साधनापथ निश्चय, चातुमार्स, 2023 निश्चय,दृढता से महामृत्युंजय तप आराधना ।
तपस्वी कुमारी मोना रूनवाल 2017 से सतत कर रही कठोर साधना एवं तपस्या ।
झाबुआ । लौकिक सुखों को प्राप्त करने के लिए तो हम वर्ष भर जतन करते रहते हैं, लेकिन पारलौकिक सुख प्राप्त करने ही चातुर्मास आता है। और इस दौरान यदि हमने इन पलों का उपयोग कर लिया, तो जीवन पारलौकिक सुख पाने के जतन करना प्रारंभ कर देगा। यह बात तपस्वी कुमारी मोना रूनवाल ने बताते हुए कहा कि चातुर्मास के चार सूत्र दिए गये है, जिसमें भक्ति, ज्ञान, तप और आराधना शामिल है। इनको पाने के लिए इस पवित्र चैमासे में सभी को जतन करना चाहिए। भक्ति यानि गुरु और भगवान की भक्ति में 4 महीने समर्पित होना। उन्होने कहा कि ज्ञान- यानि गुरुओं से आत्म तत्व के स्वरूप को जानने का प्रयास करना, तप- यानि उपवास, व्रत, संयम के माध्यम से तप ग्रहण कर कर्मों की निर्जला के लिए उद्यत होना और आराधना यानी जो सीखा है उसका बार-बार चिंतन करना। यदि इन चार बिंदुओं पर हमने चातुर्मास के दौरान चिंतन कर लिया तो फिर हमारा जीवन सार्थक होना तय है। चातुर्मास के दौरान सिर्फ कार्यक्रमों के आयोजन में ही समय गुजार देने के बजाए हमें धर्म ध्यान कैसे करना है । आत्म साधना की ओर उद्यत कैसे हो, इस पर भी चिंतन करना होगा। तपस्वी कुमारी मोना रूनवाल कहती है कि गुरूदेव परम पूज्य आचार्य ऋषभचन्द्र सूरीश्वर जी महाराज कहते थे कि पाप का क्षय और पुण्य के संचय का नाम है चातुर्मास।यदि हमने चातुर्मास के 4 महीनों में भी धर्म ध्यान करना शुरू नहीं किया तो फिर हम कब धर्म से जुड़ेंगे। चातुर्मास में 4 महीने साधु एक ही स्थान पर आगम की आज्ञा के अनुसार रहते हैं। इस दौरान वह तो अपनी आत्मसाधना करते हैं, लेकिन श्रावक भी धर्म साधना करना शुरू कर दें तो फिर यह चातुर्मास दोनों के लिए सार्थक होगा।
तपस्वी कुमारी मोना रूनवाल आगे कहती है कि जैसे रात और दिन एक दूसरे के पूरक हैं ठीक उसी तरह से श्रावक और संत एक दूसरे के पूरक है। श्रावक को इनसे 4 माह के दौरान अधिकतम ग्रहण करने का भाव होना चाहिए। चातुर्मास के 4 महीनों के दौरान विभिन्न धर्म साधना करने का संकल्प श्रावकों ने लिया। कुमारी मोना रूवाल विगत 2017 से अभी तक याने पिछले 7 सालों से सतत कठिन तपस्या कर रही है तथा उनका क्रम अनवरत जारी है। मोना की इस तपस्या के आशीर्वाददाता पूज्य गच्छाधिपति श्रीमद विजय नित्यसेन सुरिश्वरजी म.सा. आचार्य नरेन्द्रसूरिश्वर जी म.सा. आचार्य श्री जयानंद सूरिश्वर जी महाराज साहब, आचार्य लेखेन्द्र सूरिश्वरजी म.सा., आचार्य श्री ऋषभचन्द्र सूरिश्वरजी मसा, एवं गणीपर्य आदर्श रत्नसागर जी म.सा. रहे है । वही साध्वी श्री जी म.सा.षिश्य परिवार की सुषिष पुनित प्रज्ञाश्री की प्रेरणा भी रही है ।
इस बारे में उनके पिता संतोष रूनवाल एवं माता सुनिता रूनवाल ने बताया कि अनन्त उपकारी हमारे रोम रोम में हर पल विराजित शत्रुंजय अवतार प्रभु आदिनाथ की पावन छत्रछाया में एवं नंेमीनाथ प्रभु, पार्श्वनाथ प्रभु की असीम कृपा एवं कलिकाल सर्वज्ञ मोहनखेडा के महाराजा गुरूदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरिश्वर जी की असिम अनुकंपा हमारे परिवार के उपकारी पल पल जिनका दिव्य आशीष बरस रहा है, जिनकी प्रेरणा से परउपकारी गुरूदेव मोहनखेडा तीर्थ विकास प्रेरक ज्योतिष सम्राट जीवदया पे्रमी राष्ट्रसंत आचार्य ऋषभदेव सूरिश्चरजी महाराज के आशीर्वाद से उनकी तपस्वीरत्ना बेटी कुमारी मोना रूनवाल ने सन 2017 के चातुर्मास में जीवन का सर्वप्रथम तप सिद्धीतप किया, उसके बाद से निरन्तर गुरूभगवंत के आशीर्वाद से चार वर्षीय तप, उपाधान तप, आयंम्बिल, ओलीजी, पाया 4 वर्षीय तप में नवाणु यात्रा के साथ शत्रुंजय तीर्थ की छट यात्रा अठम करके 13 यात्रा, एक उपवास में शत्रंुजय गिरीराज की 6-6 यात्रा रोज करके 25 दिन में 108 यात्रा पूर्ण की । श्री रूनवाल के अनुसार वर्षीय तप में 8 उपवास ,11 उपवास, 20 स्थानक ओलीजी, पाश्र्वनाथ दादा के अठम 108 पाश्र्वनाथ एकासने एवं निरन्तर आयंबिल ,बियाशने करते हुए बडे-बडे तीर्थ जेैसे सम्मेद शिखर जी, ,गिरनारजी, पालिताना, पावापुरी जैसे राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र के अन्य कई तीर्थो की तीर्थ संघ के साथ में यात्रा की । समस्त गुरूभगवंत के आशीर्वाद से बेटी कुमारी मोना ने फिर और एक शुभ अवसर उपस्थित होने पर तपस्या के क्रम में मृत्युजंय तप को पूर्ण किया । साधना तप चातुर्मास 2023 में ऐसे ही आशीर्वाद हमारी बिटीया पर बरसता रहे । एवं परिवार के कुलदेवी और बडो एवं माता पिता के संस्कारों को जीवन में ऐसे ही आगे भी नाम रोशन करते रहे ।
श्री संतोष रूनवाल के अनुसार हमारे प्रबलपूण्योदस, देवधर्म एवं संचा माता की असीम कृपा से प.पू. श्री हेमेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के सुशिष्यरत्न प.पू. श्री ऋषभचन्द्र सूरिश्वरजी म.सा.के आज्ञानुवर्ती पू.पू. मुनिराज चन्द्रयश विजय म.सा. ,मुनि श्री जनकचन्द्र विजयजी म.सा., मुनि श्री जिनभद्र विजय जी म.सा. की प्रेरणा से तपस्पी बेटी कुमारी मोना ने अपने आत्म संयम एवं नियंत्रण से महामृत्युजय तप की उत्कृष्ठ तप आराधना कर अपने आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर संचित कर्मो की निर्जरा करने का अनुपम पराक्रम किया है । कु.मोना की इस उत्कृष्ठ तप आराधना करने हेतु अयोजित धार्मिक अनुष्ठान कार्यक्रम में सभी सकल समाज से आशीर्वाद के लिये अनुरोध किया है ।