17 सितम्बर से प्रारंभ होगया श्राद्ध पक्ष ।
जिस व्यक्ति पर पितर प्रसन्न हो जाते हैं, उसको जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है और पितृदोष से मुक्ति भी मिलती है- पडित हिमांशु शुक्ला ।
झाबुआ । पितृपक्ष को लेकर इस बार कन्फ्यूजन की स्थिति बनी हुई है, कुछ लोग 17 सितंबर को पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध कर रहे हैं तो कुछ 18 सितंबर से। पंडितों में पितृपक्ष की तिथि को लेकर मतभेद चल रहे हैं। पितृपक्ष में पितरों के नाम का दान, तर्पण और श्राद्ध कर्म किया जाता है। उक्त जानकारी नगर के ज्योतिषाचार्य पण्डित हिमंाशु शक्ता ने देते हुए बताया कि पितृपक्ष 2024 की तिथियों को लेकर लोगों में मतभेद की स्थिति बन रही रही है। कोई 17 से तो कोई 18 सितंबर को पूर्णिमा पर महालया से इसकी शुरुआत मान रहा है। उनका कहना है कि पितृपक्ष 17 सितंबर को पूर्णिमा पर महालय से शुरू होंगे। इसी दिन पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाएगा। 18 को प्रतिपदा , 19को दूज या, 20 को तीज 21 को चतुर्थी श्राद्ध किया जाएगा। पंचमी 22 को, वहीं षष्ठी और सप्तमी 23 को, अष्टमी 24 को, नवमी 25 को, दशमी 26 को, एकादशी श्राद्ध 27 को करेंगे। 28 तारीख में कोई श्राद्ध नहीं किया जाएगा। द्वादशी 29 को, त्रयोदशी 30 सितंबर, चतुर्दशी श्राद्ध एक अक्टूबर को होगा। वहीं सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध 2 अक्टूबर को होगी।
पण्डित हिमांशु शुक्ला के अनुसार पूर्णिमा 17 सितंबर को सुबह 11 बजे लग जाएगी। चूंकि श्राद्ध में उदया तिथि का विचार नहीं किया जाता है और श्राद्ध दोपहर को ही किया जाता है, इसलिए पूर्णिमा का श्राद्ध इस दिन किया जा सकता है। 18 को प्रतिपदा का श्राद्ध किया जाएगा। इसके बाद एक-एक तिथि में श्राद्ध किया जा सकता है। उनक अनुसार 18 सितम्बर को सुबह स्नान-दान की पूर्णिमा है। इस दिन पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाएगा। दूसरे दिन 19 तारीख को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की द्वितीया रहेंगी
पूर्णिमा की श्रद्धा का महत्व बताते हुए उनका कहना है कि पूर्णिमा के श्राद्ध को ऋषि तर्पण कहा जाता है। इस दिन अगस्त्य मुनि का तर्पण किया जाता है। इन्होंने ऋषि मुनियों की रक्ष के लिए एक बार समुद्र को पी लिया था और दो असुरों को भी खा गए थे। इन्हीं के सम्मान में श्राद्ध पक्ष की पूर्णिमा तिथि को इनका तर्पण करके पितृपक्ष की शुरुआत की जाती है। जिनकी मृत्यु की तिथि पूर्णिमा को है, इस दिन उनका श्राद्ध किया जाता है। इस तिथि को प्रोष्ठपदी पूर्णिमा भी कहते हैं। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पितरों के नाम का दान पुण्य और भोजन करवाना चाहिए। साथ ही गाय, कौए और कुत्ते के लिए अलग से ग्रास निकालकर खाना चाहिए।
पितरों का रहता है आशीर्वाद
पण्डित हिमांशु के अनुसार पितरों को समर्पित 15 दिनों की अवधि बहुत शुभ मानी जाती है। इन दिनों पितारों की आत्मा की शांति पिंडदान, श्राद्ध कर्म, तर्पण आदि कार्य किए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिस व्यक्ति पर पितर प्रसन्न हो जाते हैं, उसको जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है और पितृदोष से मुक्ति भी मिलती है। पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से होती है और आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को समापन होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितर पितृपक्ष में पृथ्वी लोक पर अपने परिवार के सदस्यों से मिलते हैं। इसके बाद पितरों के नाम का दान, तर्पण और श्राद्ध कर्म किया जाता है। पितृपक्ष में कुछ चीजें ऐसी हैं, जिनकी खरीदारी बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए, जैसे झाड़ू, सरसों का तेल, नमक। इन तीन चीजों की श्राद्ध पक्ष में खरीदारी नहीं की जाती।
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