कैलाशपति को सच्चे दिल से याद करने से घर मे ही कैलाश हो सकता है-पूज्य आचार्य श्री रामानुज जी।
पिपलखूंटा में शिव चरित्र मानस कथा में श्रद्धा एवं भक्ति की बह रही बयार ।
झाबुआ । श्री हनुमंत निवास आश्रम पिपलखुटा में शिव चरित्र मानस कथा सुनने के लिये श्रद्धालुओं का तांता लग रहा है । व्यासपीठ पर बिराजित पूज्य आचार्य श्री रामानुजजी ने खचाखच भरे धर्मपाण्डाल में संबोधित करते हुए कहा कि यह कथा हनुमन्त निवास आश्रम से कैलाश की यात्रा है ,परन्तु कैलाश पर्बत की यात्रा से पहले कैलाश पति को यहाँ न बुला न पाए तो कैलाश जाना व्यर्थ है । हमारी श्रद्धा के प्रकाश से कैलाश में सूर्योदय होता है , मन से राग द्वेष समाप्त न हो तो कैलाश के पत्थरो को छूकर आना ही मात्र होगा, हमारा आत्मविश्वास महादेव से जुड़ जाए तो कैलाश पति और कैलाश दूर नही ।
पूज्य रामानुज ने आगे कहा कि कैलाशपति को सच्चे दिल से याद करने से घर मे ही कैलाश हो सकता है। जो व्यक्ति श्रद्धा से शिवचरित्र का मनन करता है महादेव उसपर कृपा बरसाते ही है । हम सभी महादेव को भोले बाबा कहते हैे क्योंकि महादेव में सत्वगुण बसता है । सत्व, रज, तम तीनो गुणों का समावेश तीनो भगवान ब्रह्मा विष्णु एवं महेश में उपलब्ध है ,यह अन्योन्य है । उन्होने आगे कहा कि दो तत्व है सत्व और तम । आधा सत्व ओर आधा तम इसका मतलब रज होता है असेर ये ही मिल कर त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश है।
कथा में आगे कहा कि जो दिल मे होता है, वही चरित्र में आता है। दुनिया आपको नही आपके चरित्र को देखती है आपके दिल को देखती है । जब श्रवण दर्शन बन जाए तब जीवन की अलौकिक यात्रा शुरू होती है। एक वैरागी साधु आश्रम से इसलिए निकलता है ताकि संसार का सत्संग मिले ,। पूज्य आचार्य श्री ने पूज्य महंत दयाराम दास जी को नमन करते हुए कहा कि कितना अथाह परिश्रम कर के देर रात्रि तक इस आयोजन के लिए उन्होंने अपना अमूल्य समय दिया तब यह सत्संग कथा जन कल्याण क ेलिये मिली । भगवान को बली ,पूजा की नही आपकी श्रद्धा की, आपके प्रेम की आवश्यकता है ।
पूज्यश्री ने गणेश प्राकट्य की कथा को आधुनिक संदर्भ से सूत्रात्मक तरीके से श्रवण करवायी ,उन्होने भगवान श्री गणेश के विवाह एव श्रीशैल ज्योतिर्लिंग की कथा श्रवण कराया ,। उन्होने कहा कि भगवान शिव के दोनों पुत्र श्रीगणेश और स्वामी कार्तिकेय में इस बात पर विवाद हो गया कि पहले किसका विवाह हो। इस पर पिता भगवान शिवजी और माता पार्वती ने कहा कि जो पहले धरती की परिक्रमा करके लौटेगा उसी का विवाह पहले कराया जाएगा। इस पर फुर्तीले कार्तिकेय तुरंत परिक्रमा के लिए निकल गए । लेकिन श्रीगणेश चूंकि शरीर से मोटे थे, इसलिए वह उस फुर्ती से नहीं निकल पाए और इसके लिए उन्होंने नया उपाय ढूंढ निकाला। शास्त्रों के अनुसार, माता−पिता की पूजा धरती की ही परिक्रमा मानी जाती है और उसका भी वही फल मिलता है जोकि पूरी धरती की परिक्रमा से मिलता है। इस उपाय के ध्यान में आते ही श्रीगणेश जी ने माता पार्वती और पिता शिव शंकर को आसन पर बिठाकर उनकी पूजा शुरू कर दी। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव शंकर ने उनकी शादी विश्वरूप प्रजापति की दो कन्याओं रिद्धि और सिद्धि से करा दी। इधर जब तक स्वामी कार्तिकेय धरती की परिक्रमा करके माता−पिता के पास पहुंचे तब तक श्रीगणेश जी क्षेम और लाभ नाम के दो पुत्रों के पिता भी बन चुके थे। इस पर कार्तिकेय माता−पिता के पैर छूने के बाद रूठकर क्रौंच पर्वत पर चले गए। माता−पिता बाद में उन्हें मनाने के लिए मल्लिका और अर्जुन के रूप में वहां गए तो उनके आने की खबर सुनते ही कार्तिकेय वहां से भागकर तीन योजन पर चले गए। क्रौंच पर्वत (श्री शैल) क्षेत्र के निवासियों के कल्याण हेतु भगवान शिव शंकर और माता पार्वती वहीं ज्योतिर्लिंग के रूप में बस गए।
आचार्य श्री ने भगवान महादेव के वाहन नंदी के स्वरूप का आध्यात्मिक अर्थ बताते हुए कहा कि आपका उठना ,बोलना ,चलना आदि सभी क्रिया में धर्म होना चाहिए नंदी स्वयं धर्म का स्वरूप है ,नंदी को प्रणाम करने का मतलब ही है कि हम धर्म के जिज्ञासु है । इसीलिए शिवालय में आते जाते नंदी को प्रणाम किया जाता है । मंदिर में जाना दुकान में जाने जैसा नही होना चाहिए , क्योंकि मन्दिर में न मांग कर भी सब मिल जाता है ,वहा मांग मांग कर कुछ नही मिलता । शिवालय मेरे ओर आपकी जीवन की सरंचना है जिसमें प्रवेश धर्म से होना चाहिए जिस जीवन मे धर्म नही हो वहां महादेव निवास नही करते । कर्नाटक के कृष्णा जिले में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में महादेव शिव का महादेवी सहित वास है। यह ज्योतिर्लिंग कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर है। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि श्री शैल के दर्शन मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
जीवन मे यदि सुख आये तो भी गुरु के द्वार जाए ,औेर दुख में भी गुरु द्वार पर जाए सुख में प्रसन्नता एवं दुख में गुरु आपके सुख की कामना ईश्वर से करेंगे । राजा दशरथ भी ब्राह्मणों के साथ गुरुद्वार पर भगवान के जन्म होने पर गये थे । आचार्य श्री ने भगवान राम के जन्म एव बाल लीला का वर्णन करते हुए पंचम दिवस की कथा को विराम दिया गया ।
इस अवसर पर पूज्य महंत श्री दयारामदास जी ने महामंगल आरती आयोजन समिति के सदस्यों के साथ की तथा अन्त मे महाप्रसादी का वितरण किया गया ।