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भगवान श्रीराम के भक्त दूसरों के दु:ख से दु:खी होते हैं: स्वामी

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भगवान श्रीराम के भक्त दूसरों के दु:ख से दु:खी होते हैं: स्वामी

रतलाम~~श्री कालिका माता क्षेत्र में हो रही श्रीराम कथा में गुरुवार को स्वामी निर्मल चैतन्य पुरी महाराज ने कहा कि भगवान का भक्त मद में कभी भी उन्मुक्त नहीं हो सकता है यदि कोई भक्त उन्मुक्त तो होता है तो वह सच्चा राम भक्त नहीं है। यह बात उन्होंने श्री राम लक्ष्मण वन गमन के बाद जब भरत राम को अयोध्या वापस लेने चतुरंगी सेना के साथ आए तो इस प्रसंग का वर्णन करते हुए कही।

कथा में उन्होंने कहा कि भरत के साथ चतुरंगी सेना देखकर लक्ष्मण को संशय हो गया था तथा वे भरत, शत्रुघ्न व उनकी सेना के साथ युद्ध के लिए तत्पर हो गए थे। भगवान श्री राम ने लक्ष्मण जी को समझाया और कहा कि मेरा भरत साधु है वह मतवाला कैसे हो सकता है। जब भगवान राम, लक्ष्मण, सीता वन में भ्रमण कर रहे थे तो उनके नंगे पैरों में बहुत सारे कांटे चुभ गए थे व उनमें से रक्त बहने लगा था पर जब श्री राम को भरत के उनसे मिलने आने की सूचना मिली तो उन्होंने पृथ्वी माता से आग्रह किया कि वह भरत के पूरे मार्ग को सुकोमल बना दें जिससे भरत को कोई कष्ट नहीं हो व उनके सुकोमल शरीर को कोई दुःख नहीं पहुंचे।

जब प्रभु श्री राम ने भरत जी का अयोध्या वापस लौटने का आग्रह स्वीकार नहीं किया तो वे श्री राम की चरण पादुका लेकर अयोध्या आपस लौट गए और उन्होंने श्रीराम की चरण पादुका राज गद्दी पर रख कर राजधर्म निभाया। कहा कि श्रीराम जी का स्वभाव है वह कभी कुपित नहीं होते हैं। वहीं श्रीराम के भक्त दूसरों के दु:ख से दुखी होते हैं। भगवान के विश्वास की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जितना विश्वास भक्तों के प्रति भगवान का होता है उतना ही विश्वास भगवान का भक्तों के प्रति भी होता है। आरती करते हुए श्रद्धालुजन।

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