झाबुआ- तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें गुरु, मानवता के मसीहा, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी की सुशिष्या समणी निर्वाण प्रज्ञा जी व मध्यस्थ प्रज्ञा जी के सानिध्य में स्थानीय लक्ष्मीबाई मार्ग स्थित तेरापंथ सभा भवन पर 263वें तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर पर ज्ञानशाला के बच्चों महिला मंडल ,कन्या मंडल व किशोर मंडल द्वारा ज्ञानवर्धक प्रस्तुतियां दी ।
तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर पर समणी निर्वाण प्रज्ञा जी ने समाजजन को संबोधित करते हुए कहा कि समय का चक्र चलता है और सृष्टि में अनेक परिवर्तन होते हैं । भगवान महावीर के निर्वाण के बाद 2 हजार वर्ष बीत जाने के बाद जैन परंपरा में अनेक परिवर्तन हुए । उसमें एक हुआ तेरापंथ धर्म संघ का उद्भव । आचार्य भिक्षु ने तत्कालीन धर्मसंघ में चलने वाली परिस्थितियों में कुछ उपयुक्तता नजर नहीं आई , तब उन्होंने अपने आत्मोत्थान का चिंतन कर रामनवमी को अभिनिष्क्रमण किया । बगड़ी से जोधपुर पधारे वहां 13 श्रावकों ने उनकी बात को समझा और स्वयं आचार्य भिक्षु के अनुयायी बन गए । उस समय भिखणजी के साथ 13 संत थे । जैतसिंहजी ने श्रावको से स्वयं की संख्या व भिखण आदि संतों की संख्या पूछी । दोनों की संख्या 13 सुनकर वहां खड़े कवि ने दोहा बनाया….. साध साध गिलो रो … आप आपरो पंथ…. सुनो रे शहर रा लोगा …ओ तेरापंथी संत । आचार्य भिक्षु को जब केलवा में यह खबर मिली , उन्होंने तत्काल भगवान महावीर को वंदन करते हुए कहा हे प्रभो यह तेरापंथ । अर्थात प्रभु महावीर यह आत्मा का मार्ग आपका है मैं तो आप के पथ का अनुगामी हूं । ऐसा कहते हुए हुए उन्होंने पद लिप्सा से मुक्त हो …। भगवान के चरणों में अपने आप को समर्पित करते हुए आषाढ़ी पूर्णिमा को शाम 7:25 पर भाव दीक्षा स्वीकार की । उसी के साथ उनके ग्रुप का नाम नियति से तेरापंथ हो गया । इस प्रकार भव्य प्राणियों को गुरु पूर्णिमा का दिन एक शुद्ध संयमी , आत्मानुरागी और प्रभु पथ का अनुगमन करने वाला गुरु प्राप्त हो गया । उसी के साथ तेरापंथ धर्म संघ की स्थापना हो गई । तेरापंथ धर्म संघ को आरंभ हुए आज 262 वर्ष हो गए आचार्य भिक्षु ने इस का भरण पोषण किया ऐसी व्यवस्था बनाई जो आज भी चल रही है उनके बाद के सभी आचार्यों ने भी धर्म संघ को आगे बढ़ाया और नित नवीन ऊंचाइयों प्रदान की । वही देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मुख्यमंत्रीकाल के दौरान और प्रधानमंत्री काल के दौरान तेरापंथ को मेरा पंथ भी कहा ।
तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर पर सभा भवन में रात्रि कालीन में कार्यक्रम का आयोजन किया गया । सर्वप्रथम कार्यक्रम की शुरुआत में पलक कटारिया द्वारा मंगलाचरण की प्रस्तुति दी गई । इसके बाद उपासक पंकज कोठारी ने तेरापंथ स्थापना दिवस के अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए तथा गीत का संज्ञान किया । पश्चात ज्ञानशाला संयोजिका दीपा गादिया द्वारा गीत …..वह कौन है जिसने हमको दी पहचान है ……कोई और नहीं वह सिरियारी के राम हैं …..की प्रस्तुति दी । इसके बाद महिला मंडल द्वारा आचार्य श्री भिक्षु का जीवन परिचय कराते हुए गीतों का संगान किया । इसके बाद ज्ञानशाला के नन्हे-मुन्ने बच्चों द्वारा गीत ….भिक्षु को बुलाएंगे…. भूल तुम्हें ना पाएंगे… गीत पर शानदार नृत्य प्रस्तुति देकर सभी को अपनी और आकर्षित किया। तेरापंथ कन्या मंडल व युवक मंडल द्वारा तेरापंथ मिलिट्री विषय पर सुंदर नाट्य प्रस्तुति दी … जिसमें बताया गया कि जिस प्रकार सेना के नौजवान अपने देश की सुरक्षा के लिए समर्पित होते हैं और शहीद भी होते हैं । उसी प्रकार हमें भी अपने संघ के प्रति निष्ठावान होना चाहिए । नाट्य प्रस्तुति में दर्शाया गया कि जिस प्रकार मिलिट्री या सेना में एक ही लीडर के नेतृत्व में में कार्य करते हैं उसी तरह तेरापंथ धर्म संघ में भी एक ही गुरु के नेतृत्व में संघ का संचालन होता है जिस प्रकार सेना में कमांडो को कहां जाना कब जाना और क्या कार्य करना यह सारे निर्णय सेना प्रमुख ही लेते हैं । उसी प्रकार तेरापंथ धर्म संघ मे एक ही आचार्य की आज्ञा में साधु साध्वी कार्य करते हैं । सेना में कोई भी कमांडो को कार्य से बाहर सेना प्रमुख निकाल सकते हैं उसी प्रकार तेरा धर्म संघ में भी साधु साध्वी द्वारा द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन न करने पर आचार्य द्वारा उन्हें बहिष्कृत किया जा सकता है । सेना में कोई भी कमांडो अपनी बटालियन नहीं बना सकता ,उसी प्रकार तेरापंथ धर्म संघ में भी साधु साधु दल बनाकर कार्य नहीं कर सकते हैं । गुटबाजी या दल बंदी दोनों में ही संभव नहीं है ।
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