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झाबुआ


क्यों पहले राष्ट्रपति को 6 लोगों ने ही दी बधाई््-
24 जनवरी को 3 बातों से पूर्ण हुई आजादी
मिला पहला राष्ट्रपति, राष्ट्रगान और संविधान

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झाबुआ । (मनोज अरोरा ) 26 जनवरी को हम सभी पूरे गर्व के साथ गणतंत्र दिवस मना रहे होंगे। भारत के संप्रभु, लोकतांत्रिक गणतंत्र बनने के 73 साल । 26 जनवरी की तारीख तो हम सभी के दिमाग में बसी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 24 जनवरी को क्या हुआ था? जी हां, 24 जनवरी। कैलेंडर की किसी आम तारीख की तरह बीत जाने वाले इस दिन 73 साल पहले भारतीय गणतंत्र की नींव का आखिरी पत्थर रखा गया था। 24 जनवरी, 1950 वो दिन था जब संविधान को बनाने वाली कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली आखिरी बार इकट्ठा हुई थी। उस दिन तीन बड़े काम हुए थे-पहला, कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली के सभी सदस्यों ने संविधान पर हस्ताक्षर किए थे। ये हस्ताक्षर ही हमारे संविधान पर फाइनल मुहर थी। दूसरा, भारत के पहले राष्ट्रपति के तौर पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद का निर्वाचन हुआ था-वो भी सर्वसम्मति से। और तीसरा, राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत पर सहमति बनी थी।

उस दिन की घटनाएं भी कम रोचक नहीं थीं। संविधान की जिस कॉपी पर हस्ताक्षर किए गए वो पूरी तरह हाथ से लिखी गई थी। इसे लिखने वाले ने इसके एवज में कोई फीस भी नहीं ली थी। कैसे इस एक दिन ने 26 जनवरी के विराट उत्सव की तैयारियों का रास्ता तैयार किया? उस दिन जो हुआ उससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों और कहानियों पर हमारे द्वारा संकलित रिपोर्ट

24 जनवरी, 1950-2 साल, 11 महीने और 18 दिन की संविधान-निर्माण यात्रा का आखिरी दिन संविधान बनाने के लिए गठित की गई कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली का पहला सत्र 9 दिसंबर, 1946 को शुरू हुआ था। संविधान का ड्राफ्ट तैयार होकर 26 नवंबर, 1949 को पारित किया गया था। पूरे 2 साल, 11 महीने और 18 दिन की इस प्रक्रिया के बावजूद संविधान को सत्यापित करने के लिए कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर होना जरूरी था। इसके लिए 24 जनवरी, 1950 का दिन तय किया गया था। इस बैठक में तीन बड़े काम होने थे।
पहला काम-राष्ट्रगान तय करना
आधिकारिक रिजोल्यूशन नहीं, डॉ. राजेंद्र प्रसाद के स्टेटमेंट से राष्ट्रगान बना था ‘जन-गण-मन’…‘वंदे मातरम’ को दिया गया था बराबर का दर्जा । 24 जनवरी, 1950 को जब कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली की बैठक शुरू हुई तो सबसे पहला काम था भारत का राष्ट्रगान तय करना। कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली के चेयरमैन डॉ. राजेंद्र प्रसाद के उस दिन दिए गए बयान के मुताबिक पहले इस पर विचार किया जा रहा था कि राष्ट्रगान के मुद्दे पर आधिकारिक रूप से एक प्रस्ताव लाया जाए, लेकिन अंततः ये तय किया गया कि राष्ट्रगान पर रिजोल्यूशन लाने के बजाय डॉ. राजेंद्र प्रसाद असेंबली में एक स्टेटमेंट देंगे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने जो स्टेटमेंट असेंबली में पढ़ा उसके मुताबिक ‘जन गण मन’ को राष्ट्रगान बनाया गया और साथ ही कहा गया कि ‘वंदे मातरम’ को बराबर का दर्जा और सम्मान दिया जाएगा।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद के इस स्टेटमेंट को असेंबली के सभी सदस्यों ने स्वीकार कर लिया। इसी के साथ ‘जन गण मन’ भारत का राष्ट्रगान और ‘वंदे मातरम’ राष्ट्रीय गीत बन गया।
दूसरा काम-पहले राष्ट्रपति का चुनाव
सर्वसम्मति से राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे डॉ. राजेंद्र प्रसाद। सदस्यों ने बधाई देना शुरू किया तो खुद ही रोक दिया । कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली ने ही ये तय किया था कि देश का सर्वाेच्च संवैधानिक पद राष्ट्रपति का होगा। देश के पहले राष्ट्रपति के चुनाव के लिए भी प्रक्रिया शुरू कर दी गई। 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रपति चुनाव के लिए रिटर्निंग ऑफिसर बनाए गए कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली के सचिव एच.वी.आर. अयंगर ने सदस्यों को बताया कि राष्ट्रपति पद के लिए सिर्फ एक ही नॉमिनेशन फाइल हुआ है। ये नॉमिनेशन डॉ. राजेंद्र प्रसाद का था। किसी और का नॉमिनेशन न होने की वजह से डॉ. राजेंद्र प्रसाद को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति निर्वाचित किए जाने की घोषणा कर दी गई।
इस घोषणा का पूरे सदन ने तालियों से स्वागत किया। सबसे पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू और उसके बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को बधाई देते हुए सदन को संबोधित किया। तीसरे सदस्य बी. दास बधाई संबोधन के लिए आगे बढ़े तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बीच में कहा कि इन बधाइयों से वो असहज महसूस कर रहे हैं। सदस्य अपनी बात कम से कम शब्दों में कहें।
बी. दास के संबोधन के बाद एच.सी. मुखर्जी और हुसैन इमाम ने सदन के सामने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को बधाई दी। उनके संबोधन के बाद ही डॉ. प्रसाद ने सदन से कहा- मुझे उम्मीद है कि सदन पिछले 3 वर्षों की तरह एक बार फिर मुझे ये अधिकार देगा कि इस विषय पर मैं और चर्चा की अनुमति न दूं। इसके बाद भी वी.आई. मुनिस्वामी पिल्लई माइक पर आ गए और सदन के सामने डॉ. प्रसाद को बधाई दी। इसके बाद सेठ गोविंद दास माइक की ओर बढ़े, लेकिन डॉ. प्रसाद ने उन्हें रोक दिया। देश के पहले राष्ट्रपति को उनके निर्वाचन पर सदन में बधाई देने वाले सिर्फ 6 ही सदस्य थे।
तीसरा काम-संविधान पर हस्ताक्षर
संविधान की जिस कॉपी सदस्यों ने हस्ताक्षर किए वो हाथ से लिखी गई थी। शांति निकेतन के आर्टिस्ट्स ने सजाया था । संविधान के ड्राफ्ट को कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली ने 26 नवंबर, 1949 को ही पारित कर दिया था। उसी समय ये तय हुआ था कि इस पर जनवरी, 1950 की किसी तारीख को हस्ताक्षर किए जाएंगे। संविधान का ये ड्राफ्ट अंग्रेजी में था। ये तय किया गया था कि 26 जनवरी, 1950 से पहले इसका हिंदी अनुवाद भी कर लिया जाएगा।
हस्ताक्षर के लिए ही 24 जनवरी, 1950 की तारीख तय की गई थी। इस दिन संविधान की तीन प्रतियों पर हस्ताक्षर किए गए थे। एक कॉपी अंग्रेजी में प्रिंटेड थी। बाकी दोनों प्रतियां हैंडरिटन यानी हस्तलिखित थीं-एक अंग्रेजी और दूसरी हिंदी में। संविधान की इन हैंडरिटन प्रतियों को ही कॉन्स्टिट्यूशन की ओरिजिनल कॉपी के तौर पर जाना जाता है।
संविधान की हस्तलिखित प्रति को लिखने वाले व्यक्ति थे- प्रेम बिहारी नारायण रायजादा।
वे उस समय के प्रसिद्ध कैलिग्राफी आर्टिस्ट थे। उन्हें इस काम के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू ने चुना था। इस बारे में एक किस्सा मशहूर है कि जब नेहरू ने उन्हें ये काम सौंपा तो साथ ही ये भी पूछा कि इसके लिए वो कितनी फीस लेंगे। रायजादा ने तुरंत जवाब दिया- ‘मैं एक पैसा भी नहीं लूंगा। भगवान की कृपा से मेरे पास सब कुछ है और मैं अपने जीवन से बहुत खुश हूं। मगर मेरी एक इच्छा है- मैं संविधान के हर पन्ने पर अपना नाम लिखूंगा और आखिरी पन्ने पर अपने नाम के साथ अपने दादाजी का नाम भी लिखूंगा।’संविधान के हर पन्ने पर तो प्रेम बिहारी नारायण रायजादा का नाम नहीं दिखता, लेकिन आखिरी पन्ने पर उन्हें कैलिगाफ्री का क्रेडिट जरूर दिया गया है।

शांति निकेतन के ख्यात आर्टिस्ट नंदलाल बोस और उनकी टीम ने संविधान को सजाया
संविधान की हस्तलिखित कॉपी के हर पेज पर बेहद खूबसूरत बॉर्डर दिखता है। साथ ही हर सेक्शन में मोहनजोदाड़ो के इतिहास से लेकर हिमालय की ऊंचाइयों के अलग-अलग इलस्ट्रेशन्स भी बनाए गए हैं। ये सारा काम उस वक्त के ख्यात आर्टिस्ट नंदलाल बोस और शांति निकेतन के उनके छात्रों ने किया था। इसमें नंदलाल बोस के तीन बच्चे भी शामिल थे। संविधान के 22 पार्ट हैं। हर पार्ट के पहले पन्ने पर एक इलस्ट्रेशन बनाया गया है। पार्ट-1 के पहले पेज पर मोहनजोदाड़ो की सील बनी है। पार्ट-2 के पहले पेज पर वैदिक गुरुकुल का दृश्य बनाया गया है।
संविधान की प्रस्तावना का पेज बनाने वाले ने पेज के नीचे कलाकृतियों में दिया अपना नाम
संविधान की प्रस्तावना के पेज पर सुंदर लिखावट तो प्रेम बिहारी नारायण रायजादा की है, लेकिन इस पेज को सजाने का क्रेडिट ब्योहर राममनोहर सिन्हा को दिया जाता है।नंदलाल बोस के छात्रों में से एक, सिन्हा मध्य प्रदेश के जबलपुर के रहने वाले थे। उन्होंने प्रस्तावना के पेज का डिजाइन तैयार करने से पहले अंजता-एलोरा की गुफाओं, सांची, सारनाथ और महाबलीपुरम में जाकर स्मारकों को बारीकी से देखा और समझा। उन्होंने प्रस्तावना के पेज का बॉर्डर बनाने और उसे सजाने के लिए पारंपरिक भारतीय चिन्हों का इस्तेमाल किया है। खास बात ये है कि पेज के बॉर्डर में सबसे नीचे दाहिने कोने में उन्होंने अपना संक्षिप्त नाम ‘राम’ लिखा भी है।
संविधान की दोनों हस्तलिखित प्रतियां संसद की लाइब्रेरी में हीलियम से भरे कांच के केस में रहती हैं सुरक्षित। संविधान की हस्तलिखित प्रतियां आज दिल्ली में संसद भवन की लाइब्रेरी में सुरक्षित रखी हैं। इन्हें सुरक्षित रखने के लिए हीलियम गैस से भरे कांच के केस में रखा जाता है, जिसका तापमान 20 डिग्री और नमी 30ः लगातार बनाए रखना जरूरी है। संविधान के अंतिम 10 पन्नों पर कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर हैं। इन हस्ताक्षरों के किस्से भी कम रोचक नहीं हैं।

संविधान पर हुए हस्ताक्षरों में डॉ. राजेंद्र प्रसाद का सबसे ऊपर३मगर उन्होंने सबसे आखिरी में किया था । 24 जनवरी, 1950 को जब संविधान पर हस्ताक्षर किए जाने थे तो तीनों प्रतियों को सदन की टेबल पर रखा गया था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि सभी सदस्य बारी-बारी से आकर उस पर हस्ताक्षर कर दें। मगर उन्होंने सबसे पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू को आमंत्रित किया था। नेहरू के बाद बारी-बारी से सदन में मौजूद सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किए। वहां मौजूद सदस्यों में सबसे आखिरी हस्ताक्षर फिरोज गांधी के थे। सदस्यों के हस्ताक्षर के बाद बतौर कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली के चेयरमैन डॉ. राजेंद्र प्रसाद को हस्ताक्षर करने थे। क्रम में चेयरमैन के हस्ताक्षर सबसे ऊपर आने चाहिए थे, लेकिन हस्ताक्षर करने के नियत स्थान पर ऊपर जगह नहीं बची थी। ऐसे में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इस नियत स्थान के ऊपर तिरछे हस्ताक्षर किए।
डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा के हस्ताक्षर के लिए पटना ले जाई गई थी संविधान की प्रति
संविधान की प्रति पर हस्ताक्षर के समय कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली के सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा सदन में मौजूद नहीं थे। 9 दिसंबर, 1946 को कॉन्स्टिट्युएंट असेंबली की पहली बैठक के दौरान डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को कार्यकारी चेयरमैन चुना गया था। 73 साल के डॉ. सिन्हा असेंबली के सबसे उम्रदराज सदस्य थे। इसके 3 दिन बाद डॉ. राजेंद्र प्रसाद को असेंबली का स्थायी चेयरमैन नियुक्त कर दिया गया था। डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा ज्यादा उम्र और खराब स्वास्थ्य के कारण असेंबली की ज्यादातर कार्यवाही में हिस्सा नहीं ले पाए थे। 26 नवंबर, 1949 को जब संविधान का ड्राफ्ट पारित किया जाना था तो डॉ. सिन्हा बीमार थे, मगर उन्होंने अपना संदेश भिजवाया था जो डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सदन के सामने पढ़ा था। 24 जनवरी, 1950 को जब संविधान पर हस्ताक्षर हो रहे थे तो उनके हस्ताक्षर के लिए जगह छोड़ी गई थी। बाद में संविधान की ये प्रति पटना में उनके पास ले जाई गई थी, जिस पर उन्होंने हस्ताक्षर किए। इसके कुछ ही दिन बाद 6 मार्च, 1950 को डॉ. सिन्हा का निधन हो गया था।

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