी | आरटीआई के अंतर्गत विज्ञप्ति प्रक्रिया से लेकर लकड़ी की किस्म साल , सागवान आदि से संबंधित प्रक्रिया की प्रमाणित प्रतिलिपि मांगी गई | नियम अनुसार विभाग को संबंधित आवेदक को एक माह में जानकारी उपलब्ध कराना होती है जब एक माह में जानकारी नहीं मिलने पर आवेदक पीएचई विभाग के कार्यपालन यंत्री एन एस भिड़े से संबंधित सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन पर जानकारी नहीं देने की बात कही …..तो कार्यपालन यंत्री द्वारा सर्वप्रथम आवेदक को सही तरीके से जवाब देने के बजाय आवेदक पर उत्तेजित हो उठा और बदतमीजी से बात करने लगा | और जब आवेदक ने समय सीमा में जानकारी देने की बात कही तो कार्यपालन यंत्री ने सूचना के अधिकार अधिनियम की धज्जियां उड़ाते हुए कहा कि जाकर अपील कर दो ……या फिर मेरी शिकायत कर दो….. मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता | इस तरह के गैर जिम्मेदाराना जवाब और वह भी आक्रोशित होकर और बदतमीजी से देना या यू कहे के गुंडागर्दी के तरीके से देना समझ से परे है | क्या इस तरह एक विभागीय अधिकारी को आवेदकों से इस लहजे में बात करना कहां तक उचित है ? क्या इस अधिनियम की धज्जियां उड़ाना उचित है जब इस तरह के अधिकारी जागरूक नागरिक से बदतमीजी से बात करते हैं तो जिले के ग्रामीण क्षेत्रों से आए ग्रामीण जनों से किस तरीके से बात करते होंगे इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है | विभागीय गलियारों से हमें यह भी पता लगा है कि यह अधिकारी ग्रामीण क्षेत्रों से आए ग्रामीणों की समस्याओं को सुनने के बजाय उनको घंटों बाहर बैठा कर रखते हैं ओर अपने कक्ष में ठेकेदारों के साथ 2 -2 घण्टो तक बातचीत करते है यह भी विचारणीय प्रश्न है जागरूक नागरिक का यह भी कहना है कि जब इस तरह की जवाबी कार्यप्रणाली से मानो ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं उम्र का तकाजा तो नहीं या फिर इस तरह के पद की गरिमा को यह अधिकारी समझते नहीं है
पूर्व में भी कड़ी शटर्ष में लगने वाली लकड़ी खरीदी के संबंध में कई समाचार पत्रों में खबरें प्रकाशित हुई थी जिसमें यह दर्शाया गया था कि विभागीय अधिकारी द्वारा ठेकेदार को आर्थिक लाभ पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है और जब इसी संबंध में जागरूक नागरिक ने विभाग से सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत जानकारी मांगी तो यह अधिकारी बौखला गया और आक्रोशित होकर आवेदक से बदतमीजी से बात कर रहा है …क्या शासन प्रशासन इस ओर ध्यान देकर इस तरह के अधिकारी पर और खरीदी संबंधी पर कोई कार्रवाई करेगा या फिर या पीएचई विभाग का अधिकारी अपनी मनमानी करता रहेगा | संबंधित कड़ी शट्स की संपूर्ण खरीदी प्रक्रिया जांच का विषय है

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