फूल छाप की जीत के पीछे छुपी है कई चुनौतियां, पंजा पार्टी की हिम्मत बढाने वाली है हार
“रतलाम। शहर को नया महापौर मिले अब चार दिन गुजर चुके है। इन दिनों अब नतीजों के पोस्टमार्टम का सिलसिला चल रहा है। जीत तो फूल छाप के हिस्से में आई है,लेकिन फूल छाप की ये जीत कई सारी चुनौतियां भी लेकर आई है। दूसरी तरफ पंजा पार्टी को हार मिली है,लेकिन ये हार पंजा पार्टी की हिम्मत को बढाने वाली और आगे के लिए उम्मीदें जगाने वाली है।
आंकडे फूल छाप के पक्ष में रहे हैैं। लेकिन आंकडों के पीछे की कहानी फूल छाप को सतर्क और सक्रिय होने की चेतावनी दे रही है। दूसरी तरफ पंजा पार्टी जीत हासिल नहीं कर पाई,लेकिन नतीजें पंजा पार्टी की आगे की राह आसान करने वाले साबित हो रहे है।
फूल छाप का पिछला रेकार्ड बेहद जबर्दस्त था। पिछले विधानसभा चुनाव में फूल छाप ने जबर्दस्त जीत हासिल की थी। उस जीत को देखते हुए सियासती पण्डितों को लग रहा था कि फूल छाप के लिए मुकाबला आसान रहने वाला है। पंजा पार्टी के लिए चालीस हजार से ज्यादा वोटों की खाई को पाटना असंभव सा काम लग रहा था। लेकिन पंजा पार्टी के पहलवान ने जिस तरह से चुनाव लडा,आखरी दिन आते आते फूल छाप वालों को भी लग गया,कि अब मामला एक तरफा नहीं रह गया है।
बस यही समझदारी फूल छाप के काम आ गई। आखरी के दो दिनों में फूल छाप वालों ने जमकर ताकत झोंकी। फूल छाप के कई बडे दिग्गज सड़क पर उतर आए। आखरी के दो दिनों की मेहनत का नतीजा साढे आठ हजार की जीत के रुप में सामने आया।
दूसरी तरफ पंजा पार्टी के युवा पहलवान ने शुरुआत से ही स्पीड पकड ली थी। पहले लोगों को लगा था कि पंजा पार्टी के पहलवान कोई कमाल नहीं दिखा पाएंगे। लेकिन जैसे जैसे दिन गुजरे समझ में आता गया कि पंजा पार्टी हर गुजरते दिन के साथ मजबूत होती जा रही है।
पंजा पार्टी में इससे पहले अकेले झुमरू दादा मंच सम्हालने की जिम्मेदारी निभाते थे,लेकिन पंजा पार्टी के युवा प्रत्याशी ने जल्दी ही खुद को साबित कर दिया। मंच को जिस खुबसूरती से उन्होने सम्हाला,लोग कहने लगे कि झुमरू दादा की पिक्चर अब पिट गई है। जबकि पहलवान की फिल्म हिट हो रही है।
पंजा पार्टी के नेताओं को भी ये उम्मीद नहीं थी कि पंजा पार्टी चालीस हजार की खाई को इतना सारा पाट देगी। कालेज में जब मशीनें खुल रही थी और वोट गिने जा रहे थे,तब ये समझ में आने लगा था कि पंजा पार्टी के पहलवान ने कितनी मेहनत की थी। फूल छाप की जीत पांच अंकों तक भी नहीं पंहुच पाई।
इन नतीजों के दो तीन सबक है। पहला ये कि शहर को फूल छाप का महापौर मिला है और फूल छाप के महापौर को ठीक ढंग से काम करके दिखाना होगा वरना लोग मूड बदलते देर नहीं करते। दूसरा सबक ये कि अब पंजा पार्टी में नेता का अकाल खत्म हो गया है। अब तक पंजा पार्टी ने जितने प्रत्याशी अलग अलग चुनावों में उतारे थे वो सब के सब चुनाव हारने के बाद दडबे में जमा हो गए। लेकिन ये पंजा पार्टी का ऐसा पहला प्रत्याशी होगा,जो चुनाव हारने के बाद भी पंजा पार्टी को नियंत्रित करने की क्षमता वाला होगा। इसी वजह से आने वाले दिनों में पंजा पार्टी की हैसियत पहले की तुलना में बढ सकती है। इससे पहले तक पंजा पार्टी सिर्फ अपना अस्तित्व बचाने का संघर्ष करती नजर आती थी,लेकिन अब लगता है कि आने वाले दिनों में पंजा पार्टी फूल छाप को चुनौती देने की स्थिति में नजर आएगी। नतीजों का तीसरा महत्वपूर्ण सबक ये है कि अब तक बेहद मजबूत मानी जा रही फूल छाप के लिए आने वाला वक्त बेहद चुनौती भरा साबित हो सकता है। फूल छाप वालों को इन नतीजों को बेहद गंभीरता से लेना होगा वरना छोटी सी चूक फूल छाप को भारी पड सकती है।
कुल मिलाकर चुनाव के नतीजों से मिल रहे सबक अगर फूल छाप वालों ने ठीक से समझ लिए तो फूल छाप भविष्य की चुनौतियों से निपट सकेगी और अगर सबक ना सीखे तो किला ढहते देर नहीं लगती। जीत का जश्न मन चुका है अब वक्त काम करने का है। उम्मीद की जाए कि इस बार प्रथम नागरिक बने वाटर पार्क वाले भैया इस तरह काम करके दिखाएंगे कि पिछली बार वाली डाक्टर मैडम के कारण उपजी नाराजगी दूर हो सकेगी।
सवाल मनहूस कुर्सी का …?
शहर सरकार की तीस सीटें जीत कर फूल छाप पार्टी इस पर कब्जा जमा चुकी है,इसलिए शहर सरकार की अध्यक्षता भी फूल छाप को मिलना तय है। पिछली बार तक तो शहर सरकार की अध्यक्षता के लिए चुनाव जीते पार्षदों में रस्साकशी होती थी,लेकिन इस बार लगता है कि चुन कर आए पार्षद शहर सरकार की दूसरे नम्बर की कुर्सी हासिल करने के इच्छुक नहीं है। इस कुर्सी पर अब तक बैठे तमाम नेताओं का जो हश्र हुआ है,उसे देखकर तमाम नेता डरे हुए है। शहर सरकार की दो नम्बरी कुर्सी की मनहूसियत से अब नेता डरने लगे है। कथित तौर पर इस मनहूस कुर्सी पर अब तक जो जो बैठा,उसकी राजनीति की कहानी ही खत्म हो गई। अब तक इस कुर्सी पर पांच नेता बैठे है। अभी हाल ही में इस कुर्सी से उतरे नेताजी को पूरी उम्मीद थी कि वे इस भ्रम को तोड देंगे। उनका टिकट भी लगभग पक्का बताया जा रहा था लेकिन आखरी वक्त पर मनहूस कुर्सी के असर से उनका टिकट कट गया और अब उनकी राजनीति भी अन्धरों में खोती नजर आ रही है। ऐसे में फूल छाप के नेता इस मनहूस कुर्सी से बचने की कोशिश में दिखाई दे रहे है। ये देखना मजेदार होगा कि आखिर कौन इस कुर्सी पर बैठेगा? जिन को इस कुर्सी के लायक समझा जा रहा था,वे सब तो इसे नकार चुके है। ऐसे में यह भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि शायद पहली बार ये कुर्सी किसी महिला नेत्री के हाथ आए जाए।
भारी पडा मंत्री को घेरना….
पंजा पार्टी के कुछ अतिउत्साही युवा तुर्को ने सूबे के खजाना मंत्री को घेर लिया था। खजाना मंत्री जैसे तैसे घटनास्थल से बचकर भागे थे। लेकिन सूबे का मंत्री कोई छोटी मोटी चीज नहीं होता। खजाना मंत्री इस घटना से बेहद नाराज थे। उनकी नाराजगी का असर ये था कि वर्दी वाले उसी दिन शाम से ही पंजा पार्टी के अति उत्साही युवा तुर्कों की तलाश में जुट गए थे। इस घटना के दो दिनों मेंंं मतदान भी हो गया और मशीनें क्लाक रुम में बन्द हो गई। इसके बाद कुछ दिन गुजरे और मतगणना होकर शहर सरकार के नए मुखिया का चुनाव भी हो गया। लेकिन खजाना मंत्री की नाराजगी बाकी थी,इसलिए वर्दी वाले पंजा पार्टी के युवा तुर्कों की तलाश में लगे ही हुए थे। उधर पंजा पार्टी के युवा तुर्को को लगा कि अब तो सबकुछ निपट गया है,इसलिए मामला भी ठण्डा पड गया होगा। लेकिन वे गलत थे। वर्दी वालों ने खजाना मंत्री को घेरने वाले तीन युवा तुर्कों को आखिरकार धरदबोचा। तीनों युवा तुर्कों को सींखचों के पीछे पंहुचा दिया गया। पंजा पार्टी के तमाम नेताओं की जोर आजमाईश के बाद जिला इंतजामिया ने दो युवा तुर्कों को छोड दिया लेकिन एक जवान अब भी जमा है। इस युवा तुर्क को छुडाने के लिए भी पंजा पार्टी के नेता अफसरों के आगे पीछे घूम रहे है,लेकिन अफसर है कि सुनने को राजी ही नहीं है। युवा नेता के माता पिता भी साहबों के पास जाकर गुहार लगा चुके है,लेकिन लगता है कि पंजा पार्टी के इस युवा तुर्क को अभी दो चार दिन और सरकारी मेहमानी में गुजारना पडेंगे। हांलाकि एक सवाल अब भी बाकी है कि पंजा पार्टी को खजाना मंत्री का पता बताने वाले कौन थे? इस सवाल का जवाब फूल छाप वाले खोज रहे हैैं।”