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झाबुआ

सकारात्मक विचार से ही आत्म शुद्धि संभव है ,कभी भी नकारात्मक विचारों को मन में लाने मत दो – आचार्य गिरधर शास्त्री ==========!!!!!!!!!!!!!!!!!गीता जयंती समारोह के दूसरे दिन गुढ रहस्यों के बारे मे बताया

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झाबुआ से राजेंद्र सोनी की रिपोर्ट

झाबुआ । श्री गोवर्धननाथ जी की हवेली में चल रहे त्रिदिवसीय गीता जयंती समारोह के अवसर पर श्रीमद भागवत गीता पर गुढ प्रवचन करते हुए आचार्य गिरधर शास्त्री दाहोद वाले ने उपस्थित महिला एवं पुरूष श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि मनुषय को अपने एक ही आराध्य के प्रति निषठा रखना चाहिये परन्तु पर मानना सभी देवी देवताओं को चाहिये । आराध्य को जितना सम्मान हम देते है, वैसा ही भाव अन्य पूजनीयों को देना चाहिये । आचार्य ने आगे कहा कि स्वयं श्रीकृष्ण ने कहा है कि कर्म को करते रहना चाहिये कर्मफल की आशा कभी भी नही की जाये ।भगवान स्वयं कहते है कि कर्म करना ही हमारी जिम्मेवारी है । मानव को स्थित प्रज्ञ बनना चाहिये । स्थित प्रश्र वही हो ता है जिसे अन्तःकरण से सुख मिले। जिन्हे बाह्य सुख मिला है वह संसारी कहलाता है, जिनको आत्म सुख मिल जाये वही स्थित प्रज्ञ बन जाता है। स्थित प्रज्ञ संसार मे रह कर भी अपने आप को सन्तुठ महसूस करता है। संत तुकाराम ने अन्तःकरण से प्रभू स्मरण कर सुख पाया । पत्नी के झगडालु होने के बाद भी उन्हे दुख विचलित नही कर पाया । पण्डित गिरधर शास्त्री ने आगे कहा कि संसार मे सुखी रहने के लिये विषयों की आसक्ति को त्यागना चाहिये । गीता कहती है कि वासना कभी मिटती नही है इसलिये अनासक्त होकर मानव कार्य करता है। जिनकी विय वासना चली जाती है उन्हे जगत मिथ्या लगने लग जाता है।विय वासना भंयकर होती है यदि मन की वासना को दूर नही किया जावे तो वियों को त्यागना मुशिकल होता है। परमात्मा का ध्यान करने से ही अन्दर अग्नि प्रकट होती है जो वासना को भस्म कर देती है। ध्यान के लिये शत्र होती है कि मन की स्थिरता रहे, एकाग्रता रहे। एकाग्रता धीरे धीर अभ्यास से आती है । इन्द्रिया चंचल होती है जो मन को खिंचती है । मन हमेशा ही आत्मा के साथ बेईमान करता रहता है। मन में हमेशा कुछ न कुछ चलता ही रहता है। सकारात्मक विचार से ही आत्म शुद्धि संभव है । कभी भी नकारात्मक विचारों को मन मे लाने मत दो । जीवन मे शांति के लिये परिस्थितियों को अनुकुल बनाना चाहिये । उन्होने आगे कहा कि श्रीकृष्ण ने सुख,शांति व आत्म कल्याण के लिये गीता का सन्देश समग्र विशव को दिया है। राम चरित मानस को हम प्राथमिक शाला , भागवत, को माध्यमिक शाला एवं उपनिद को महाविद्यालय एवं गीता ज्ञान को विशव विद्यालय मानना चाहिये । सभी सार इसमे निहीत है। ज्ञान एवं कर्म में कोन अधिक श्रेष्ठ हे इस पर मनन किया जाना चाहिये ज्ञान यदि श्रेष्ठ हे तो कर्म क्यो किया जाता है ? श्री कृषण ने गीता में कहा है कि कर्म का त्याग करके ज्ञानी नही बना जासकता है इसलिये कर्म ही श्रेष्ठ है ।कर्म सतत चलने वाली प्रक्रिया होती है। मानसिक कर्म, आंख से देखना मुह से बोलना, कान से सुनना भी कर्म ही है। इन्द्रियों को दबाने से संयमी नही बना जासकता है। जीवन मे जिसे जो भी जिम्मेवारी मिली है उसका निर्वाह करना चाहिये ।मन को विशवास में रखा जावेगा तो मन दुशित नही होगा । पण्डित जी ने आगे कहा कि गीता के दूसरे अध्याय में जो ‘तस्य प्रज्ञाप्रतिष्ठिता’ की धुन पाई जाती है, उसका अभिप्राय निर्लेप कर्म की क्षमतावली बुद्धि से ही है। यह कर्म के संन्यास द्वारा वैराग्य प्राप्त करने की स्थिति न थी बल्कि कर्म करते हुए पदे पदे मन को वैराग्यवाली स्थिति में ढालने की युक्ति थी। यही गीता का कर्मयोग है। जैसे महाभारत के अनेक स्थलों में, वैसे ही गीता में भी सांख्य के निवृत्ति मार्ग और कर्म के प्रवृत्तिमार्ग की व्याख्या और प्रशंसा पाई जाती है। एक की निंदा और दूसरे की प्रशंसा गीता का अभिमत नहीं, दोनों मार्ग दो प्रकार की रुचि रखनेवाले मनुष्यों के लिए हितकर हो सकते हैं और हैं। संभवतः संसार का दूसरा कोई भी ग्रंथ कर्म के शास्त्र का प्रतिपादन इस सुंदरता, इस सूक्ष्मता और निष्पक्षता से नहीं करता। इस दूष्टि से गीता अद्भुत मानवीय शास्त्र है। इसकी पूष्टि एकांगी नहीं, सर्वांगपूर्ण है। गीता में दर्शन का प्रतिपादन करते हुए भी जो साहित्य का आनंद है वह इसकी अतिरिक्त विशेषता है। तत्वज्ञान का सुसंस्त काव्यशैली के द्वारा वर्णन गीता का निजी सौरभ है जो किसी भी सहृदय को मुग्ध किए बिना नहीं रहता। इसीलिए इसका नाम भगवद्गीता पड़ा, भगवान् का गाया हुआ ज्ञान।
भागवत गीता के रहस्य को बताते हुए उन्होने कमहा कि पांच प्रकार के यज्ञों का सनातन संस्कृति में उल्लेख है, ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ, भूत यज्ञ और मनुय यज्ञ । शस्त्रों का वाचन चिंतन ब्रह्मयज्ञ की श्रेणी में आता है, इषटदेव का पूजनादि अनुठान देव यज्ञ, माता पिता की सेवा सुश्रुा पितृ यज्ञ , जीव मात्र के प्रति प्रेम योग्य व्यवहार आसदर भाव भूत यज्ञ एवं वसुदैव कुटुंबकम की भावना मनुय यज्ञ की श्रेणी मे आती है।
गीता जयंती महोत्सव के दुसरे दिन डा. केके त्रिवेदी, किशोर भट्ट, विजय अरोडा, जगदी आचार्य, उमांकर मिस्त्री, नारायण मालवीय, कन्हैयालाल राठौर, हरिचन्द्र शाह , वेणुकांता आचार्य, शिवकुमारी सोनी, किरण देवल, विजय अरोडा सहित बडी संख्या मे श्रद्धालुओ ने प्रवचन का लाभ लिया । पोथी पूजन किशोर आचार्य ने की । महा मंगल आरती के बाद प्रसादी का वितरण किया गया । सोमवार को गीता जयंती समारोह का गीता सार के साथ समापन होगा । आयोजन समिति ने नगर की धर्मप्राण जनता से इस आध्यात्मिक आयोजन का लाभ उठाने का अनुरोध किया है ।

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झाबुआ ।

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