विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर को, 50 साल बन रहे 4 दुर्लभ संयोग, क्या है इसका पौराणिक महत्व
17 सितंबर को इस बार विश्वकर्मा पूजा पर कई अमृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, ब्रह्म योग और द्विपुष्कर योग निर्मित हो रहे हैं- पण्डित द्विजेन्द्र व्यास
झाबुआ । भगवान विश्वकर्मा को प्राचीन काल का सबसे पहला इंजीनियर कहा जाता है। उन्होंने भगवान शिव के त्रिशूल से लेकर कई और भी चीजों का निर्माण किया था। ज्योतिष शिरोमणी पण्डित द्विजेन्द्र व्यास के अनुसार विश्वकर्मा की जयंती हर साल कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है। इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है।। भगवान विश्वकर्मा ने ही भगवान शिव की त्रिशूल, लंका महल, द्वारका और देवताओं के अस्त्र और शस्त्र का निर्माण किया था।
विश्वकर्मा पूजा के महत्वत्व को बताते हुए उन्होने बताया कि ऋषियों-मुनियों ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ विश्वकर्मा जी की पूजा आराधना का प्रावधान किया है। विश्वकर्मा जी को ही प्राचीन काल का पहला इंजीनियर माना जाता है। इस दिन औद्योगिक क्षेत्रों से जुड़े उपकर औजार, की पूजा की करने से कार्य में कुशलता आती है। साथ ही अपनेे कारोबार में बढ़ोतरी होती है। इतना ही नहीं घर में धन धान्य और सुख समृद्धि का आगमन होता है।
श्री व्यास के अनुसार विश्वकर्मा पुराण के अनुसार, भगवान श्रीनारायण ने सर्वप्रथम ब्रह्माजी और फिर विश्वकर्मा जी की रचना की थी। ब्रह्माजी के दिशा निर्देश के अनुसार, ही उन्होंने पुष्पक विमान की रचना की थी। इन सबके अलावा भगवान विश्वकर्मा को वास्तु शास्त्र का ज्ञान, यंत्र का निर्माण, विमान विद्या आदि के बारे में भी कई जानकारी प्राप्त हैं।उनके अनुसार 50 साल बाद 4 दुर्लभ संयोग भी निर्मित हो रहे हैं और इस कारण से इस साल मनाई जाने वाली विश्वकर्मा जयन्ती का विशेष ज्योतिषीय महत्व भी है। हिंदू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सृजनकर्ता माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा परमपिता ब्रह्मा के 7वें पुत्र थे।
श्री द्विजेन्द्र व्यास के अनुसार हिंदू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का सृजनकर्ता माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा परमपिता ब्रह्मा के 7वें पुत्र थे। इस साल भगवान विश्वकर्मा की जयंती 17 सितंबर 2023 को मनाई जाएगी और इस दिन 50 साल बाद 4 दुर्लभ संयोग भी निर्मित हो रहे हैं और इस कारण से इस साल मनाई जाने वाली विश्वकर्मा जयंती का विशेष ज्योतिषीय महत्व भी है।
श्री व्यास के मुताबिक, 17 सितंबर को इस बार विश्वकर्मा पूजा पर कई अमृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, ब्रह्म योग और द्विपुष्कर योग निर्मित हो रहे हैं। विश्वकर्मा पूजा पर एक साथ इतने सारे योग बनना एक दुर्लभ मौका है। इससे पहले 50 साल पहले ऐसा हुआ था। विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त की जानकारी देते हुए उन्होने कहा कि विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को सुबह 9.44 मिनट से शुरू होगी और पूजा के लिए शुभ मुहूर्त दोपहर 12.55 मिनट तक रहेगा। इस शुभ मुहूर्त के दौरान ही सर्वार्थ सिद्धि योग भी बनेगा। इस दौरान भगवान विश्वकर्मा की पूजा के दौरान जो भी मनोकामना होगी, वह अवश्य पूरी होगी। पूजा के फलस्वरूप नया वाहन या संपत्ति भी खरीद सकते हैं।
सनातन धर्म में भगवान विश्वकर्मा की महिमा के बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है। भगवान विश्वकर्मा को देवी-देवताओं के महलों का वास्तुकार और निर्माणकर्ता माना गया है। परमपिता ब्रह्मा के आदेश पर पृथ्वीलोक की संरचना भी भगवान विश्वकर्मा ने ही तैयार की थी। उनके अनुसार इस साल 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती पर 50 साल बाद दुर्लभ संयोग निर्मित हो रहा है। विधि-विधान के साथ यदि भगवान विश्वकर्मा की पूजा की जाती है तो जिन लोगों को नौकरी व कारोबार की बाधाएं आ रही हैं, उससे निजात मिल सकता है।