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झाबुआ

बेटी कस्ती से प्रेरणा पाकर मां ने की 11 उपवास की तपस्या । अनुकरणीय उदाहरण की सर्वत्र की जारही प्रसंशा ।

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बेटी कस्ती से प्रेरणा पाकर मां ने की 11 उपवास की तपस्या ।
अनुकरणीय उदाहरण की सर्वत्र की जारही प्रसंशा ।

रतलाम – जैन धर्म में जप , तप का विशेष महत्व है देखने में प्राय आता है की माता-पिता के संस्कार ही बच्चों में आते हैं और उन्हीं से प्रेरणा पाकर बच्चे विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ते हैं कुछ ऐसा ही रतलाम की निवासी मनीषा संदीप बोराणा ने बेटी कस्ती से प्रेरणा पाकर 11 उपवास की तपस्या की ।
मन को साधना और तपस्या करना केवल उम्र से नहीं, बल्कि आत्मबल और विश्वास से मापा जाता है। रतलाम निवासी मनीषा संदीप बोराणा ने जिस प्रकार से तपस्या और त्याग का प्रदर्शन किया, वह न केवल स्थानीय समाज बल्कि पूरे अंचल में चर्चा का विषय बन गया है।
जानकारी अनुसार झाबुआ की बेटी स्वर्गीय पूनमचंद्र कोठारी की सुपुत्री व रतलाम निवासी संदीप बोराणा जी की धर्मपत्नी मनीषा बोराणा ने विगत वर्षों में उपवास, एकासान आयंबिल आदि अनेक तप किए हैं । मनीषा और संदीप जी ने अपने पुत्र पुत्री को जैन धर्म के संस्कार दिए हैं तथा बच्चे भी उन्हें संस्कारों का पालन करते हुए धर्म क्षेत्र में जप, तप क्रम लगातार कर रहे हैं । हाल ही में मनीषा की पुत्री कश्ती बोराणा ने चातुर्मास प्रारंभ के दौरान 9 उपवास की तपस्या की थी । बेटी कश्ती से ही प्रेरणा पाकर मनीषा बोराणा ने भी पर्युषण  के प्रारंभ पर अपना तप प्रारंभ किया और देखते ही देखते 11 दिनों की अपनी तपस्या को पूर्ण किया । मनीषा ने अपना तप एक सितंबर को प्रारंभ किया था और 11 सितंबर को पूर्ण हुआ तथा 12 सितंबर को अपने ससुर गौतम बोराणा , सांसू मां श्रीमती बोराणा, पति संदीप बोराणा, पुत्र आगम बोराणा, पुत्री कस्ती बोराणा के हाथों से पारणा किया ।
पर्युषण पर्व जैन धर्म का सबसे प्रमुख और पवित्र पर्व माना जाता है, जिसमें तपस्या, त्याग और क्षमा का संदेश दिया जाता है। इस पर्व के दौरान जैन अनुयायी उपवास करते हैं, ध्यान करते हैं और आत्मशुद्धि के मार्ग पर चलते हैं। इस पर्व का अंतिम दिन क्षमापना दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसमें लोग अपने द्वारा की गई गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं और दूसरों को भी क्षमा करते हैं। मनीषा संदीप बोराणा  के उपवास इस पर्व के महत्व को और भी बढ़ा देता है, और उसकी तपस्या ने समाज के अन्य लोगों को भी प्रेरणा दी है कि तपस्या और त्याग उम्र से नहीं, बल्कि आस्था और आत्मबल से की जाती है।

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