झाबुआ। एक तरफ प्रदेश सरकार नियमों का हवाला देकर सरकार के नियमों पर शक्ति से कार्य करने में लगी है वही जिले के जिम्मेदार शासन के नियमों की खुलेआम लीपा पोती कर सरकार के नियमों की धज्जियां उड़ाने से बाज नहीं आ रहे हैं, ऐसा ही मामला झाबुआ व रामा में देखने को मिल रहा है जहां कथित तौर पर नियमों को ताक में रखकर जिम्मेदारों ने कोर्ट के स्टेट ऑर्डर होने के यथावत होने के स्थान पर ट्रांसफर कर दिया। लगता है यह पहला ही मामला होगा जो कर्मचारियों ने प्रशासनिक स्तर पर हुए थे ट्रांसफर में कोर्ट स्टे के होने के बाद हेरफेर करने से विभाग के अधिकारी बाज नहीं आए। शिक्षा जगत से जुड़े शिक्षक नाम न छापने की शर्त पर यहां तक जानकारी बता रहे हैं कि झाबुआ और रामा के विकास खंड में बिआरसी कार्यलय में बीएससी पद पर कार्यरत कर्मचारी एक सब्जेक्ट के दो-दो बीएससी गांधी क्या गांधी छाप लेकर कुछ माह पहले डीपीसी ने डेपुट कर दिए हैं.? यह तो जांच का विषय है.? यदि इस विकासखंड में इस प्रकार की प्रशासनिक स्तर पर हुए ट्रांसफर के बाद कर्मचारी कोर्ट के स्टे आर्डर के बाद में इस प्रकार की प्रक्रिया हुई हो तो अन्य जगहों पर भी होना संभव है.? क्या यदि संभव नहीं हो तो यह तो शासन के नियमों की जिम्मेदार अधिकारी खुलेआम धज्जियां उड़ाने से भी नहीं चूक रहे हैं इस पर प्रदेश सरकार के मुखिया को संज्ञान में लेकर जिम्मेदारों पर कार्रवाई करना चाहिए।
झाबुआ व रामा ब्लॉक इन बीएससीयो के कारण नियमों के उड़ रही धज्जियां प्रशासनिक तौर पर हुए ट्रांसफर में कोर्ट स्टे लेने के बाद रामा ब्लॉक के बीएससी इलियास खान झाबुआ आ गये है वही रमेश भाबोर झाबुआ से रामा ब्लॉक में दोनों की आपसी सहमति से इधर से उधर गए। जब कि शिक्षकों ने जानकारी देते हो बताएं कि जिसमें झाबुआ ब्लॉक में सामाजिक विज्ञान के दो बीएससी हो चुके हैं, झाबुआ में जिसमें (मनोरमा सोनी और इलियास खान)और वही रामा ब्लॉक में भी हिंदी विषय के दो बीएससी यह है जिसमें (रमेश भाबोर व अजय यादव) जो नियम के विरुद्ध है। जो एक-एक विषय के दो-दो बीएससी नियुक्त कर नियमों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। जिससे शिक्षा से जुड़ा कार्य भी स्कूलों का प्रभावित हो रहा है।
इस विषय वार होती है बीएससी की नियुक्ति.!
हमारे सूत्र से जुड़े शिक्षकों ने तो यहा तक बताया कि बीआरसी कार्यालय में बीएससी पद की प्रति नियुक्ति होती है, जिसमें पांच बीएससी होते हैं, जिसमें नियम के अनुसार विषय वार जिसमें दो साइंस के, एक हिंदी के,एक इंग्लिश, को एक सामाजिक अध्ययन के कुल पांच बीएससी की नियुक्ति की जाती है जो इस प्रकार है। जो सभी जगह बीआरसी कार्यालय में एक जैसे नियम आज भी लागू है लेकिन सभी जगहों के छोड़ बिआरसी कार्यलय झाबुआ और रामा में अलग ही नियमों की प्रक्रिया की धज्जियां उड़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं। जिसके कारण जिले भर के शिक्षकों में काफी नाराजगी वह जिम्मेदार के प्रति आक्रोश दिखाई दे रहा है।
बिना सांठगाठ बीएससी का यथावत स्टे आर्डर होने के बाद ट्रांसफर होना संभव नहीं.?
शिक्षक को यहां तक बताते हैं कि पूरी फॉर्मेलिटी डीसीपी के अंतर्गत होती है जिसमें जिला पंचायत अधिकारी सीईओ के अनुमोदन पर जिले के मुखिया क्लीन चिट दे देते हैं। डीपीसी जिम्मेदार और मुखिया को गुमराह कर करके भी इस फॉर्मेलिटी पर साइन करवा सकता है यह भी जांच का विषय है.? क्योंकि कोर्ट स्टे के बाद यथा स्थान होने के बावजूद ट्रांसफर होना संभव प्रतीत नहीं होता है। इससे तो ऐसा लग रहा है कि गांधी छाप की आड़ में जिले के मुखिया को गुमराह करने से भी जिम्मेदार डीपीसी नहीं चुक रहे हैं। शिक्षा जगत के शिक्षकों द्वारा नाम न छापने की शर्त पर यहां तक बताया जाता है कि पूरा खेल जिले के जिम्मेदार डीसीपी द्वारा किया धरा है जिसके कारण झाबुआ और रामा बिना के शाठगाठ के बीएससी का यथावत स्थान पर स्टे आर्डर के बाद ट्रांसफर होना होना संभव नहीं है इसमें जरूर डीपीसी की मोह माया के कारण नियमों को ताक में रखकर बीएससी पद की इस कदर धज्जियां उड़ाई जा रही है।
स्टे आर्डर मैं यथावत रहने का नियम, फिर हेरफेर हुई कैसे..? विगत महीनों जिन बीएससी कमचारियों का प्रशासनिक स्थानांतरण हुए थे जो कोर्ट स्टेट लेकर आ गए थे वह यथावत जगह पर रहने का नियम व प्रावधान है, लेकिन फिर झाबुआ के बीएससी रामा में व रामा के बीएससी झाबुआ में कार्य करने में कैसे लग गये यह बड़ा ही सवाल या निशान है.? नियमों की बात कर तो यदि कोई अधिकारी कर्मचारी प्रशासनिक स्तर पर हुए ट्रांसफर के बाद स्वयं यदि स्टे आर्डर प्राप्त कर लेता है तो उसे उसी यथा स्थान व विभाग में यथावत रहने का दायित्व रहता है उसके बाद जब तक स्टे आर्डर की प्रक्रिया से गुर्जर नहीं जाता है जब तक उसे इस विभाग में उसी जगह पर रहकर अपना दायित्व निर्वहन करना पड़ता है लेकिन झाबुआ और रामा ब्लॉक में स्टे आर्डर होने के बावजूद भी वहां के बीएससी को इधर से उधर कर दायित्व शोपे पर गए हैं,जो समज व नियमों से परे दिखाई देते नजर आ रहे हैं.! जिसमें जिला परियोजना समन्वयक अधिकारी ने नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए म्युचुअल (आपसी सहमति से) स्थानांतरण करते हुए एक ही विषय के दो दो विषयों के बीएससी की नियुक्ति कर दी है। जो नियमों के खिलाफ है।
क्या कलेक्टर और सीईओ को डीपीसी ने किया गुमराह.? शिक्षकों द्वारा यहां तक बताया जा रहा है कि पूरी फॉर्मेलिट का दायित्व डीपीसी के अंतर्गत आता है वही बैठक में प्रस्तावित होता है और कलेक्टर और सीईओ की साइन के बाद दायित्व निर्वाह किया जाते हैं क्या डीपीसी से जिला पंचायत अधिकारी व कलेक्टर को गुमराह कर साइन करवा कर इन दोनों बीएससी को हरी झंडी का रास्ता दिखाकर गोल माल कर दिया, यह तो आने वाले समय में सीएम हेल्पलाइन पर शिक्षकों द्वारा शिकायत करने पर ही इसका खुलासा हो पाएगा। देखना है कि कौन सही है और कौन गलत क्या सीएम हेल्पलाइन के बाद भी जिम्मेदारों पर इस प्रकार की कार्यप्रणाली पर गाज गिरेगी या नहीं यह आने वाले समय बताएगा.?
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