झाबुआ – वन विभाग के कंप्यूटर बाबू की मनमानी कार्यशैली के किस्से सुनने को मिल रहे हैं विगत दिनों हमने खबर के माध्यम से बताया था कि किस प्रकार इस कंप्यूटर बाबू ने अपने मित्र की फर्म की निविदा में दरे स्वीकृत ना होने पर मित्र की फर्म से निविदा प्रक्रिया पर आपत्ति जताकर, चक्रव्यूह की रचनाकर, शासकीय नियम अनुसार आमंत्रित की गई निविदा को चैलेंज कर , विशेष फर्म की एंट्री करवाई थी । हाल ही में भी एक और किस्सा सुनने को मिल रहा है कि यह कंप्यूटर बाबू वन विभाग में भवन निर्माण कार्य के ठेके को लेकर भी फर्म विशेष को कार्य देने के लिए विभागीय जोड़-तोड़ में लगा है । जानकारी अनुसार वन विभाग के झाबुआ रेंज में भवन निर्माण कार्य होना है । जिसकी लागत करीब ₹ 60 लाख है और यह कंप्यूटर बाबू इस भवन निर्माण का ठेका अपने मित्र की फर्म को दिलाना चाहता है । इसके लिए कंप्यूटर बाबू ने विभाग के आला अधिकारियों से लेकर सारे कर्मचारियों तक सारी कागजी खाना पूर्ति हेतु जोड़-तोड़ में लगा हुआ है ताकि इस निर्माण कार्य का ठेका इसकी मित्र की फर्म को मिल सके । यूं तो इस विभाग में भवन निर्माण कार्य विभाग द्वारा स्वयं द्वारा निर्मित दर्शाया जाता है लेकिन धरातल पर इस तरह का निर्माण कार्य इस कंप्यूटर बाबू की मित्र की फर्म द्वारा किया जाता है । इसका उद्देश्य भी साफ नजर आ रहा है कि यदि किसी फर्म विशेष को आर्थिक लाभ दिया जाएगा , तो आर्थिक लाभ मिलना स्वाभाविक ही है यदि किसी अन्य फर्मों को इस तरह की कार्य दिए जाए,तो संभवत इस बाबू को आर्थिक लाभ ना मिले । और इस तरह की प्रक्रिया के लिए संभवत: कंप्यूटर बाबू ने कुछ विशेष प्रक्रिया भी बनाई होगी जैसा कि पूर्व में ऑफलाइन निविदा प्रक्रिया को निरस्त करने में अहम भूमिका निभाई थी । इसके अलावा यदि कंप्यूटर बाबू के मित्र की फर्म विभिन्न निर्माण सामग्री या भवन निर्माण का ठेका मिलता है तो इस बाबू को विशेष रूप से कमीशन प्राप्त होता है सूत्रों की माने तो यदि किसी प्रकार के बिलों की भी आवश्यकता होती है तो यह कंप्यूटर बाबू अपने मित्र की फर्म से ही कई तरह के बिलों को बनवाकर राशि को एडजस्ट करने में लगा रहता है । सूत्रों का तो यहां तक भी कहना है कि इस कंप्यूटर बाबू ने अपनी मित्र की फर्म को आर्थिक लाभ का खुलासा करने के लिए यदि पूर्व के वर्षों में की गई खरीदी और विभिन्न बिलों की जांच की जाए , तो एक बड़ा खुलासा होने की संभावना भी है । लेकिन प्रश्न यह भी है कि कंप्यूटर बाबू अपनी चक्रव्यूह अनुसार कार्य तो कर रहा है लेकिन विभाग के आला अधिकारी इन सब बातों को क्यों नजरअंदाज कर रहे हैं यह गहन चिंतन का विषय है….। कहीं विभाग के आला अधिकारियों का इस कंप्यूटर बाबू को पूर्ण संरक्षण प्राप्त तो नहीं…..? । कहीं यह कंप्यूटर बाबू आर्थिक हितों को साधने के लिए विभाग के आला अधिकारियों के कार्यकाल को दागदार न कर दें , इस और विभाग को भी चिंतन करने की आवश्यकता है…..। क्या जिला प्रशासन और वन विभाग इस ओर ध्यान देकर कंप्यूटर बाबू की कार्यप्रणाली को लेकर कोई जांच या कार्रवाई करेगा या फिर यह कंप्यूटर बाबू यूं ही अपने मित्र की फर्म को आर्थिक लाभ पहुंचाता रहेगा…..?
अरे वाली खबरों में वन विभाग के इस कंप्यूटर बाबू के और भी कई रोचक किस्से आपको पढ़ने में मिलेंगे…..
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