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झाबुआ

ब्रह्म को जीव का वह चिंतन सबसे प्रिय है, जिसमें सत्य और आनंद हो- पण्डित अनुपानंद जी। ********श्री नवग्रह शनि मंदिर परिसर में भागवत कथा के पांचवे दिन श्रद्धालुओं का लगा तांता ।

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ब्रह्म को जीव का वह चिंतन सबसे प्रिय है, जिसमें सत्य और आनंद हो- पण्डित अनुपानंद जी। ********श्री नवग्रह शनि मंदिर परिसर में भागवत कथा के पांचवे दिन श्रद्धालुओं का लगा तांता ।

झाबुआ । स्थानीय नवग्रह शनि मंदिर परिसर में चल रही श्रीमद भागवत कथा के पांचवें दिन पण्डित अनुपानंदजी महाराज ने खचाखच भरे भागवत भक्तों के पाण्डाल में  भगवान की लीलाओं का जिक्र करते हुए पुतना वध की कथा कहते हुए कहा कि श्रीकृष्ण ने बाल्यावस्था में ही पुतना का वध कर उसे मोक्ष दिया। उन्होंने कहा कि कंस भी जानता था कि उसे भगवान के हाथ से ही मोक्ष प्राप्त होगा, इसलिए क्यों न अपने पूरे परिवार को ही मोक्ष दिलाएं। यह सोचते हुए ही कंस ने अपनी बहन को श्रीकृष्ण का वध के लिए उन्होने कहा कि जब माता यशोदा सो रही थी, तो पुतना धीरे से कृष्ण को उनसे दूर ले जाकर स्तनपान करा रही थी। उन्होंने प्रवचन में कहा कि भगवान ने स्तनपान करते समय इतनी जोर की दांत काट दी कि पुतना की मृत्यु हो जाती है। भगवान पुतना की संतान बनकर स्तनपान करने के क्रम में मारने के बाद उसे मोक्ष देते हैं।
पण्डित अनुपानंदजी ने कहा कि कहा कि ब्रह्म को जीव का वह चिंतन सबसे प्रिय है, जिसमें सत्य और आनंद हो। इसके अलावा हमारी भक्ति मीरा, राधा और हनुमान की तरह समर्पण भाव की रहे, जिसमें उन्हें अपने ब्रह्म के अलावा संसार की कोई वस्तु दिखाई नहीं दी। उन्होंने कहा कि कलियुग में ऐसा करना मुश्किल है, क्योंकि हमारे ह्रदय में विद्यमान अमृत रूपी ब्रह्म को सांसारिक विषय वासनाओं ने बांध रखा हैं, लेकिन इनकी पकड़ ब्रह्म तत्व से कम करने के लिए हमें आज के समय में शब्द रूप में विद्यमान मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम और पूर्ण पुरूषोत्तम भगवान कृष्ण के नाम का सुमिरण करना होगा और उनका संकीर्तन करना होगा।


भगवान के नामकरण संस्कार के बारे में उन्होने कहा कि लीला और क्रिया में अंतर होता है। अभिमान तथा सुखी रहने की इच्छा प्रक्रिया कहलाती है। इसे ना तो कर्तव्य का अभिमान है और ना ही सुखी रहने की इच्छा, बल्कि दूसरों को सुखी रखने की इच्छा को लीला कहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने यही लीला की, जिससे समस्त गोकुलवासी सुखी और संपन्न थे। उन्होंने कहा कि माखन चोरी करने का आशय मन की चोरी से है। कन्हैया ने भक्तों के मन की चोरी की। उन्होंने तमाम बाल लीलाओं का वर्णन करते हुए उपस्थित श्रोताओं को वात्सल्य प्रेम में सराबोर कर दिया। ब्रह्म को जीव का वह चिंतन सबसे प्रिय है, जिसमें सत्य और आनंद हो। इसी प्रकार कार्तिक माह में ब्रजवासी भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए पूजन कार्यक्रम की तैयारी करते हैं, परंतु भगवान कृष्ण उनको इंद्र की पूजा करने से मना कर देते हैं और गोवर्धन की पूजा करने के लिए कहते हैं। यह बात सुनकर भगवान इंद्र नाराज हो जाते हैं और गोकुल को बहाने के लिए भारी वर्षा करते हैं। इसे देखकर समस्त ब्रजवासी परेशान हो जाते हैं। भारी वर्षा को देखकर भगवान कृष्ण कनिष्ठ अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर सभी लोगों को उसके नीचे छिपा लेते हैं। भगवान द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाकर लोगों को बचाने से इंद्र का घमंड चकनाचूर हो गया। मथुरा को कंस के आतंक से बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया।
श्रीकृष्ण की माखन चोरी की लीला का वर्णन करते हुए कहा कि जब श्रीकृष्ण भगवान पहली बार घर से बाहर निकले तो उनकी बृज से बाहर मित्र मंडली बन गई। सभी मित्र मिलकर रोजाना माखन चोरी करने जाते थे। सब बैठकर पहले योजना बनाते किस गोपी के घर माखन की चोरी करनी है। श्रीकृष्ण माखन लेकर बाहर आ जाते और सभी मित्रों के साथ बांटकर खाते थे।

भागवत कथा में माखन चोरी की लीला के साथ ही गोवर्धन पूजा का प्रसंग चला। गोवर्धन का अर्थ है गौ संवर्धन। भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत मात्र इसीलिए उठाया था कि पृथ्वी पर फैली बुराइयों का अंत केवल प्रकृति एवं गौ संवर्धन से ही हो सकता है। गोवर्धन पर्वत की कथा सुनाते हुए कहा कि इंद्र के कुपित होने पर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन उठा लिया था। इसमें ब्रजवासियों ने भी अपना-अपना सहयोग दिया। श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के लिए राक्षसों का अंत किया तथा सामाजिक कुरीतियों को मिटाने एवं निष्काम कर्म के जरिए अपना जीवन सफल बनाने का उपदेश दिया।


लाभार्थी परिवार का किया स्वागत
श्रीमद् भागवत कथा के पांचवें दिन के लाभार्थी परिवार का कथा के अंत में स्वागत और सम्मान किया गया। लाभार्थी मदन कालूजी गोलानिया, अशोक शंकरलाल सोनावा, राजेश सागरमल आसरमा को गले में गमछा व साफा बांधकर तथा श्रीफल भेटकर समाज के सचिव मनीष राठौर ने स्वागत किया तथा समाज के वरिष्ठ सदस्य शंकरलाल टेकचंद गोलानिया, रामचंद्र कचरूजी गोलानिया एवं मांगीलाल मोहनलाल गोलानिया द्वारा प्रतिक चिन्ह देकर लाभार्थी परिवारों का सम्मान किया गया। स्वागत समारोह के पश्चात लाभार्थी परिवारों द्वारा भागवतजी की आरती कर प्रसादी का वितरण किया।

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