झाबुआ। स्थानक भवन में चातुर्मास अंतर्गत 20 जुलाई, बुधवार को प्रवचन देते हुए पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी ने फरमाया कि जिनेश्वर देव द्वारा बताया गया धर्म श्रेष्ठ तथा सुख देना वाला है। यह धर्म समझ में आ जाए, तो भव परम्परा, जन्म-मरण खत्म हो जाता है। संयम का मार्ग श्रेष्ठ तथा सुख देने वाला है। जो संयम के मार्ग पर चलता है, उसे आनंद आता है। साधु-साध्वी मर्यादा अनुसार पहनने, ओढ़ने के वस्त्र रखते है। संयमी सुख का अनुभव करता है। आगे जैसे-जैस संयम में रमण करता है, उसका शरीर से मोह उतर जाता है। संयम ग्रहण करने वाले को दिन-रात कैसे गुजर जाती है, समय का पता भी नहीं चलता है। आपने आगे बताया कि आचार्य भगवंत पूज्य उमेश मुनिजी महाराज सा को उज्जैन में अंतिम समय में तीव्र वेदना में भी सुख की अनुभूति हुई थी। वितराग मार्ग को अच्छा समझने वाला ऐसे सुख का अनुभव संयम में करता है। निग्रंथ प्रवचन में भगवान ने वस्तु का स्वरूप जैसा है, वैसा ही बताया है। संसार में अनेक धर्म है। सभी धर्म के ज्ञाता अपने धर्म को श्रेष्ठ ही बताते है, जो धर्म वस्तु स्वरूप से न्यून नहीं हो, अधिक नहीं हो, विपरित नहीं हो, वह शुद्ध धर्म कहलाता है। शुद्ध धर्म समझने के 2 उपाय शुद्ध धर्म समझने के 2 उपाय बताए गए है। पहला धर्म को बताने वाले वक्ता की पहचान किस प्रकार की है, जो राग-द्वेष से रहित है, वह जैसा वस्तु का स्वरूप है, वैसा ही बताते है। वे सर्वज्ञ होते है। छदमस्थ द्वारा कहा गया वचन सत्य या असत्य भी हो सकता है, वे सर्वज्ञ नहीं होते है। केवली भगवान ही धर्म को सत्य बताते है, तत्काल उत्तर देते है। शंका का समाधान करते है। दूसरा उपाय धर्मशास्त्र की पहचान होना अर्थात धर्मशास्त्रों में बताई गई बात को ही उसी रूप में बताना चाहिए। शास्त्रों में 9 तत्वों का वर्णन सहीं है, तो वह धर्म श्रेष्ठ है। कर्म के आगे किसी की भी चलती नहीं है। व्यक्ति को सुख-दुख अपने कर्मों के कारण ही मिलते है। जैन धर्म में आत्मा अरूपी है पूज्य मुनिजी ने आगे कहा कि जैन धर्म आत्मा को अरूपी बताता है। जीव के बारे में भगवान ने जो बताया, वह अन्य धर्म में नहीं है। मार्ग बताने वाले एकमात्र केवली और तीर्थंकर भगवान है। निग्रंथ प्रवचन में भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्य काल के तीर्थंकरों के वचनों में किसी प्रकार का कोई विरोधाभास नहीं है। सभी के कथन एक समान है। आज हमे भगवान द्वारा बताया गया विशुद्ध धर्म मिला है, इसकी श्रद्धापूर्वक आराधना करना चाहिए। आगम में जैसा बताया गया है, वैसा ही साधु-साध्वी प्रवचन में बताते और सुनाते है। अभ्यास होने पर चीज सरल हो जाती है अणुवत्स संयत मुनिजी मसा ने कहा कि भगवान महावीर स्वामीजी दीक्षा लेने के पूर्व तथा दीक्षा लेने के बाद भी दुखी नहीं थे, परन्तु दीक्षा के पूर्व दुःख के कारण मौजूद थे। पहले भगवान को भौतिक सुख प्राप्त था, बाद में आध्यात्मिक सुख प्राप्त हुआ। दीक्षा के बाद कई उपसर्ग आए, कष्ट आए, पर वे दृढ़ रहे। संयम में कष्ट है। यह तलवार की धार पर चलने के समान है। कई लोगों की मानसिकता है की संयम कठिन है, दुःख देने वाला है, नीरस है ऐसी मानसिकता छुड़ाना मुश्किल है। व्यक्ति असंयमी की तरफ जल्दी आकर्षित हो जाता है। संयम के प्रति आकर्षण नहीं बढ़ रहा है, क्योकि इसका अभ्यास नहीं है। अभ्यास होने पर चीज सरल हो जाती है। संयम का अभ्यास कठिन नहीं है।
मोह के कारण व्यक्ति को संयमी जीवन कठिन लगता है। संयम में ही सुख है, ऐसी मानसिकता बनाना चाहिए। संसार में दुःख बहुत है। चारो गति में भगवान ने दुःख बताए है। सद्गुरू हमे सही राह दिखाते है। आपने आगामी 22 जुलाई को मालव केसरी पूज्य शौभाग्यमलजी मसा की पुण्यतिथि पर तप करने के साथ अधिक से अधिक संवर करने का आव्हान किया। धर्मसभा में पेटलावद के रोहित कटकानी ने 16 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। आज श्री राजपाल मूणत, श्रीमती राजकुमारी कटकानी, श्रीमती सोनल कटकानी ने 12उपवास, श्रीमती रश्मि मेहता ने 10उपवास , तथा9श्राविकाओं ने 9उपवास , तीन ने 8उपवास के पचखान लिए । सभा का संचालन संघ अध्यक्ष प्रदीप रूनवाल ने किया
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