झाबुआ । श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार एक बार कृष्ण से प्रेम करने वाली गोपियों ने ब्रह्म मुहूर्त में स्नान किया। ये सभी गोपियाँ श्रीकृष्ण को अपना वर रूप में देखना चाहती थीं। इस स्नान के बाद सभी गोपियों ने माता कात्यायनी से श्रीकृष्ण को वर रूप में प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। गोपियों ने उद्यापन में माता कात्यायनी को कृष्ण के पसंदीदा छप्पन प्रकार के भोजन की पेशकश की। इसके बाद ही छप्पन भोग अस्तित्व में आया। उक्त बात स्वर्णकार महिला मंडल झाबुआ द्वारा राधाकृष्ण मार्ग स्थित श्री सत्यनारायण मंदिर में शुक्रवार को पुरूषोत्तम श्रावण मास में आयोजित भगवान को छप्पन भोग अर्पण कार्यक्रम के अवसर पर श्रीमती कल्पना भूरिया ने कहीं । उन्होने कहा कि गौ लोक में श्री कृष्ण और राधा एक दिव्य कमल पर विराजमान हैं। उस कमल की तीन परतों में 56 पंखुड़ियाँ हैं। प्रत्येक पंखुड़ी में एक प्रमुख सखी होती है और बीच में भगवान विराजमान होते हैं। इसलिए 56 भोग लगाया जाने की हमारी सनातन संस्कृति रही है। श्रीमती भूरिया ने पुरूषोत्तम श्रावण मास को दान,पूण्य,पुजा आराधना का महीना बताते हुए कहा कि लोग इस दिन भगवान के लिए 56 विशेष खाद्य पदार्थों को तैयार करते हैं, जिन्हें छप्पन भोग भी कहा जाता है। भोजन का यह व्यापक आयोजन अपने आराध्य के प्रति लोगों की अटूट भक्ति को दर्शाता है। इसमें विभिन्न प्रकार के पेय, अनाज, फल और सूखे मेवे, और मिठाइयाँ शामिल हैं। अपने इष्ट की आराधना में भक्त 56 विभिन्न प्रकार के प्रसाद बनाते हैं और उन्हें भगवान को भेंट करते हैं। उन्होने स्वर्णकार महिला मंडल को इस पुनित कार्यक्रम को आयोजित करने की बधाई दी ।
इस अवसर पर अनुविभागीय अधिकारी मुकेश सोनी ने भी श्रावण में पुरूषोत्तम मास को पूण्यदायी एवं मनोवांछित पूर्ण करने वाले मास बताते हुए कहा कि भगवान को पुरूषोत्तम मास सबसे प्रिय मास होता है। इसमें साक्षात भगवान की उपस्थिति का आभास होता है। उन्होने कथानक के माध्यम से भगवान को अर्पण किये जाने वाले छप्पन भोग के महत्व को बताते हुए कहा कि तूफान और बारिश के देवता भगवान इंद्र को खुश रखने और उन्हें समय पर बारिश और स्वस्थ फसल देने के लिए, वृंदावन के किसान उन्हें भरपूर भोजन खिलाते थे। नन्हे कृष्ण ने सोचा कि यह तरीका किसानों के साथ अन्याय है। उन्होनेे उन्हें यह भोजन परोसना बंद करने का आदेश दिया। इससे भगवान इंद्र क्रोधित हो गए और वृंदावन के छोटे से गांव पर ओलावृष्टि शुरू कर दी। कई दिनों तक लगातार बारिश हुई, जिससे बाढ़ आ गई। भगवान कृष्ण ने सभी को गोवर्धन पर्वत पर बुलाया और इस छोटी उंगली पर फहराया ताकि हर कोई डूबने से बचने के लिए इसके नीचे शरण ले सके। उन्होंने सात दिनों तक पर्वत को स्थिर रखा जब तक कि भगवान इंद्र को अपनी गलती का एहसास नहीं हुआ और उन्होंने बारिश को रोक दिया। भगवान कृष्ण सात दिन तक बिना अन्न का एक दाना खाए रहे। माना जाता है कि उन्होंने औसतन हर दिन आठ वस्तु का सेवन किया। वृंदावन के लोगों ने अपना धन्यवाद प्रकट करने के लिए 56 व्यंजन (8 व्यंजन – 7 दिन) तैयार किए और सातवें दिन के समापन पर उन्हें भेंट किए। तभी से कहा जाता है कि भगवान को प्रसन्न करने के लिये छप्पन भोग अर्पण किये जाते है। श्री सोनी ने समाजजनों को सभी पर्वो एवं त्यौहारों पर इस प्रकार के आयोजन करने के लिये बधाईया दी ।
इस अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी के मंदिर में स्वर्णकार महिला मंडल द्वारा भगवान श्री सत्यनारायण की महा आरती का आयोजन रखा गया । आरती के पश्चात भगवान जी को 56 भोग प्रसादी का भोग लगाया जाकर प्रसादी का वितरण किया गया। आरती में विशेष अथिति श्रीमती कल्पना जी कांतिलालजी भूरिया एवम् मुकेश सोनी अनुविभागीय अधिकारी झाबुआ के अलावा समाज अध्यक्ष श्री नंदकिशोर सोनी, ओमप्रकाश सोनी , मुकेश सोनी, भूपेंद्र सोनी विनोद सोनी, मनोज सोनी , नटवरलाल, सोनी एवम् समाज के समस्त नवयुवक , के अलावा समाज सचिव प्रवीण सोनी मीडिया, प्रभारी, कमलेश, सोनी, प्रवीण सोनी, के अलावा महिला अध्यक्ष माधुरी सोनी, कुन्ता सोनी, कृष्णा सोनी, लक्ष्मी सोनी, किरण सोनी,निर्मला सोनी, शारदा सोनी, पप्पी सोनी ,रूकमणी सोनी ,हंसा सोनी, मनोरमा सोनी सहित बडी संख्या में मातृशक्ति ने पुरुषोत्तम मास में धर्म लाभ लिया। कार्यक्रम में पंडित प्रदीप भट्ट का सराहनीय सहयोग रहा । आरती के प्श्चात प्रसादी का वितरण किया गया।