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झाबुआ

ईश्वर सब के लिए है, बस अपने अहंकार को छोड़ कर सत्य को अपना लीजिए जीवन आनंद से भर जाएगा –पूज्य आचार्य श्री रामानुजजी पिपलखुटा हनुमंत निवास आश्रम पर शिव मानस कथा का हुआ समापन ।~~~ महंत श्री एवं आयोजकों ने सभी का किया धन्यवाद ज्ञापित ~~~ खट्टाली में भी आचार्यश्री चारभुजा मंदिर के शताब्दी समारोह मे हुए सम्मिलित

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ईश्वर सब के लिए है, बस अपने अहंकार को छोड़ कर सत्य को अपना लीजिए जीवन आनंद से भर जाएगा –पूज्य आचार्य श्री रामानुजजी

पिपलखुटा हनुमंत निवास आश्रम पर शिव मानस कथा का हुआ समापन ।

महंत श्री एवं आयोजकों ने सभी का किया धन्यवाद ज्ञापित

खट्टाली में भी आचार्यश्री चारभुजा मंदिर के शताब्दी समारोह मे हुए सम्मिलित
झाबुआ । श्री हनुमंत निवास आश्रम पिपलखुटा में श्री शिव मानस चरित्र कथा का 16 अगस्त बुधवार को विराम हो गया । हजारों की संख्या में उपस्थित शिवभक्तों एवं श्रद्धालुओं को संबोधितकरते हुए पूज्य आचार्य श्री रामानुज जी ने कहा कि वेदांत उपनिषद एव पुराणों के मतानुसार शिव हमारी आत्मा है ,शिव है तो हम है, शिव है तो जीवन है, शिवचरित्र हमारी अस्तित्व की कथा है । महादेव को पा लेना मतलब करुणापूर्ण जीवन का संकल्प कर लेना है ,सकारत्मक जीवन की ओर आगे बढ जाना होता है । , ऐसी चर्चा को शिव चरित्र कहते है । भगवान शिव जैसे शिवालय में बिराति है वैसे ही हमारे दिल में वे निवास करते है ।  हम यदि सच्ची भावना के साथ आंख मूंद कर भीतर उतरने का प्रयत्न करें तो सहज ही महादेव का साक्षात्कार हो जाता है,।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि जीवन के दो चोर ह,ै एक तरफ मृत्यु एक तरफ जीवन । चुनाव हमे करना है कि किस तरफ बढ़ना है। जिसकी वाणी आपको सुख प्रदान करे तो समझना महादेव गुरु के रूप में आपसे मिलने आया है । गुरुं शंकर रुपिनम । सत्य और स्वार्थ कैसे हारता है और कैसे जीतता है इसका अवलोकन है, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग का आख्यान । उन्होने रामेश्वरम कथा बताते हुए कहा कि  रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापना भगवान श्रीराम ने की जिसका जिक्र स्कन्दपुराण में भी है। इस कथा अनुसार जब भगवान श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त कर लौट रहे थे तो उन्होंने गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया वहां पर ऋषि मुनियों ने श्री राम को बताया कि उन पर ब्रह्महत्या का दोष है जो शिवलिंग की पूजा करने से ही दूर हो सकता है। रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग जिस धाम में स्थापित है उसे रामेश्वरम चार धाम के अलावा रामनाथ स्वामी मंदिर भी कहा जाता है। शिव पुराण के कोटिरूद्र संहिता के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना भगवान श्रीराम ने पूजन के लिए की थी। जब रावण ने सीता जी का हरण किया था और उन्हें लंका ले गया था उस समय भगवान श्री राम बहुत व्याकुल होकर उनकी खोज में दक्षिण की ओर निकले थे। रामेश्वरम में समुद्र तट पर भगवान शिव की आराधना और उन्हें प्रसन्न करने के लिए प्रभु श्री राम ने इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। क्योंकि यह ज्योतिर्लिंग रामेश्वरम के तट पर स्थित था इसलिए इसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग या राम लिंगेश्वरम ज्योतिर्लिंग कहा गया।
आचार्य श्री रामानुज जी ने कहा कि सत्य भी महादेव का परमभक्त है ,अहंकार भी महादेव का परम भक्त है । जहां सत्य पुकारता ह,ै महादेव दौड़कर आते है, ओैर जहां अहंकार मौजूद होगा महादेव वहाँ से मुह मोड़ लेते है । ईश्वर सब के लिए है, बस अपने अहंकार को छोड़ कर सत्य को अपना लीजिए जीवन आनंद से भर जाएगा । जब आपका अस्तित्व मुस्कुराएगा तब आपके भीतर का शिवत्व मुस्कुराएगा । जो व्यक्ति श्रद्धा से शिव गुणों को गाता है वह मुक्ति पाता है। शक्तिसम्पन्न व्यक्ति के पास विनम्रता एव विवेक होना चाहिए । सत्ता एव शक्ति में यदि व्यक्ति उपद्रव करता दिखे किसी का अपमान यदि वह संपत्ति के नशे में तो समझना कि यह राक्षस है । तेजस्वी लोग मिथ्या अभिमान में डूबने लगजे तब शास्त्रों ने उन्हें राक्षस बताया है ।

दारूकावन नागेश्वर की कथा का जिक्र करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि शिवपुराण में स्पष्ट कहा गया है कि नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दारुकवन में है, जो प्राचीन भारत में एक जंगल को इंगित करता है। दारुकवन’ का उल्लेख भारतीय महाकाव्यों, जैसे काम्यकवन, द्वैतवन, दंडकवन में भी मिलता है, इस कथा का बहुत रोचक वर्णन सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध होगये ।
आचार्य श्री के अनुसार शिवालय में बैठकर राम नाम मंत्र से मुक्ति दिलाने वाले विश्वनाथ महादेव काशी क्षेत्र में रहते जिसे प्रलय के संत भगवान महादेव अपने त्रिशूल के माध्यम से रक्षा करते है । गौतमेश्वर की कथा का भी आज विराम के अवसर पर आचार्य जी ने विस्तृत वर्णन सुनाया । उन्होने कहा कि अच्छे लोगो का संग ,सत्संग जन्म-जन्मांतर के पुण्यो के उदय के कारण मिलता है इसीलिये अच्छे लोगो का संग करना , विज्ञान का सदुपयोग करना , आजकल लोगो के घर मे टीव्ही की स्क्रीन बड़ी होने लगी और मन छोटा होता जारहा है ।

रामचरित मानस के आधार पर चल रही शिवचरित्र कथा को संक्षेप में सुनाते हुए आज की कथा का विराम हुआ । श्री शिव मानस चरित्र कथा के अन्त में महा मंगल आरती एवं महाप्रसादी का आयोजन भी किया । महन्त श्री दयारामदास जी एवं कथा आयोजन समिति ने सभी श्रद्वालुओं एवं प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप  से इस आयोजन का सफल बनाने वालो का धन्यवाद ज्ञापित किया ।

खट्टाली में आचार्य श्री ने भेंट कर की आध्यात्मिक चर्चा-
भगवान को हर जगह याद करना ,उनके गुणों का बखान करना भी सेवा है  आचार्य श्री ने कहा

आचार्य श्री रामानुजजी भक्तों के आग्रह पर भगवान चारभुजानाथ के मंदिर में श्रीजी के दर्शनार्थ पधारे । वहां उन्होने अपने सन्देश के माध्यम से धर्म एवं आध्यात्म के बारे में बताते हुए कहा कि जब हमने महसूस किया तब हम अपनी बोली में भगवान को चार भुजा नाथ कहते है । हमे इस लगता है कि हम दोनों हाथों से भगवान की सेवा करते है, बल्कि वास्तविकता में एक हाथ से भी ठीक से सेवा नही कर पाते । किंतु वो हमेशा चारो हाथों से देता है, यानी चार गुना देता है । चार हाथों से संसार चलाने वालों को चारभुजानाथ कहते है । भगवान की सेवा कैसे करे ,यह आवश्यक नही कि कोई सामग्री हम मन्दिर में ले जाए। उनको किसी वस्तु की जरूरत नही । खट्टालीवासियों से उन्होने कहा कि आपने अभी 100 वर्ष का उत्सव किया । जिन्होंने भगवान श्री की मंदीर में स्थापना की होगी उनकी  चैथी पीढ़ी आ गयी होगी यह संभव कैसे हुआ, क्योंकि भगवान ने आपको अपना मानकर सेवा का मौका दिया ।
पूज्य श्री ने कहा कि भगवान को हर जगह याद करना ,उनके गुणों का बखान करना भी सेवा है , फिर भी मंदिर परिसर में जब भी अवसर मिले छोटी से छोटी सेवा करना चाहिए। विष्णु मंदिर में यदि कोई झाड़ू भी लगाता है, तो लक्ष्मी उसके घर सदा निवास करती है। संसार के लिए तो सब बहुत कुठ करते है किन्तु थोड़ा मंदिर के लिए भी करना चाहिये। यदि कोई सेवा न मिले तो आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को जय श्रीमन्नारायन बोल दो वह भी सेवा ही है । आप अपने लिए जो भी लेते है खरीदते है, उसमें से कुछ ठाकुर जी के लिए भी ले । न ले सको तो जो आपने लिया है, खरीदा है। उसे भगवान के सामने लाकर प्रभु को बताओ, फिर उपयोग करो । इससे जो आप लोग मंदिर परिसर में ला सकते हो उन्ही वस्तु को आप अपने घर लाएंगे । जो हम मंदिर परिसर में न ला सकें तो सझना वह हमारे लिए नही है । उन्होने कहा कि जो भक्त भगवान की शरणागति में रहता है उसी के ऊपर भगवान का वरद हस्त होता है , ।
अपने व्यस्त समय मे से खट्टाली ग्राम में चारभुजा नाथ मंदिर परिसर में हाल ही में हुए शताब्दी महोत्सव के उपलक्ष्य में दर्शनार्थ आये पूज्य आचार्य रामानुज जी ने उक्क्त उद्गार व्यक्त किये , माहेश्वरी समाज द्वारा गुरुदेव का बहुमान किया गया ।

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